डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
वैज्ञानिक खोजें कई बार न केवल हैरान करती हैं, बल्कि अपने अनूठे गुणों के कारण अक्सर रोमांच से भर देती हैं। कुछ ऐसी ही हैरानी और रोमांच बार.बार महसूस होता है जब हम उस प्रयोगधर्मी वैज्ञानिक को याद करते हैं, जिसकी दोस्ती तरंगों से थी और जिसने पहली बार दुनिया को बताया कि पेड़.पौधों को भी अन्य सजीव प्राणियों की तरह दर्द होता है। कई महत्वपूर्ण खोजों के लिए मशहूर उस वैज्ञानिक को हम जगदीश चंद्र बोस के नाम से जानते हैं।
सर जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवंबर, 1858 का बंगाल के मेमनसिंह में हुआ था। अब यह जगह बांग्लादेश में है। आधिकारिक वेबसाइट ब्रिटानिकाड टकाम के अनुसार इनका परिवार भारतीय परंपराओं और संस्कृति का मानने वाला था। इनके पिता का मानना था कि बोस को अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषा का अध्ययन करने से पहले उन्हें अपनी मातृभाषाए बंगाली सीखनी चाहिए। बोस की बचपन से वनस्पति व भाैतिक विज्ञान में ज्यादा थी। इसके बाद में जगदीश चंद्र बोस ने कोलकाता में सेंट जेवियर्स स्कूल और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की डिग्री के हासिल की। फिर उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और प्राकृतिक विज्ञान में बीएससी कर 1884 में भारत लौट आए। इसके बाद जगदीश कलकत्ता के यहां प्रेसिडेंसी कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर हुए थे। हालांकि 1917 में जगदीश चंद्र बोस ने प्रोफेसर की नौकरी छोड़ दी थी।
वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में जगदीश चंद्र बोस ने कई सफल शाेध किए थे। लंदन में रॉयल सोसाइटी के केंद्रीय हॉल में कई प्रसिद्ध वैज्ञानकिाे के बीच जगदीश चंद्र बोस ने एक शाेध में वनस्पति के टिश्यू पर सूक्ष्म तरंगों के असर को दिखाया था। उनके इस प्रयोग ने यह साबित कर दिया था कि पेड़.पौधों में भी जान होती है। वह भी आम इंसानों की सांस लेते हैं उनमें दर्द भी होता है। उनका यह प्रयोग देखकर वैज्ञानिक हैरान हो गए थे। बोस ने 1885 में बोस ने रेडियो तरंगों द्वारा बिना तार संचार का प्रदर्शन किया था। इन्होंने रिमोट वायरलेस सिग्नलिंग लाने के साथ ही वायरलेस दूरसंचार की शुरुआत की थी। इसीलिए इन्हें रेडियो और माइक्रोवेव ऑप्टिक्स का जनक कहा जाता है। 1917 में बोस को नाइट की उपाधि मिली थी। इतना ही नहीं रॉयल सोसायटी लंदन के फैलो भी चुने गए थे। उनके बारे में कहा जाता है कि आर्थिक रूप से संपन्न उनके पिता आसानी से उन्हें किसी अंग्रेजी स्कूल में भेज सकते थे लेकिन वे चाहते थे कि बेटा मातृभाषा सीखे और अंग्रेजी की शिक्षा लेने से पहले अपनी संस्कृति के बारे में अच्छी तरह से जान लेण् बोस ने यही किया भीण् पहले वे बांग्ला भाषा के जानकार हुएए वैज्ञानिक तबके में माना जाता है उनके बनाए गए वायरलेस रेडियो जैसे यंत्र से ही रेडियो का विकास हुआ, लेकिन अपने नाम से पेटेंट करा लेने के चलते रेडियो के आविष्कार का क्रेडिट इटली के वैज्ञानिक जी मार्कोनी को दिया जाता है। यहां तक कि मार्कोनी को इस खोज के लिए 1909 का फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार भी मिलाण् जिसके बाद अंग्रेजी की जानकारी ली। असल में हुआ ये कि साल 1899 में बोस ने अपने वायरलेस आविष्कार मर्क्युरी कोहेनन विद टेलीफोन डिटेक्टर की तकनीक और काम करने तरीके पर एक पेपर रॉयल सोसायटी में पब्लिश करवाया, लेकिन बदकिस्मती से उनकी डायरी खो गई, जिसमें इस दौरान की गई उनकी सारी रिसर्च का जिक्र था। वहीं मार्कोनी ने मौके का फायदा लेते हुए बोस के ही पेपर पर आधारित एक डिजाइन बनाया। ये डिजाइन बोस की तकनीक से प्रेरित था लेकिन पेटेंट में मार्कोनी ने बाजी मार ली। उस दौरान काफी सारे वैज्ञानिकों को बोस की खोज की जानकारी थी, लेकिन ब्रिटिश उपनिवेश से होने के कारण किसी ने भी बोस के पक्ष में नहीं कहा और इस तरह से वे अपनी हो खोज को अपना नहीं बता सके थे।
आज इसी वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस की पुण्यतिथि हैण् पौधों को भी सजीव साबित करने वाला ये महान वैज्ञानिक अपनी ही खोज को अपना साबित नहीं कर सका थाण् दरअसल प्रोफेसर बोस ने ही रेडियो का आविष्कार किया लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के कारण ये श्रेय उन्हें नहीं मिल सका थाण् अल्मोड़ा में यह नामचीन्ह जोड़ा कुंदन हाउस में रहता था और उनसे मिलने आने वालों की सूची में देश.विदेश के बड़े.बड़े लोग शामिल थेण्इन लोगों में जवाहरलाल नेहरूए रवीन्द्रनाथ टैगोरए डी एचण् लॉरेन्सए जूलियन हक्सलेए उदय शंकरए कार्ल युंग और इन्दिरा गांधी शामिल थेण् मशहूर वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस और भगिनी निवेदिता के साथ भी बोसी सेन का बहुत लंबा साथ रहा 23 नवंबरए 1937 का जगदीश चंद्र बोस ने दुनिया का अलविदा कह दिया था।भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस की तस्वीर ब्रिटेन के 50 पौंड के नए नोट पर छप सकती है। बैंक ऑफ इंगलैंड द्वारा 2020 से छपने वाले इन नए नोटों पर किसी वैज्ञानिक की तस्वीर लगाने की योजना है। बोस उन सैकड़ों वैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्हें इसके लिए नामांकित किया गया है। जगदीश चंद्र बसु की लिखित वैज्ञानिक कथाएं आज भी आधुनिक वैज्ञानिकों को प्रेरित करती हैं।