डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखण्ड आदि काल से ही महत्वपूर्ण उपयोगी परिस्थितियों के भण्डार के रूप में विख्यात है। इस क्षेत्र में पाये जाने वाले पहाड़ों की श्रृंखलायें, जलवायु विविधता एवं सूक्ष्म वातावरणीय परिस्थितियों के कारण प्राचीन काल से ही अति महत्वपूर्ण वनौषधियों की सुसम्पन्न सवंधिनी के रूप में जानी जाती हैं। कुदरत ने उत्तराखंड को कुछ ऐसे अनमोल तोहफे दिए हैं, जिनमें अद्भुत गुणों की भरमार है हालैंड के फूल लिलियम की डिमांड ट्यूलिप के बाद दुनिया में सर्वाधिक है। व्यावसायिक खेती के लिहाज से सफल उत्तराखंड में भी इसे अपनाया जा रहा है। सजावट के लिए सर्वाधिक डिमांड वाला ये फूल लोगों को स्वरोजगार मुहैया करा रहा है। यही कारण है कि पिथौरागढ़ में गेंदे के फूल की खेती के बाद लिलियम की खेती शुरू हो गई है। इससे जहां रोजगार के लिए शहरों का रुख करने वाले नौवजवान आर्थिक रूप से आत्म निर्भर होंगे वहीं दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेंगे। लिलियम फूल के बल्ब को हॉलैंड से मंगवाया जाता है। भारत इसके 15.20 लाख बल्बों का हॉलैंड से आयात करता है। पिथौरागढ़ जिले के नाचनी में रामगंगा नदी घाटी के तल्ला जोहार में गेंदा के बाद अब लिलियम के फूल आजीविका के साथ.साथ पलायन पर प्रहार करने के आधार बनते जा रहे हैं। इस क्षेत्र में अब तक चालीस पॉलीहाउस में 45 हजार लिलियम पुष्प लगाए हैं। क्षेत्र के काश्तकार जिससे 18 लाख की आय अर्जित करेंगे। सहकारिता के माध्यम से ग्रेडिंग और पैकेजिंग कर लिलियम के पुष्प सीधे दिल्ली मंडी पहुंचने लगे हैं। जलागम परियोजना के तहत रामगंगा नदी घाटी में पुष्प उत्पादन आजीविका का सशक्त माध्यम बन चुका है।
जंगली जानवरों के आतंक के चलते तल्ला जोहार में पलायन तेजी से हो रहा है और खेत बंजर पड़ते जा रहे हैं। इस बीच इस क्षेत्र का चयन उत्त्तराखंड विकेंद्रीकृत जलागम विकास परियोजना के तहत हुआ। परियोजना के द्वारा एबीएसओ ग्राम्या .2 के तकनीकी सहयोग से इस क्षेत्र में लिलियम पुष्प के उत्पादन का कार्य प्रारंभ किया गया। इससे पूर्व कोट्यूड़ा गांव में दिनेश बथ्याल द्वारा अपने प्रयासों से गेंदा पुष्प का उत्पादन प्रारंभ किया गया था। दिनेश के फूलों की बिक्री को देख कर क्षेत्र के काश्तकार आगे आने लगे। जलागम परियोजना द्वारा थल और नाचनी के किसानों को लिलियम पुष्प के उत्पादन के लिए प्रेरित किया गया। परियोजना के तहत किसानों को निशुल्क पॉलीहाउस और आवश्यक उपकरण व कीटनाशक दवाईयां दी गई। इस योजना के तहत क्षेत्र में चालीस पॉलीहाउसों में 45 हजार से अधिक लिलियम पुष्प बल्ब लगाए गए हैं। लिलियम पुष्प 45 दिनों में तैयार हो जाता है। बाजार में एक लिलियम पुष्प की कीमत 40 रु पये है। इस लिहाज से 45 हजार लिलियम पुष्पों से 18 लाख की आय होगी, जो काश्तकारों की आय को दोगुना कर देगी। वहीं गांवों से पलायन के लिए कदम रोक देगी। थल के बलतिर, अठखेत, तड़ीगांव, दौलीकौली, उड़ी सिरतोली, द्यौकली और शौकियाथल और नाचनी के भैंसखाल, हुपुली, खेतभराड़, बरा, चामी भैंस्कोट गांवों में लिलियम की खेती हो रही है। सभी गांवों में मिला कर 24 परिवार फूलों की खेती से जुड़ चुके हैं। उगाए गए फूलों की बिक्री त्रिवेणी सहकारिता एवं उन्नति स्वायत्त्त सहकारिता के माध्यम से ग्रेडिंग और पैकेजिंग कर सीधे दिल्ली मंडी भेजा जा रहा है। जहां पर फूलों के व्यापारी हाथों हाथ खरीद रहे हैं।
लिलियम के साथ गेंदा और गुलदावरी पुष्पों की खेती भी हो रही है। फूलों की खेती से अब मायूस हो चुके काश्तकारों के चेहरे भी खिलने लगे हैं। लिलियम के फूल की खेती के लिए देश में जम्मू.कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की जलवायु काफी उत्तम मानी जाती है। यह फूल सिर्फ 70 दिनों के अंदर ही बागवानी में किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। इसके एक एकड़ में 90 हजार से एक लाख फूल आराम से तैयार हो जाते है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के गांव हड़ौली के किसान पिछले कई सालों से लिलियम की खेती कर रहे हैं। अगर बाजार की बात करें तो 40 से 50 रूपये एक फूल की कीमत है। लिलियम की खेती से बेरोजगार किसानों को अपनी आमदनी को बढ़ाने में काफी ज्यादा फायदा होगा। कोरोना वायरस ने सब तरह की प्रगति को ठप्प कर दिया है। इससे तकरीबन हर तबका बुरी तरह प्रभावित है। इस प्रभाव से खुशियों का प्रतीक फूल व्यवसाय भी अछूता नहीं है। फूल तो दो दिन बहारे जां फिजा दिखला गए, हसरत उन गुंचों पे है जो बिन खिले मुरझा गए। जौंक साहब की ये लाइनें हरियाणा में फूलों के उन रहनुमाओं पर सटीक बैठती हैं जो इस वक्त भारी आर्थिक दिक्कत से गुजर रहे हैं।
लॉकडाउन में फूल उत्पादकों की खेती और कारोबार समक्ष एक बड़ा वित्तीय संकट खड़ा कर दिया है। आलम यह है कि खेत तो फूलों की महक से लहलहा रहे हैं, मगर फूलों की मंडी में कोई खरीददार नहीं दिख रहा। फूल उत्पादकों के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले नवरात्र लॉकडाउन की वजह से मंदी की चपेट में निकल गया। अप्रैल में दस से ज्यादा शादियों के मुहूर्त हैं, लेकिन सभी के ऑर्डर कैंसिल हो चुके हैं कोरोना वायरस की वजह से राज्य में फूलों की खेती और फूलों का कारोबार मुरझा गया। लॉकडाउन में सारी गतिविधियां, शुभ मांगलिक कार्य थम जाने से फूल पॉलीहाउस और खेतों में पड़े पड़े सड़ रहे हैं। कारोबार के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण मार्च और अप्रैल के महीने में किसान हाथ पर हाथ धरे अपनी खून पसीने की कमाई को बर्बाद होता देखने को मजबूर हैं।
फूल उत्पादकों ने सरकार से अपील की कि यदि हो सकता है कि उनके लिए भी कुछ करे। लॉकडाउन की वजह से दून, टिहरी, हरिद्वार, यूएसनगर समेत सभी जिलों में फूलों की खेती से जुड़े किसानों को जबरदस्त नुकसान हुआ है। फूलों के कारोबार के लिहाज से नवंबर.दिसंबर के महीने के बाद सबसे महत्वूर्ण वक्त मार्च.अप्रैल का होता है। सर्वाधिक शुभ कार्य इसी दौरान होने से फूलों की डिमांड न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश में होते हैं। फ्लोरिकल्चर एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के अध्यक्ष मनमोहन भारद्वाज कहते हैं कि प्रदेश के कुछ युवाओं ने सामुहिक रूप से बिहारीगढ़ के पास बुग्गावाला में बड़े पैमाने पर फूलों की खेती शुरू की थी। जरबेरा, गुलाब, कारनेशन, ग्लेडु़ला, जिंफोविला आदि की फसल बहुत शानदार हुई है। पर, सब बेकार हो चुका है। अकेले मेरी ही 14 से 15 लाख रुपये की फसल प्रभावित है।
देहरादून में हरबर्टपुर में कुंजाग्रांट में फूलों की खेती कर रहे अमित पांडे की पीड़ा भी यही है। वो कहते है कि जरबेरा के पौधे को बचाने के लिए जरूरी है कि उससे फूलों को निकाल लिया जाए। फूल निकाल तो लिए हैं, पर उनका कोई खरीदार ही नहीं है। फूल खेत में पड़े सड़ रहे हैं। सरकार के आदेश के अनुसार अपने सात कर्मचारियों को इस महीने तो वेतन दिया है, लेकिन आगे कैसे करना है, समझ नहीं आ रहा। हरिद्वार के फूल उत्पादक अखिलेश शर्मा कहते हैं कि फूलों उत्पादक के पास कमाई के लिए केवल मार्च.अप्रैल के दो महीने होते हैं। अब की आमदनी से बाकी आठ.10 महीने का खर्च चलता है। मेरे 12 हजार स्क्वायर फीट का पॉलीहाउस है। चार से पांच लाख रुपये की फसल थीए अब कुछ नहीं बचा। उत्तराखंड में हालिया कुछ वर्षों में फूलों का कारोबार बढा है। दिल्ली से नजदीकी के कारण राज्य के फूल उत्पादक अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा ताजे और बेहतर फूल दिल्ली की गाजीपुर मंडी तक पहुंचा पाते हैं। एक आंकलन के अनुसार राज्य में हर साल फूलों का 200 से 250 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। फ्लोरीकल्चर एसोसिएशन के अध्यक्ष मनमोहन भारद्वाज कहते हैं कि धीरे.धीरे उत्तराखंड की फूल बाजार में पकड़ बनने लगी थी। लेकिन कोरोना की वजह से कारोबार को गहरा नुकसान हो गया है। फूल उत्पादकों की समस्या वास्तव में गंभीर है। फूलों की खेती करने वाले किसान लॉकडाउन के कारण उठाये गये आवश्यक कदमों के कारण संकट में हैं। लॉकडाउन के कारण बाजारों में फूलों की बिक्री बंद है तो दूसरी ओर मंदिरों, मज्जिदों और पुष्पों की जरूरत वाले अन्य स्थानों के लॉकडाउन के चलते बंद होने के कारण सप्लाई बंद हो गई है और किसान मन को प्रसन्न करने वाली बगिया को देखकर दुखी हो रहे हैण् यूं तो फूलों से लखदक फुलवारी और पुष्पों की महक से हर किसी का मन खुश हो उठता हैए लेकिन पुष्पों की खेती करने वाले इससे व्यथित हो रहे हैंण् इसे ध्यान में रखते हुए खेती संबंधी कार्यों के लिए किसानों को कई रूप से छूट दी गयी है। गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा दी गए निर्देशों द्वारा कुछ सावधानियों को अपनाते हुए खेती के कार्य को पूरा कर सकते हैं।