डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
हरि सिंह थापा भारतीय अन्तराष्ट्रीय बक्सर एवम् राष्ट्रिय कोच हैं। हरि भारतीय बक्सिंग के पितामह उपाधि से परिचत हैं। भारत के ललात हिमालय के वृक्षस्थल एवं कूमार्चल की वीर प्रसविनी श्स्य श्यामला भूमी अनंत काल से ही देश भक्तों, वैज्ञानिकों तथा वीर सेनानियों की जन्मदात्री रही है। इसी उत्तराखण्ड कि पावन धरती ने क्रीड़ा क्ष्रेत्र मै भी ऐसे अनेक ज्वाज्वल्यमान रत्नों को जन्म दिया है, जिनकी आभा ने देश ही नहीं बाल्कि विदेशों को भी आलोकित किया है। जहां एक ओर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद चीन और पाकिस्तान से युद्ध में एवं उसके बाद बांग्लादेश की स्वतंत्रता की लड़ाई के मैदान में यहां के जांबांजों ने अपने अद्भुत यूध कौशल एंव शोर्य से जनपद का नाम रोशन किया, वहीं दूसरी ओर जनपद पिथौरागढ़ के खिलाड़ियों ने खेल के मैदानों में भी अपने उत्कृष्ट खेल के प्रदर्शन से अन्तराष्ट्रीय खेल जगत के इतिहास में पिथौरागढ़ क नाम स्वणाक्षरों में अन्कित करवाया गया है। इन्हीं विशिष्ट खिलाड़ियो में एक नाम है, अन्तराष्ट्रीय मुक्केबाज हरी सिंह थापा का। जिन्होने अपनी लगन एवं मेहनत से मुक्केबाज के ऊंचे सपनों को पारकर भारत का श्रेष्ठ मुक्केबाज होने क गौरव प्राप्त किया।
हरी सिंह थापा का जन्म 14 अगस्त 1932 में हुआ। उनके पिता स्वण् जीत सिंह थापा ब्रिटिश इंडियन ट्रूप में सेवारत थे कैण् थापा ने प्राथमिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी पाठशाला सेरी कुम्डार से ग्रहण की। इसके बाद वह अपने पिता के साथ मऊ चले गए। हाईस्कूल में अध्ययन के दौरान 15 वर्ष की उम्र में वह भारतीय थल सेना के सिग्नल कोर की ब्वायज कंपनी में भर्ती हो गए। बचपन से ही खेलों के प्रति विशेष रुचि रखने वाले हरि सिंह ने सेना में फुटबाल, तैराकी, मुक्केबाजी आदि खेलों में भाग लिया। इस बीच बाक्सिंग कोच एजी डिमैलो की प्रेरणा से उन्होंने बाक्सिंग को अपना मुख्य खेला बना लिया। कड़ी मेहनत के बल पर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर 1950 से 1957 तक बाक्सिंग मिडिल वेट में सात वर्ष तक लगातार स्वर्ण पदक जीता। 1957 में रंगून में आयोजित दक्षिण पूर्व एशियन बाक्सिंग चैंपियनशिप में भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया। इसके बाद 1958 में टोक्यो में आयोजित एशियाड खेलों में रजत पदक और इसी वर्ष लंदन में हुए कामनवेल्थ गेम में भी प्रतिभाग किया।उन्होंने वर्ष 1961 से 1965 तक सर्विसेज के मुख्य प्रशिक्षक के रू प में सेना में विशेष सेवा दीं। वर्ष 1971 में भारत.पाकिस्तान युद्ध में भी उन्होंने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया।
सेना की ओर से उन्हें रक्षा पदक, संग्राम पदक, सेना मेडल, इंडियन इंडिपेंडेंट पदक व नाइन इयर सेवा पदक दिया गया। वर्ष 1975 में वह आनरेरी कैप्टन पद से सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद कैण् थापा ने अपने गृह जनपद देवसिंह मैदान पर बच्चों को निश्शुल्क बॉक्सिंग की कोचिंग देना शुरू किया। उनके कुशल प्रशिक्षण और मार्गदर्शन में सीमांत जिले से कई प्रतिभावान राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाज निकलकर सामने आए। बाक्सिंग में ख्याति प्राप्त करने वाले कैण् थापा को वर्ष 2013 में उत्तराखंड सरकार द्वारा राज्य के पहले द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सेना से लौटने के बाद वह अपने गांव नैनी.सैनी में रहने लगे। युवाओं को नशे की बुरी लतों से बचाने के लिये उन्होंने पिथौरागढ़ जनपद में ही युवाओं को निःशुल्क बाक्सिंग ट्रेनिंग शुरू की। उनका उदेश्य युवाओं में खेल के प्रति रूचि पैदा करना रहता था। आज पिथौरागढ़ में हरि सिंह थापा के नाम पर प्रतिवर्ष एक बाक्सिंग चैम्पियनशिप आयोजित की जाती है।
भारत के सर्वश्रेष्ठ बाक्सरों ओमप्रकाश भारद्वाज, किशन सिंह, जगजीवन सिंह, पद्म बहादुर मल्ल, एमके राय, एसके राय, एमएल विश्वकर्मा, डॉ॰ धर्मेंद्र भट्ट, भास्कर भट्ट, राजेंद्र सिंह, प्रकाश थापा, हवा सिंह, सीएल वर्मा, संतोष भट्ट आदि में बाक्सिंग के अलावा एक और समान बात है जो इन सभी को एक ही कड़ी में जोड़ती हैण् वह हैं उनके कोच कैप्टन हरि सिंह थापा था।