क्या घरेलू गैस की महंगाई बनेगी 2019 के चुनाव में भाजपा के लिए चुनौती?
देहरादून। निकाय चुनाव अर्थात शहरों की सरकार के लिए वोटिंग हो रही थी, लेकिन भाजपा-कांग्रेस के सामने 2019 के आम चुनाव थे। निकाय चुनाव में निर्दलियों ने भाजपा कांग्रेस को जमीन सुंघा दी। निकाय अध्यक्षों के 83 नतीजों में से 23 पर निर्दलीय जीते हैं, वार्ड मेंबर के मामले में तो निर्दलीय भाजपा-कांग्रेस को कहीं पीछे छोड़ने में सफल रहे।
इस दौरान चाहे निकाय अध्यक्ष पद के चुनाव हों या फिर वार्ड मेंबर के यह बात सामने आई कि भाजपा प्रत्याशियों को हराने वाले अधिकांश निर्दलीय का चुनाव चिन्ह या तो गैस सिलेंडर था या फिर गैस का चूल्हा था। क्या गैस की महंगाई से नाराज उपभोक्ताओं ने भाजपा को सबक सिखाने के लिए मतदान किया? क्या आगामी लोक सभा चुनाव में गैस की महंगाई का गुस्सा एक बार फिर से भाजपा के खिलाफ टूटने वाला है?
गैस की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी से लोग परेशान-
पिछले साढ़े चार साल के भाजपा राज में घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इस बीच घरेलू गैस सिलेंडर में कभी-कभी एक ही झटके में सौ रुपये तक की बढ़ौतरी दर्ज की गई। अब हालात इस कदर खराब हो गए हैं कि घरेलू गैस सिलेंडर एक हजार के करीब पहुंच गया है। गैस उपभोक्ताओं पर पड़ती जा रही यह मार भाजपा पर भारी पड़ी है। उत्तराखंड निकाय चुनाव में यह संदेश पढ़ा जा सकता है।
गैस की महंगाई 2019 के चुनाव में मुद्दा?
एक तरफ निर्दलियों को अधिक संख्या में जीतना दूसरी तरफ जिन निर्दलियों के चुनाव चिन्ह गैस सिलेंडर तथा गैस के चूल्हे थे, उनके सामने अधिकांश भाजपा प्रत्याशियों का हारना क्या यह संकेत दे रहा है?
यदि इस बात में सच्चाई है तो भाजपा के लिए यह अच्छी खबर नहीं है। एक बार फिर से मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा सरकार बनाने के सपने देख रही पार्टी के लिए यह शुभ संकेत नहीं है। यदि गैस की महंगाई 2019 के चुनाव में मुद्दा बन गई तो भाजपा को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। 2019 के चुनाव में विपक्ष कहीं एकजुट हो पाया और गैस समेत तमाम घरेलू उपभोग की वस्तुओं की महंगाई को मुद्दा बनाने में विपक्ष सफल हो गया तो भाजपा के सपने चकनाचूर हो सकते हैं।
सवाल उत्तराखंड के निकाय चुनाव के संदेश से निकलकर आया है। गैस सिलेंडर और गैस चुल्हे का सिंबल रखने वाले निर्दलियों के सामने धूल फांक रहे भाजपाइयों के सामने अब आगे के चुनाव के बारे में सोचने का मौका है। भाजपा समर्थक यह भी कहें कि संसदीय क्षेत्र बहुत बड़े होते हैं, वहां गैस सिलेंडर जैसे चुनाव चिन्ह वाले निर्दलीय प्रत्याशी कोई प्रभाव नहीं डाल पाएंगे, लेकिन गैस समेत तमाम जरूरी वस्तुओं की महंगाई का फायदा विपक्ष तो उठा ही सकता है। उसका नुकसान तो भाजपा को ही उठाना पड़ेगा?