डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
आज संत रविदास जयंती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह जयंती हर वर्ष के माघ माह की पूर्णिमा तिथि को आती है। इस दिन संत रविदास जी का जन्म हुआ था। इन्हें संत रविदास, गुरु रविदास, रैदास, रूहिदास और रोहिदास जैसे कई नामों से जाना जाता है। संत रविदास ने अपना जीवन प्रभु की भक्ति और सत्संग में बिताया था। वेह बेहद ही परोपकारी थे। ऐसा कहा जाता है कि इन्हें मीरा बाई भी अपना गुरु मानती थीं। इनकी प्रतिभा से सिकंदर लोदी भी प्रभावित हुआ था। संत रविदास ने चालीस पदों की रचना की थी जिसे सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल किया गया था।
रविदास भारत में 15वीं शताब्दी के एक महान संत, दर्शनशास्त्री, कवि, समाज.सुधारक और ईश्वर के अनुयायी थे। वो निर्गुण संप्रदाय अर्थात् संत परंपरा में एकसंत रविदास को लेकर मन चंगा तो कठौती में गंगा कहावत बहुत प्रचलित है। इस कहावत का संबंध संत रविदास की महिमा को परिलक्षित करता है। वे जूते बनाने का कार्य किया करते थे और इस कार्य से उन्हें जो भी कमाई होती, उससे वे संतों की सेवा किया करते और उसके बाद जो कुछ बचता, उसी से परिवार का निर्वाह करते थे। एक दिन रविदास जूते बनाने में व्यस्त थे कि तभी उनके पास एक ब्राह्मण आया और उनसे कहा कि मेरे जूते टूट गए हैं, इन्हें ठीक कर दो। रविदास उनके जूते ठीक करने लगे और उसी दौरान उन्होंने ब्राह्मण से पूछ लिया कि वे कहां जा रहे हैं। ब्राह्मण ने जवाब दिया, मैं गंगा स्नान करने जा रहा हूं। पर चमड़े का काम करने वाले तुम क्या जानो कि इससे कितना पुण्य मिलता है! इस पर रविदास जी ने कहा कि आप सही कह रहे हैं, ब्राह्मण देवता, हम नीच और मलिन लोगों के गंगा स्नान करने से गंगा अपवित्र हो जाएगी। जूते ठीक होने के बाद ब्राह्मण ने उसके बदले उन्हें एक कौड़ी मूल्य देने का प्रयास किया तो संत रविदास ने कहा कि इस कौड़ी को आप मेरी ओर से गंगा मैया को रविदास की भेंट कहकर अर्पित कर देना। ब्राह्मण गंगाजी पहुंचा और स्नान करने के पश्चात् जैसे ही उसने रविदास द्वारा दी गई मुद्रा यह कहते हुए गंगा में अर्पित करने का प्रयास किया कि गंगा मैया रविदास की यह भेंट स्वीकार करो, तभी जल में से स्वयं गंगा मैया ने अपना हाथ निकालकर ब्राह्मण से वह मुद्रा ले ली और मुद्रा के बदले ब्राह्मण को एक सोने का कंगन देते हुए वह कंगन रविदास को देने का कहा। सोने का रत्न जडि़त अत्यंत सुंदर कंगन देखकर ब्राह्मण के मन में लालच आ गया और उसने विचार किया कि घर पहुंचकर वह यह कंगन अपनी पत्नी को देगा, जिसे पाकर वह बेहद खुश हो जाएगी। पत्नी ने जब वह कंगन देखा तो उसने सुझाव दिया कि क्यों न रत्न जडि़त यह कंगन राजा को भेंट कर दिया, जिसके बदले वे प्रसन्न होकर हमें मालामाल कर देंगे। पत्नी की बात सुनकर ब्राह्मण राजदरबार पहुंचा और कंगन राजा को भेंट किया तो राजा ने ढ़ेर सारी मुद्राएं देकर उसकी झोली भर दी।
राजा ने प्रेमपूर्वक वह कंगन अपनी महारानी के हाथ में पहनाया तो महारानी इतना सुंदर कंगन पाकर इतनी खुश हुई कि उसने राजा से दूसरे हाथ के लिए भी वैसे ही कंगन की मांग की। राजा ने अगले ही दिन ब्राह्मण को दरबार बुलाया और उसे वैसा ही एक और कंगन लाने का आदेश देते हुए कहा कि अगर उसने तीन दिन में कंगन लाकर नहीं दिया तो वह दंड का पात्र बनेगा। राजाज्ञा सुनकर बेचारे ब्राह्मण के होश उड़ गए। वह गहरी सोच में डूब गया कि आखिर दूसरा कंगन वो कहां से लाएगा। उसे जब और कोई रास्ता नहीं सूझा तो उसने निश्चय किया कि वह संत रविदास के पास जाकर उन्हें सारे वाकये की जानकारी देगा कि कैसे गंगा मैया ने स्वयं यह कंगन उसे उन्हें देने के लिए दिया था, जो उसने लोभवश अपने पास रख लिया। अंततः यही सोचकर वह रविदास जी की कुटिया में जा पहुंचा। रविदास उस समय प्रभु का स्मरण कर रहे थे। ब्राह्मण ने जब उन्हें सारे वृत्तांत की विस्तृत जानकारी दी तो रविदास जी ने उनसे नाराज हुए बगैर कहा कि तुमने मन के लालच के कारण कंगन अपने पास रख लिया, इसका पछतावा मत करो। रही बात राजा को देने के लिए दूसरे कंगन की तो तुम उसकी चिंता भी मत करो, गंगा मैया तुम्हारे मान.सम्मान की रक्षा करेंगी। यह कहते हुए उन्होंने अपनी वह कठौती चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरा पात्र उठाई, जिसमें पानी भरा हुआ था और जैसे ही गंगा मैया का आव्हान करते हुए अपनी कठौती से जल छिड़का, गंगा मैया वहां प्रकट हुई और रविदास जी के आग्रह पर उन्होंने रत्न जडि़त एक और कंगन उस ब्राह्मण को दे दिया। इस प्रकार खुश होकर ब्राह्मण राजा को कंगन भेंट करने चला गया और रविदास जी ने उसे अपने बड़प्पन का जरा भी अहसास नहीं होने दिया। ऐसे थे महान संत रविदास जी, जिनकी आज हम जयंती मना रहे हैं।