विश्व पर्यटन दिवस पर विशेष
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
पर्यटन सिर्फ हमारे जीवन में खुशियों के पल को वापस लाने में ही मदद नहीं करता है बल्कि यह किसी भी देश के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आज के समय में जहां हर देश की पहली जरूरत अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है, वहीं आज पर्यटन के कारण कई देशों की अर्थव्यवस्था पर्यटन उद्योग के इर्द.गिर्द घूमती है। यूरोपीय देश, तटीय अफ्रीकी देश, पूर्वी एशियाई देश, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि ऐसे देश हैं जहां पर पर्यटन उद्योग से प्राप्त आय वहां की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है। पर्यटन का महत्व और पर्यटन की लोकप्रियता को देखते हुए ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1980 से 27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस के तौर पर मनाने का निर्णय लिया। विश्व पर्यटन दिवस के लिए 27 सितंबर का दिन चुना गया क्योंकि इसी दिन 1970 में विश्व पर्यटन संगठन का संविधान स्वीकार किया गया था।
पर्यटन दिवस की खासियत यह है कि हर साल लोगों को विभिन्न तरीकों से जागरुक करने के लिए पर्यटन दिवस पर विभिन्न तरीके की थीम रखी जाती है। इस साल इस दिवस का थीम रखा गया है, टूरिज्म एंड वाटर. प्रोटेक्टिंग आवर कॉमन फ्यूचर। यूं तो पर्यटन दुनियाभर के लोगों का पसंदीदा शगल रहा है, लेकिन पर्यटन में भी जल आधारित पर्यटन का अपना विशेष महत्व है। नदियों, झीलों, जल प्रपातों के किनारे दुनियाभर में कई पर्यटन स्थलों का विकास हुआ है और भारत भी इसका अपवाद नहीं है। विश्व पर्यटन दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यटन और उसके सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व आर्थिक मूल्यों के प्रति विश्व समुदाय को जागरूक करना है। भारत जैसे देशों के लिए पर्यटन का खास महत्व होता है। भारत जैसे देश की पुरातात्विक विरासत या संस्कृति केवल दार्शनिक स्थल के लिए नहीं होती है इसे राजस्व प्राप्ति का भी स्रोत माना जाता है और साथ ही पर्यटन क्षेत्रों से कई लोगों की रोजी.रोटी भी जुड़ी होती है। आज भारत जैसे देशों को देखकर ही विश्व के लगभग सभी देशों में पुरानी और ऐतिहासिक इमारतों का संरक्षण दिया जाने लगा है। भारत असंख्य अनुभवों और मोहक स्थलों का देश है। चाहे भव्य स्मारक हों, प्राचीन मंदिर या मकबरे हों, इसके चमकीले रंगों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रौद्योगिकी से चलने वाले इसके वर्तमान से अटूट संबंध है। केरल, शिमला, गोवा, आगरा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, मथुरा, काशी जैसी जगहें तो अपने विदेशी पर्यटकों के लिए हमेशा चर्चा में रहती हैं। भारत में अपने लोगों के साथ लाखों विदेशी लोग प्रतिवर्ष भारत घूमने आते हैं। भारत में पर्यटन की उपयुक्त क्षमता है। यहां सभी प्रकार के पर्यटकों को चाहे वे साहसिक यात्रा पर हों, सांस्कृतिक यात्रा पर या वह तीर्थयात्रा करने आए हों या खूबसूरत समुद्री.तटों की यात्रा पर निकले हों, सबके लिए खूबसूरत जगहें हैं। दिल्ली, मुंबई, राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में तो लोगों को घूमते.घूमते महीना बीत जाता है।
एक समय ऐसा आया जब भारत के पर्यटन स्थल खतरे में नजर आने लगे और लगने लगा कि शायद अब भारत पर्यटक स्थल के नाम पर पर्यटकों की पहली पसंद नहीं रहेगा। दुनिया में आई आर्थिक मंदी और आतंकवाद के चलते ऐसा लगने लगा कि पर्यटक अब भारत का रुख करना पंसद नहीं करेंगे पर ऐसा नहीं हुआ। भारत की सांस्कृतिक और प्राकृतिक सुन्दरता इतनी ज्यादा है कि पर्यटक ज्यादा समत तक यहां के सुन्दर नजारे देखने से दूर नहीं रह सके। भारत में विदेशी सैलानियों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न शहरों में अलग.अलग योजनाएं भी लागू की गयीं हैं। भारतीय पर्यटन विभाग ने सितंबर 2002 में अतुल्य भारत नाम से एक नया अभियान शुरू किया था। इस अभियान का उद्देश्य भारतीय पर्यटन को वैश्विक मंच पर प्रमोट करना था जो काफी हद तक सफल हुआ। इसी तरह राजस्थान पर्यटन विकास निगम ने रेलगाड़ी की शाही सवारी कराने के माध्यम से लोगों को पर्यटन का लुत्फ उठाने का मौका दिया। जिसे पैलेस ऑन व्हील्स नाम दिया गया। राजस्थान पर्यटन विकास निगम की यह पहल दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर भारत का नाम रोशन करने वाला माना गया है।देश की पर्यटन क्षमता को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने वाला यह अपने किस्म का यह पहला प्रयास था। पर्यटन के क्षेत्र में विकास इसके पहले राज्य सरकारों के अधीन हुआ करता था। राज्यों में समन्वय के स्तर पर भी बहुत थोड़े प्रयास दिखते थे। देश के द्वार विदेशी सैलानियों के लिए खोलने का काम यदि सही और सटीक विपणन ने किया तो हवाई अड्डों से पर्यटन स्थलों के सीधे जुड़ाव ने पर्यटन क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज सैलानी पर्यटन के लिहाज से सुदूर स्थलों की सैर भी आसानी से कर सकते हैं। निजी क्षेत्रों की विमान कंपनियों को देश में उड़ान भरने की इजाजत ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। सिमटती दूरियों के बीच लोग बाहरी दुनिया के बारे में भी जानने के उत्सुक रहते हैं। यही कारण है कि आज दुनिया में टूरिज्म एक फलता फूलता उद्योग बन चुका है। पर्यटन को उत्तराखण्ड के आर्थिक विकास के प्रमुख स्रोत के रूप में देखा जाता रहा है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, पञ्च केदार, आदि कैलाश, हरिद्वार, ऋषिकेश, हेमकुण्ड, रीठा साहिब, नानकमत्ता, पीरान कलियर जैसे धर्मस्थलों के कारण यहाँ आदिकाल से ही धार्मिक पर्यटन होता रहा है।
आज भी लाखों श्रद्धालु हर साल इन तीर्थस्थलों में आते हैं। तीर्थाटन के रूप में चले आ रहे इस पर्यटन के विकास की काफी गुंजाइश अभी भी बनी हुई है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में हमारे पास पंचाचूली, नंदा देवी, दूनागिरि, बन्दरपूँछ, चौखम्भा, नीलकण्ठ, गोरी पर्वत, हाथी पर्वत, नंदा घुंटी, नन्दा कोट, मृगथनी के रूप में 6000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली बर्फ से लकदक चोटियाँ हैं। भागीरथी, अलकनंदा, गोरीगंगा, धौली और पिंडारी नदियों के उद्गम इसी हिमालयी क्षेत्र में हैं। ग्लेशियरों के रूप में पिण्डरी, सुन्दर ढूंगा, कफनी, खतलिगं, मिलम, जौलिंकांग, गंगोत्री यमुनोत्री हैं। हिमालयी झीलों में गौरीकुण्ड, रूपकुण्ड, नन्दीकुण्ड, केदारताल, देवरियाताल, पन्नाताल, सतोपंथताल, बासुकीताल, भराडसरताल यहीं हैं। इसके अलावा नैनीताल, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, श्यामलाताल, हरीशताल, लोहाखामताल। तपोवन, पंवालीकंठा, दयारा, चौपटा, बेदिनी, आली जैसे मनमोहक बुग्याल उत्तराखण्ड में ही हैं। जैव विविधता से भरपूर जिम कॉर्बेट पार्क, राजाजी नेशनल पार्क सारी दुनिया में जाने जाते हैं। देवरियाताल कुल मिलाकर यह राज्य नयनाभिराम, अलौकिक सौंदर्य से भरपूर है। इसी कारण से राज्य में पर्यटन को संभावित आर्थिक संबल के रूप में देखा जाता है और आज भी यह अर्थव्यवस्था का मजबूत हिस्सा है। 2017 में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में पर्यटन का योगदान 13ण्57 प्रतिशत रहा। यह इसके बावजूद था कि पर्यटन विभाग का बजट परिव्यय कुल बजट का 0.28 ही रहा। जबकि 2004.5 में विभाग का बजट परिव्यय कुल बजट का 0.67 प्रतिशत था। यानि राज्य सरकार पर्यटन को अपने एजेंडा में लेने की बात कर रही है लेकिन उस पर व्यय घटाया जा रहा है। यह चिंताजनक स्थिति है सरकार और विभाग पर्यटन क्षेत्र के विकास की बातण् खास तौर पर पहाड़ी जिलों से मैदानी जिलों की ओर और राज्य से बाहर मामूली रोजगार के लिए हो रहे पलायन की भयावह होती जा रही स्थिति से निपटने के लिए सरकार पर्यटन को रोजगार के क्षेत्र में मजबूत करने की बात करती हैण् लेकिन सरकार के पास ऐसा करने की इच्छाशक्ति और दृष्टिकोण का अभाव है।
हमारे पास पर्यटकों को लुभाने और सुरक्षा, संरक्षा का अहसास देने के लिए आधारभूत ढांचे का अभाव है। रेल सेवा का परिवहन तंत्र गिने चुने शहरों तक ही सीमित है तो सडकें बदहाल बनी हुई हैं। सभी विकास योजनाओं की तरह सड़कों का जाल भी चार मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर और नैनीताल में उलझकर रह गया है। मनमोहक हिमालय की ओर जाने वाली सडकें डरावनी और बदहाल हैं। मध्य और उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक पहुँचने के लिए तो पर्यटकों को अपना कलेजा मजबूत रखना पड़ता है। धार्मिक आस्था और हिमालय से अगाध स्नेह ही पर्यटकों को यहाँ तक लाता है। पड़ोसी राज्य हिमाचल की सड़कों से तुलना करने पर हमें निति नियंताओं की कमजोर इच्छाशक्ति स्पष्ट दिखाई देती है। यही नहीं सीमान्त नेपाली गाँवों तक में चीन की मदद से बिछाया गया सड़कों का जाल गुणवत्ता के मामले में हमसे बहुत बेहतर है, चीन और तिब्बत के तो क्या कहने। संचार सेवाओं के तो क्या कहने एकाध ऑपरेटरों के धागों से बंधे पहाड़ी कस्बों से पहाड़ की तरफ चढ़ते ही आप मध्ययुग में पहुँच जाते हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पहुँचते ही आप मदद के लिए भी संचार माध्यम नहीं पाते। ज्यादातर पहाड़ी जिलों में संचार तंत्र लचर ही मिलता है, वह भी निचले इलाकों तक ही। बड़ा बाजार नहीं है तो प्राइवेट ऑपरेटरों की कोई दिलचस्पी भी यहाँ नहीं है।
राज्य में मात्र 6,239 होटल, पेइंग गेस्ट हाउस, धर्मशालायें, गुरुद्वारा, आश्रम हैं। इनकी कुल क्षमता 3,01,185 बेडों की है। इनमें 143724 बेड वाले 4813 निजी होटल, पेइंग गेस्ट हाउस हैं। 147437 बेड क्षमता वाले 886 धर्मशालाएँ, गुरुद्वारे आश्रम। 2315 बेड क्षमता वाले 382 सरकारी गेस्ट व रेस्ट हाउस हैं। 7709 बेड वाले 208 पर्यटक आवास गृह, जनता यात्री निवास व एफआरपी हट्स हैं। आंकड़े साफ़ दिखाते हैं कि ज्यादातर पर्यटकों का भार निजी होटल संचालकों या धर्मार्थ संस्थाओं ने उठा रखा है। लोकप्रिय जगहों वाले सरकारी पर्यटक आवास गृहों, विश्राम गृहों को छोड़कर ज्यादातर सरकारी गेस्ट.रेस्ट हाउसखस्ताहाल हैं। नैनीताल, रामनगर, मुक्तेश्वर, मसूरी आदि को छोड़ दिया जाये तो कहीं भी रहने के लिए सामान्य सुविधाओं वाली भी जगहें नहीं हैं। अन्य सुविधाओं की तो बात ही सोचना बेईमानी है। यानि देवभूमि का अधिकांश पर्यटन देवदया पर ही है। स्थिति को बेहतर करने के लिए सरकार होम स्टे की योजना लायी है जिसके तहत अगले पांच सालों में 5000 होम स्टे का लक्ष्य रखा गया है, मगर लालफीताशाही इस योजना में पलीता लगाती है या नहीं यह देखने की बात है। इन बुनियादी सुविधाओं की गत देखकर सरकार से यह उम्मीद पालना बेमानी होगा कि वह किसी तरह की पर्यटन गतिविधयों को विकसित करेगी। साहसिक पर्यटन के नाम पर औली में स्कीइंग प्रतियोगिता करवाई जाती है जिसके आयोजन में अंत तक सुबहा बना रहता है। शेष गतिविधियां निजी ऑपरेटरों के भरोसे चल रही थीं। सरकार द्वारा 17 सालों तक भी इनके लिए ठोस नीति तक नहीं बनायीं गयी। जिस वजह से हाल ही में हाई कोर्ट ने इनमें से ज्यादातर में प्रतिबन्ध लगाकर सरकार को इस विषय में नीति बनाने का निर्णय दिया है। राजस्थान सरकार ने जानवरों की खरीद.फरोख्त के लिए आयोजित होने वाले पारंपरिक पुष्कर मेले को विकसित कर एक अंतर्राष्ट्रीय मेले में बदलकर रख दियाण् इसके अलावा भी राजस्थानए गोवा समेत कई राज्यों ने अपने पर्यटन को स्थानीय संस्कृति से जोड़कर देश.विदेश में लोकप्रिय बना दिया है। उत्तराखण्ड के कई मेलों को विकसित कर पर्यटकों के बीच लोकप्रिय बनाने की संभावना मौजूद है। जौलजीबी मेला, उत्तरायणी मेला, सेल्कु मेला, नंदा राजजात आदि कई ऐसे मेले हैं जिनमें पर्यटकों की अच्छी भागीदारी बनाये जाने की संभावना मौजूद हैण् अगर पर्यटन विभाग और संस्कृति विभाग की पहल हो तो इन मेलों को राष्ट्रीय.अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिल सकती है। जिससे पर्यटन को ख़ासा बढ़ावा मिलेगा। इन स्थितियों के बावजूद राज्य में पर्यटकों का आवक लगातार बढ़ ही रही है। 2002 से 2017 के तक राज्य में आने वाले पर्यटकों की तादाद में 196.57 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। 2002 में उत्तराखण्ड आने वाले पर्यटकों की संख्या 117.08 लाख थी। साल 2017 में 347.23 लाख पर्यटक उत्तराखण्ड आये, इनमें 1.4 लाख विदेशी पर्यटक शामिल थे। 2010 से 2014 के बीच पर्यटकों की तादाद में कमी भी आयी, 2013 की उत्तराखण्ड आपदा के कारण पर्यटकों का यह ग्राफ तेजी से गिरा। इसके बावजूद अगले सालों में पर्यटकों की आवाजाही बढ़ने लगी और हर साल बढती ही जा रही है। यह आंकड़ा उत्तराखण्ड में पर्यटन की संभावनाओं को दिखाता है।
अगर सरकार ठोस नीति बनाकर मूलभूत ढांचे में आवश्यक सुधार करे और गतिविधि आधारित पर्यटन की ठोस नीति तैयार करे तो पर्यटन राज्य की अर्थवयवस्था का मजबूत स्तम्भ बन सकता है। ठोस कार्यनीति इस क्षेत्र में अच्छे रोजगार भी पैदा करेगी और पलायन की समस्या से निबटने में कारगर होगी। बस आवश्यकता है सरकार की मजबूत इच्छाशक्ति के साथ उठाये गए ठोस कदमों की उत्तराखंड में पर्यटन की व्यापक संभावनाएं हैं मगर इसके लिए योजनाबद्ध तरीके से ठोस कदम उठाने की जरूरत है। पर्यावरण संरक्षण के साथ.साथ स्थानीय समुदाय की सहभागिता के आधार पर उत्तराखंड में संचालित इको टूरिज्म ;पारिस्थितिकीय पर्यटनद्ध गतिविधियों में पर्यटकों की रूचि बढ़ती जा रही है और पिछले वर्ष पांच लाख से ज्यादा लोग इनका आनंद उठाने के लिये प्रदेश में पहुंचे।
उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक ने खुद जुटाए हैं।