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Home दुनिया

आखिर बिहार चुनाव में बन ही गया भारतीय भाषाई अस्मिता चुनाव में मुद्दा

October 28, 2020
in दुनिया, संस्कृति, साहित्य
Reading Time: 1min read
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रविंद्र धामी
देश भर के भारतीय संस्कृति की वाहक भारतीय भाषाई अस्मिता के समर्थक, राष्ट्रभक्तों को प्रणाम। आज 25 साल बाद वह दिन आ ही गया जब चुनाव में पहली बार बिहार में मातृभाषाओं को अँग्रेजियत के षड़यंत्र से आजादी के लिए तकनीकी शिक्षा मातृभाषा में कराने का मुद्दा चुनावी घोषणा पत्र में शामिल हुआ। अभी तो भाजपा आगे आई है, इससे उम्मीद बढ़ गई है कि अन्य दल भी मातृभाषा में डॉक्टर, इंजीनियरिंग की पढ़ाई आदि को घोषणा पत्र में शामिल करने को आगे आएंगे।
आपके इस अपने को भारतीय भाषा संरक्षण संगठन में तब अपनों ने सचिव का जिम्मा दिया था तो तब के संघर्ष के निर्णयों के प्रति भी आपके समक्ष रखना मेरी जिम्मेदारी है जिससे तब की राजनीतिक दलों के भाषाई अस्मिता के समर्थकों को याद..आज यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि 1991 से 1996 के बीच भारतीय भाषाई अस्मिता के संघर्ष में यह मांग उठाई थी कि सभी राजनीतिक दल मानसिक आजादी के लिए भारतीय भाषाओं यानी मातृभाषाओं को उनका हक दिलाने का मुद्दा अपने घोषणा पत्र में शामिल करें। 12 मई 1994 को पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की अगुवाई में पूरे विपक्ष ने भारतीय भाषाई अस्मिता के समर्थक प्रमुख नेता, सांसद आदि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में अँग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कर सभी भारतीय भाषाओं यानि मातृभाषा में करने व संसद में दो बार पारित संसदीय संकल्प को लागू कराने पर एकजुट हुए तो अँग्रेजियत की जड़े हिल गई।
अगले वर्ष धरने के एक वर्ष पूरे होने पर जब दुबारा 12 मई 1995 को सत्याग्रह स्थल पर एकत्र तो तब भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी आदि राजनीतिक दलों के प्रमुख लोगों के समक्ष इस मुद्दे को चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करने की मांग उठाई थी। उस दिन भाजपा नेता आडवाणी जी ने कहा था कि आजादी की आधी सदी बीतने के बाद भी स्वराज के लिए आंदोलन चलाना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह सभी भारतीय भाषाओं का प्रश्न है, अंग्रेजी हटाने नहीं बल्कि अंग्रेजी का वर्चस्व हटाने का है। तत्कालीन देश के वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानन्द मिश्रा जी ने भाषा आंदोलन की ओर से कहा कि सभी राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणा पत्र में इस मुद्दे को शामिल करें। आपके इस अपने ने जल्द जंग में जल्द प्रथम चरण में ग्राम स्तर तक जनता को सीधे जोड़ने के लिए अभियान चलाने का एलान किया था। तब भाषा समर्थक तत्कालीन भाजपा सांसद बीएल शर्मा प्रेम, स्वामी अग्निवेश जी ने भी जनता पार्टी महासचिव अरविंद चतुर्वेदी, संगठन के पुष्पेन्द्र चौहान जी, समाचार एजेंसी भाषा के सम्पादक वेदप्रताप वैदिक समेत अनेक दलों के प्रमुख नेता, साहित्यकार, पत्रकारों ने संबोधित किया। उस दिन की देश के प्रमुख समाचार पत्र पत्रिका की रिपोर्ट। भाजपा ने बिहार विस चुनाव के घोषणा पत्र में मातृभाषा में मेडिकलए इंजीनियरिंग समेत अन्य तकनीकी शिक्षा को उपलब्ध कराने के मुद्दे को शामिल किया है। अब उम्मीद है कि अन्य दल भी आगे आएंगे..इससे मानसिक आजादी यानी भारतीय भाषाओं को उनका हक मिलेगा।

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