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01- ऋषि गंगा के मुहावने की ओर ग्लेशियर का दृष्य।
02-बरिष्ठ वैज्ञानिक डा0डी0पी0 डोभाल ।
प्रकाश कपरूवाण
जोशीमठ। ग्लेशियरांें के व्यापक अध्ययन के बाद ही परियाजनाओं को मिले स्वीकृति। प्रकृति की शक्ति को कम करके आंकना बडी भूल होगी। वैज्ञानिकों ने भी माना कि ग्लेशियर पर नियमित अध्ययन होता तो जन हानि को कम किया जा सकता था।
सैकडों निर्दोषों के काल के ग्रास मे समा जाने व हजारों करोड के नुकसान के बाद अब उच्च हिमालयी क्षेत्रों निर्माणाधीन अथवा प्रस्तावित परियोजनाओं पर नए सिरे से अध्ययन की जरूरत है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों विशेषकर ग्लेशियर के मुहानों पर बनने वाली विद्युत परियोजनाओं को भविष्य में प्रकृति की शक्ति का कोपभाजन ना बनना पडे इसके लिए ग्लेशियर वैज्ञानिकों को परियोजना से संबधित हर गतिविधि में शामिल किए जाने की जरूरत होगी। ग्लेशियर फटना प्राकृतिक घटना अवश्य है, लेकिन प्राकृतिक घटना आपदा व त्रासदी में परिवर्तित न हो,इसके लिए उसके नीचे की बसावट को सुरक्षित रखा जाना बेहद जरूरी हैं। और यह तभी संभव है जब ग्लेशियरों की निंरतर मोनेटरिंग हो।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बनने वाली परियोजनाओं में पानी की मात्रा का अध्ययन तो किया जाता है, लेकिन ग्लेशियरों पर अध्ययन नहीं किया जाता, नदियों पर बनने वाली परियोजनाओं के निर्माण से पूर्व यह भी देखा जाना चाहिए कि कि ग्लेशियर जहाॅ से नदियाॅ निकल रही है वहाॅ ग्लेशियर कितना है! बर्फ ना पडने की स्थिति मे कितना ग्लेशियर रहेगा!इन सभी तथ्यों के अध्ययन के बाद ही किसी परियोजना की डीपीआर तैयार की जानी चाहिए, लेकिन ऐसा होता नही और विना ग्लेशियर अध्ययन व ग्लेशियर विशेषज्ञों की राय लिए बगैर ही डीपीआर न केवल तैयार कर ली जाती है ब्लकि स्वीकृत भी हो जाती है, जिसका खामियाजा निर्दोश लोगो को ही भुगतना होता हैं।
ऋषि गंगा व तपोवन मे सैकडों निर्दोष लोग अकारण ही काल के ग्रास हो गए,उनका कसूर सिर्फ इतना था कि वे अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए इन परियोजनाओं मे मजदूरी करते थे। यदि नदियों के मुहाने पर विद्यमान ग्लोशियरों का अध्ययन होता तो काफी जिंदगियों को बचाया जा सकता था।
ग्लेशियर एक्टवीटिज पर पैनी नजर रखने वाले वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के निर्वतमान बरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 डी0पी0डोभाल बताते है कि ऋषि गंगा के ऊपर बनी झील से फिलहाल कोई खतरा नही है। झील से रिसाव शुरू हो गया है। लेकिन गर्मी बढाने के बाद ग्लेशियर पिघलने से झील में ज्यादा पानी जमा हो सकता है,इसकी नियमित जाॅच किए जाने की आवश्यकता है। डा0 डोभाल के अनुसार उच्च हिमालयी क्षेत्रों मे बनाई जा रही परियोजनाआंें से पूर्व ग्लेशियरपर न केवल अध्ययन की जरूरत है ब्लकि नियमित मानेटेरिंगं की जरूरत है। लेकिन परियोजनाओं की स्वीकृति से पूर्व इस ओर ध्यान नही दिय जाता और परियोजना की डीपीआर स्वीकृत कर दी जाती है।
ऋषि गंगा आपदा के बाद ग्लेशियर व वहाॅ बन रही झील का सर्वेक्षण कर लौटे डा0डोभाल ने बताया कि उस स्थान पर राॅक तो पहले से टूटी थी और हैगिंग ग्लेशियर करीब 180मीटर की ऊॅचाई उस राॅक पर गिरा जो पूरी राॅक के साथ मलबे को नीचे की ओर बहा ले गया। उनका कहना था कि ग्लेशियर/एवलाॅच गिरने से रोका तो नही जा सकता,लेकिन सुरक्षात्मक उपायों व ग्लेशियर की प्रवृति पर नियमित अध्ययन से जन हानि को अवश्य बचाया जा सकता था।