देव कृष्ण थपलियाल
होली, मिलन के एक निजी कार्यक्रम में पूर्व सी0एम0 त्रिवेंद्र सिंह रावत जी का दर्द अचानक छलक पडा, उन्होंनें कहा ’कि वे कौंरवों के षडयंत्र के शिकार हुऐ हैं, उन्हें किसी खास ग्रुप या व्यक्ति विशेष के इशारे से पदमुक्त किया गया, इसका मतलब ये है, की उन्हें अपनीं काबिलियत पर जरा भी शक नहीं है ?
स्मरणीय है, की पौरांणिक कथानक महाभारत में अभिमन्यु की वीरता और रणकौशलता से भयभीत हो कर, कौरवों नें उसे छल से मारा था, ठीक उसी तरह त्रिवेद्र जी भी अपनें को छल से हटाये गये मानते है, कि राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उनका रणकौशल भी अभिमन्यु की ही तरह था, अथवा नहीं ?
यह उनकी पार्टी और उनसे जुडें लोंगों को ज्यादा पता होगा ? उन्होंनें राज्य में महिलाओं और नौजवानों के लिए अनेक क्रान्तिकारी योजनाओं को लागू किया, सी0एम0 की कुर्सी चले जानें पर वे काफी हताहत और दुःखीं हैं, यह निराशा उनके चेहरे से छुपाये नहीं छुपती, यहस्वाभाविक भी है।
जिस दिन वे मुखिया के पद से हटाये गये, उसी दिन से वे अपनें अपनें कामों को ’कालजयी कहते’ नहीं थकते रहे थे, इसीलिए वे सारा दोष अपनीं पार्टी के बडे नेताओं पर तथा तथाकथित कौरवों पर थोप रहे थे ? भले उनके फैसले ’जनता’ के गले से नीचे नहीं उतर रहे थे ?
ताजातरीन मामला, एक मार्च को ग्रीष्मकालीन राजधानीं गैरसैंण के बजट सत्र से शुरू हुआ माना जा सकता है ? सीएम रहते त्रिवेंद्र जी नें जिले के घाट क्षेत्र के लोंगों को उनकी बहुप्रतिक्षित माॅग ’सडक के चौड़ीकरण व सुधारीकरण’ का जबाब दीवालीखाल में पुलिस पिटाई और भोली-ंभाली महिलाओं के साथ अभद्रता के साथ दिया ?
सोशल मीडिया पर वाइरल इन तस्वीरों को देखकर हर कोई हतप्रभ था, लोकताॅत्रिक तरीके से अपनीं बात मुखिया और सरकार तक पहुॅचाना गुनाह है, क्या ? काश अच्छा होता, मुखिया दो कदम चलकर खुद ही इस माॅग पर गौर फरमाते अथवा कोई अश्वासन दे देते ? नही अपनें मातहत किसी मंत्री-ंअधिकारी को भेज कर ही उनकी समस्या पर थोडा अमल कर लेते ?
परन्तु सत्ता का चरित्र अंहकारी ही होता है ? ’बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा देंने वाले उनके नेता प्रधानमंत्री मोदी जी को जरूर किसी नें यह घटना बता दी होगी ? शायद तब ही कुर्सी चली गई ! गैरसैंण को ’कमीश्नरी’ बनानें का फैसला ’औचित्य से परे रहस्य’ से भरा है, पता नहीं सीएम को यह नेक सलाह किसनें दे डाली ? और उन्होंनें नें भी बिना सोचे-ंसमझे किसी की परामर्श अथवा सलाह लिए बिना उसे सीधे अमली जामा पहना दिया ? जिसे समझने के लिए राजनीति और प्रशासन के पंडितो को भी खासी मसक्कत करनीं पडी थी ?
हालाॅकि नये मुखिया नें इस मसलें को पूरी तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया है, कमीश्नरी गठन के लिए नोटिफिकेशन पर रोक लगी है, वर्ना अल्मोडा में जनआंदोलन चरम पहुॅच गया था, लोकतंत्र में किसी भी फैसले पर विचार करनें से पहले जनभावनाओं और जनसहुलियतों का खयाल रखना जरूरी है, अपनें अंहकार से कोई भी फैसला नहीं लिए जाते ?
गैंरसैंण को नयेे जिले के रूप में विकसित करनें की तमन्ना स्थानीय जनमानस से लेकर राजनीति और प्रशासन के जानकारों में रही है। अच्छा होता तत्कालीन मुखिया जनभावनाओं का सम्मान करते ? और नये जिले की बहुप्रतिक्षित माॅग को अमलीजामा पहनाते ?
गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करनें को लेकर आम पहाडवासियों में एक उम्मीद जगी थी, पर पिछले साल से अभी तक गैरसैंण-ंदीवालीखाल तथा जनपद चमोली की सडकें, सूनीं-ंसूनीं सीं हैं, आधी राजधानी बननें से लोंगो को उम्मीद थीं विकास की कुछ किरणें तो इनायत होंगीं, और कुछ नहीं तो सडकें ठीक हो जायेंगी, बीजली, पानीं, और मोबाइल टावरों में जो अनिश्चितता बनीं हुईं है, उनमें कुछ सुधार होगा, किन्तु भराडीसैंण में खडीं बडी-ंबडी इमारतों के अलावा वहाॅ न तो कोई सरकारी कामकाज होता है, न वहाॅ सरकार के करिन्दें नजर आते हैं, ?
इसे जनमानस के साथ छलावा नहीं तो क्या कहेंगें ? उम्मीद थीं, की आम लोंगों के लिए छोटे-ंमोटे कामों के लिए यहाॅ कोई ’मैकेनिज्म’ स्थापित हो जायेगा, जिसमें छोटे-ंबडे अधिकारियों से लेकर स्टाफ कर्मियों की बडी संख्या मौजूद होगी । लोंगों की आवाजाही की इंतजार में बैठे छोटे-ंमझोले व्यापारियों को आमदनीं बननें की उम्मीदों
को धक्का लगा है ।
फिर किस बात की ग्रीष्मकालीन राजधानीं ? लोंगों का कहना है, महज सत्र के बहानें सालभर में एक बार पहुॅचनें वाले माननीयों के आगमन पर उन्हें परेशानीं ही झेलनी पढ़ती है।
कोरोना काल के शुरूवाती दिनों से वापस मातृभूमि की ओं लौटे, युवाओं को उम्मीद थी, कि सरकार उनको रोजगार के नये अवसर मुहैय्या करायेगी, इससे पहले सरकार नें बाकायदा ’पलायन आयोग’ का गठन कर इस दिशा में ब-सजयनें की मंशा भी जाहिर की थीं, परन्तु सरकार और ’पलायन आयोग’ विगत दो-ंतीन सालों से आॅकडबाजी के
जाल में ही उलझे हैं, अच्छा होता की ’अर्थ एवं संख्या विभाग’ जो इस काम के लिए बनाया गया है, उसी को यह काम सौंप देते, ’रिवर्स पलायन’ और पहाड में रोजगार पैदा करनें का दावा करनें वाले मुख्यमंत्री, नें एक भी नया स्वरोजगार’ पैदा करनें की जमीन तैयार की, खास कर कोविड-ं19 के दौर में भी अनेक दावे हुये गये परन्तु धरातल से गायब थे, ’होम स्टे’ जैसी महत्वाकाॅक्षी योजनाऐं भी नौकरशाही की भेंट चढ़ गईं, नतीजन लाॅकडाउन होते ही लोग घरों से एक-ंएक कर निकलनें लगे ?
सरकारी महकमों में खाली पडे पदों को भरनें के लिए इन चार सालों में कोई प्रयास नहीं किया गया, जबकि बेरोजगारों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, आज एक व्यक्ति भी यह कहनें की स्थिति में नहीं है, उसे इस सरकार नें रोजगार दिया हो, अथवा स्वरोजगार के लिए कोइ्र सहायता प्रदान की हो ? पलायन की स्थिति पहले से बदत्तर हालत में है, पहाड में रोजगार के अवसरों की स्थिति इस दौरान काफी दुर्बल स्थिति में हैं। ’दुर्बल’ इसलिए क्योंकि ’चार धाम यात्रा’ और पर्यटन क्षेंत्रों में आवजाही पर ‘कोविड-ंउचय19’ का ग्रहण लगा हुआ है, यद्यपि चार धाम यात्रा की बात थोडा छोड भी दे तो भी पर्यटक स्थलों पर आवाजाही बंद अथवा काफी न्यून है ।
जिसका प्रभाव सीधे लोंगों के व्यवसाय पर पडा है, जो लोग इन क्षेत्र/तीर्थों में कार्यरत अथवा छोटे-ंउचयमोटे व्यवसाय में सलग्न थे वे अब बेरोजगारी की लाइन में खडे हो गये हैं ? इसलिए चुनौतियाॅ अब पहले के मुकाबले ज्यादा हैं। नये-ंनवेले सीएम तीरथ सिंह रावत के सामनें इन चुनौतियों से पार पानें की है, इसलिए उन्हें रोजगार और युवाओं पर विशेष ध्यान देंनें की आवश्यकता है, प्रचंड बहुमत और डबल इंजन की सरकार पर आम आम आदमी को जितनी उम्मीद थी उसका कुछ फीसदी भी काम हो जाये तो बडी उपलब्धि होगी ? राज्य के लोगों को सरकार से बहुत उम्मीदें हैं, अगले कुछ महीनों में उन उम्मीदों पर खरा उतरना तीरथ सिंह रावत के लिए बडी चुनौती है। राज्य के लोग इसलिए भयभीत हैं, की वर्तमान मुखिया तीरथ सिंह रावत भी कहीं उन्ही की पार्टी के ’कौरवों’ द्वारा न छले जाॅय, क्योंकि राज्य कई मुखियाओं के तले पहले दबा है ?