डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखण्ड आदि काल से ही महत्वपूर्ण जड़ी.बूटियों व अन्य उपयोगी वनस्पतियों के भण्डार के रूप में विख्यात है। इस क्षेत्र में पाये जाने वाले पहाड़ों की श्रृंखलायें, जलवायु विविधता एवं सूक्ष्म वातावरणीय परिस्थितियों के कारण प्राचीन काल से ही अति महत्वपूर्ण वनौषधियों की सुसम्पन्न सवंधिनी के रूप में जानी जाती हैं। चिचिण्डा कुकुरबिटेसी कुल का पौधा है। इसका वानस्पतिक, वैज्ञानिक नाम ट्रिकोसैन्थीज ऐन्गुइना चिचिड़ा एक लता वाली वनस्पति है। जिसके फल लम्बे, पतले, बेलनाकार होते हैं। फलों का रंग सफेद.हरा होता है। इसकी सब्जी बनती है।
चिचिण्डा भारत में आसानी से मिलने वाली एक प्रकार की शाक सब्जी है। यह अच्छी वर्षा वाले इलाकों में लता रूप में पाई जाती है। चिचिण्डा का प्रयोग सामान्य तौर पर भोजन के लिए होता ही है। चिचिण्डा की खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु में होती है। यह समस्त भारत में उपजाई जाती है। ख़ास तौर पर उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र तथा पंजाब में सब्जी के रूप में इसकी खेती ख़ूब की जाती है। इसके साथ ही चिचिण्डा का उपयोग औषधीय गुणों के लिए भी किया जाता है चिचिण्डा की लताएं लम्बी होती हैं। इनमें कई शाखाएं भी होती हैं। ये लताएं जमीन पर भी फ़ैल सकती हैं और वृक्षों पर चढ़ने में भी सक्षम होती है। इसका कंद लम्बा तथा बेलनाकार होता है। इस पर धारियां बनी होती हैं। यह चारों तरफ ही फैलने वाली होती हैं। ये कंद दो.तीन भागों में बंटे हुए होते हैं। चिचिण्डा के पत्ते कोमल और 5 से 8 सेमी लम्बाई के होते हैं। इन पत्तों में 5 कोण होते हैं। इन पत्तों का आकार मानव के हृदय जैसा या बहुत हद तक गुर्दे के आकार जैसा होता है।पत्तों के चारों ओर कठोर रोएँ घिरे होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं। इसके फल 30 से 90 सेमी तक लम्बे होते हैं।
फलों के सेवन से अनेक प्रकार के पोषक तत्व मिलते हैं, जैसे. कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम, खनिज, कार्बोहाइड्रेटस तथा विटामिन ए प्राप्त होते हैं। नये फल हरे रंग के होते हैं। पकने पर ये फल चमकीले नारंगी रंग के हो जाते हैं। इसमें काफी संख्या में बीज होते हैं। बीज दबे हुए से नुकीले अण्डे के आकार के होते हैं। चिचिंडा की पत्तियों में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं जो अन्य सब्ज़ी में पाए जाने विटामिन सी के साथ मिलकर शरीर को पूर्णतः स्वस्थ बनाये रखने यानी इम्युनिटी को मजबूत बनाने में मदद करते हैं चिचिन्डा की खेती हमारे देश में काफी दिनों से की जाती है।
इस फसल को अधिकतर उत्तरी व दक्षिण भारत में उगाया जाता है । वर्षा ऋतु में यह छोटे.छोटे बगीचों में तथा गृह वाटिकाओं में पैदा किया जाता है । भारत के उत्तरी राज्यों में व्यवसायिक खेती वर्षा के मौसम में की जाती है फसल के फल अधिकतर हरा रंग लिये होते हैं । इस फसल के फलों के प्रयोग से शरीर को पोषक.तत्वों की प्राप्ति होती है । फलों को हरे रंग के ही भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है। छोटे.छोटे फल अधिक स्वादिष्ट होते हैं। औसतन उपज 200-250 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त हो जाती है। कच्चे व मुलायम फलों का बाजार.मूल्य अधिक मिलता है। जिससे प्रदेश में चिचिण्डा भी की खेती व्यावसायिक स्तर पर की जा सकेगी। सरकार के फैसलों और नीतियों को अधिक जनपक्षीय बनाने पर जोर देना चाहिए या किसी खास गांव पर अपना ध्यान केंद्रित करने पर दरअसल गांवों को एक हद तक आत्मनिर्भर बनाकर, गांव के लोगों के लिए रोजी.रोजगार के साधन मुहैया कराकर ही गांवों का विकास संभव है। ऐसी व्यवस्था के बगैर गांवों की तस्वीर में कभी कोई मुकम्मल बदलाव नहीं हो सकता। जो भी बदलाव होगाए उसके भी टिकाऊ होने की कल्पना नहीं की जा सकती। तो यह हमारी उत्पादन लागत को कम कर सकता है और खेती के हमारे लाभ को बढ़ा सकता है।