डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
माल्टा एक नींबूवर्गीय फल है जो भारत में उगाया जाता है, नींबूवर्गीय फलों में से 30 प्रतिशत इस फल की खेती की जाती है। भारत में मैंडरिन और स्वीट ऑरेंज की किस्म बेचने के लिए उगाई जाती है। देश के केंद्रीय और पश्चिमी भागों में मैंडरिन की खेती दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। भारत में, फलों की पैदावार में केले और आम के बाद माल्टा का तीसरा स्थान है। भारत में, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तर प्रदेश माल्टा उगाने वाले राज्य है। माल्टे का वैज्ञानिक नाम सिट्रस सिनानसिस है।
इसमें विटामिन सी 53.2 मिग्रा कार्बोहाइडेट 11.75 ग्राम, वसा 0.12 ग्राम, ऊर्जा 47.05 किलो कैलोरी, प्रोटीन 0.94 ग्राम, फाइबर 0.12 ग्राम, आयरन 0.1 मिलीग्राम, फास्फोरस 14 मिलीग्राम, मैग्नीशियम 10 मिलीग्राम, पोटेशियम 181 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते हैण् सेहत के लिहाज से औषधीय गुणों से भरपूर पहाड़ का रसीला फल माल्टा दो माह बाद बाजार में पहुंचने लगेगा। माल्टा नींबू प्रजाति का खुशबूदार एंटी ऑक्सीडेंट और शक्तिवर्धक फल है। इसका रस ही नहीं बल्की छिलका भी कारगर है। माल्टा के सेवन से जहां त्वचा चममदार रहती है वहीं दिल भी दुरुस्त रहता है। बाल मजबूत होते हैं। माल्टा के सेवन से गुर्दे की पथरी दूर होती हैए चिकित्सक पथरी के रोगियों को माल्टा का जूस पीने के सलाह देते हैं। भूख बढ़ाने, कफ कम करने, खांसी, जुकाम में यह कारगर होता है। माल्टा के छिलके से स्तर कैंसर के घाव ठीक होते हैं। छिलके से तैयार पावडर का प्रयोग करने से त्वचा में निखार आता है। छिलके से तैयार तेल बहुत फायदेमंद है। माल्टा उच्च कोलस्ट्रोल, उच्च रक्तचाप, प्रोस्टेड कैंसर में असरदार होता है। दिल का दौरे में भी फायदेमंद होता है। माल्टा नींबू प्रजाति का खुशबूदार एंटी ऑक्सीडेंट और शक्तिवर्धक फल है। इसका रस ही नहीं बल्कि छिलका भी कारगर है। माल्टा के सेवन से जहां त्वचा चममदार रहती है वहीं दिल भी दुरुस्त रहता है। बाल मजबूत होते हैं। माल्टा के सेवन से गुर्दे की पथरी दूर होती है, चिकित्सक पथरी के रोगियों को माल्टा का जूस पीने के सलाह देते हैं। भूख बढ़ाने, कफ कम करने, खांसी, जुकाम में यह कारगर होता है। माल्टा के छिलके से स्तर कैंसर के घाव ठीक होते हैं। छिलके से तैयार पावडर का प्रयोग करने से त्वचा में निखार आता है। छिलके से तैयार तेल बहुत फायदेमंद है।
पिथौरागढ़ जिले में नींबू प्रजाति के फलों के खरीदने के लिए वर्ष 2015 में उत्त्तराखंड औद्यानिक विपणन परिषद देहरादून की ओर से डीडीहाट, कनालीछीना, बेरीनाग में प्रतिवर्ष दिसंबर से क्रय केंद्र संचालित किए जाते हैं। इन केन्द्रों का संचालन उद्यान विभाग के माध्यम किया जाता है। क्रय केंद्र खोलने के बाद ही वर्ष 2015.16 से माल्टा का क्रय मूल्य घोषित किया जाता है। तब से आज तक क्रय मूल्य बराबर का है। मजे की बात यह है कि इन क्रय केंद्रों में आज तक एक भी काश्तकार माल्टा बेचने के लिए नहीं आया है। सीमांत जिले में चार हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर माल्टाद्धका उत्पादन होता है। जिले में आधा दर्जन स्थल माल्टा की प्राकृतिक फल पट्टियां रही हैं। विगत एक दशक के बीच माल्टा उत्पादन में जबरदस्त कमी आई है। पुराने माल्टा के पेड़ लगभग समाप्ति पर हैं। काश्तकार हताश हैं। माल्टा के नाम पर काश्तकारों के साथ जो हुआ उसे लेकर मायूसी छाई है। जिले के आठो विकास खंडों में माल्टा का उत्पादन होता है। जिसमें कनालीछीना, डीडीहाट और बेरीनाग में सर्वाधिक माल्टा का उत्पादन होता है। गांवों में बाजार नहीं मिल पाता है। गांवों से सड़क तक माल्टा का ढुलान घाटे का सौदा है। जिसके चलते आज तक जिले में एक भी माल्टा उत्पादक माल्टा उत्पादन से आत्मनिर्भर नहीं बन सका है।
कुछ वर्ष पूर्व तक केएमवीएन गांवों में जाकर खरीदता था। तब इसके रेट इतने कम थे कि काश्तकार माल्टा बेचने से मना करने लगे। गांव में जाकर निगम द्वारा अति न्यून दर पर माल्टा खरीदे जाते थे और सड़क तक पहुंचाने की जिम्मेदारी काश्तकार की रहती थी। माल्टा का भुगतान कई माह बाद मिलता था। बाद में उद्यान विभाग द्वारा माल्टा क्रय मूल्य तय किए जाने लगे। यह रेट खुले बाजार में बिकने वाले माल्टा से काफी कम रहे। जिसके चलते विभाग के क्रय केंद्रों में काश्तकार नहीं आते हैं। जिले में माल्टा सदियों से उत्पादित होता रहा है। सरकार आज से मात्र तीन साल पूर्व इसके प्रति सजग हुई। विभागीय कवायद काश्तकारों को राहत देने वाली साबित नहीं हुई है। तीन वर्ष पूर्व का क्रय मूल्य चल रहा है। जबकि बाजार में माल्टाकी मांग बढ़ती जा रही है। वर्तमान में फ्रूट प्रोसेसिंग यूनिट लगने से प्रत्येक परिवार माल्टा का प्रयोग जूस बनाने में कर रहा है। खुद गांवों में जाकर माल्टा खरीदा जा रहा है। सरकार केंद्रों पर 16 से लेकर सात रु पए प्रति क्रिगा की दर से माल्टा के भाव तय किए है। गांवों में ग्रामीण सैकड़े के हिसाब से माल्टा बेच रहे हैं। जो उनके लिए फायदेमंद है।
पिथौरागढ़ नगर में बिकने आया माल्टा 30से 40रुपए प्रतिकिलो बिकता है। विकास खंड कनालीछीना के गर्खा के बाराकोट निवासी माल्टा उत्पादक दिनेश जोशी बताते हैं कि माल्टा उत्पादन के लिए सरकार की तरफ से कोई प्रोत्साहन नहीं मिला था और नहीं मिल रहा है। जिला मुख्यालय के निकटवर्ती खड़किनी गांव निवासी प्रगतिशील काश्तकार राजेंद्र पांडेय का कहना है कि यदि सरकार और विभाग ने कुछ किया होता तो आज काश्तकार माल्टा उत्पादन से तौबा नहीं कर रहे होते। मुनस्यारी के मदकोट क्षेत्र के माल्टा उत्पादक केशर सिंह बताते हैं कि गांव में माल्टा तो काफी अधिक होता है परंतु उसे सड़क तक लाकर बाजार लाने में खर्च अधिक आ जाता है। सरकार और विभाग से कोई सहयोग नहीं मिलता है। विण के चंडाक क्षेत्र के माल्टा उत्पादक का कहना है कि विभाग विगत तीन साल से माल्टा का एक ही रेट तय कर रही है। इस रेट पर माल्टा बेचने पर लागत के बराबर ही रह जाता है। प्रोत्साहन नहीं मिलने से काश्तकारों का मोहभंग हो चुका है।
मुख्य उद्यान अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2018-19 में जिले में नींबू प्रजाति माल्टा, संतरा, बड़ा नींबू का 19000 मैट्रिक टन उत्पादन हुआ था। जिसमें सर्वाधिक उत्पादन माल्टा का है। जल्द ही माल्टा का समर्थन मूल्य घोषित कर दिया जाएगा। सिट्रस फलों की पैदावार के लिए चर्चित सोरघाटी में पिछले एक दशक में नींबू, माल्टा, संतरा और जामिर की पैदावार काफी कम हो गई है। साथ ही इन फलों की गुणवत्ता में भी काफी कमी आयी है। सिट्रस फलों के पैदावार कम होने से कास्तकारों को रोजी.रोटी का संकट सताने लगा है। केंद्र और राज्य सरकार किसानों की आय दुगनी करने के दावे कर रही है और कई तरह की योजनाओं चला रही हो लेकिन किसानों की परेशानी की हकीकत पहाड़ में ही देखने को मिलती है।
टिहरी जिले के भिलंगना और जाखणीधार क्षेत्र में मौसमी फल माल्टे की अच्छी पैदावार होती है लेकिन बाज़ार उपलब्ध नहीं होने के कारण आज माल्टा सड़ रहा है और किसानों की चिन्ताएं बढ़ने लगी हैं। टिहरी जिले के दूरस्थ भिलंगना और जाखणीधार क्षेत्र में नींबू की प्रजाति के मौसमी फल माल्टे की खेती खूब होती है और बाग के बाग माल्टे के पेड़ों से लदे रहते हैं लेकिन इन दिनों यही माल्टा किसानों की परेशानी का सबब बना हुआ है। खेतों से माल्टा लाने की सुविधाए माल्टे के लिए कोल्ड स्टोरेज न होना और सबसे बड़ी समस्या इन क्षेत्रों में बाज़र नहीं होना है। इसकी वजह से माल्टा खेतों में ही सड़ रहा है। माल्टा एक बहुपयोगी फल है और जूस, कैन्डी, अचार, मुरब्बाण् कई तरह से उपयोग में लाया जाता है। इसकी मैदानी क्षेत्रों में काफी डिमांड है लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में पैदावार के बावजूद माल्टे का सदुपयोग नहीं हो पा रहा हैण् टिहरी जिले में होने वाले माल्टे में तीन तरह की पैदावार होती हैए जिनकी कीमत भी अलग.अलग होतीहैण्ए ग्रेड माल्टे की कीमत 14 से 16 रुपये किलो तक होती हैण् बी ग्रेड माल्टे की कीमत 10 से 12 रुपये किलो और सी ग्रेड माल्टा की कीमत 7 से 8 रुपये किलो तक होती है।
स्थिति यह है कि आज किसान अपने संसाधनों से यदि माल्टे ऋषिकेश या देहरादून के बाज़ार तक भी लाता है तो उसे उसकी सही कीमत नहीं मिलतीण् सरकार द्वारा कम समर्थन मूल्य रखे जाने से भी उद्यान विभाग माल्टा नहीं खरीदता और किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है राज्य के गठन के दो दशक के समय की बात करें तो निहायत तौर पर यह उस राज्य की दिशा और दशा बताने के लिए अच्छा खास समय होता है। गठन के दो दशक पूरे होने पर निश्चित तौर उत्तराखंड राज्य की दशा और दिशा पर गौर किया जा रहा है। दो दशक के इस दौर में उत्तराखंड जिस दिशा की तरफ बढ़ा हैण् उत्तराखण्ड में पारम्परिक एवं अन्य फसलों के साथ सुगमता से लगाया जा सकता है जिससे एक रोजगार परक जरिया बनने के साथ साथ इसके औषधीय गुणों को संरक्षण से पर्यावण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है।ण् इस उम्मीद के साथ कि उधोग पहाड़ तक जरूर चढ़े । पहाड़ का पानी और जवानी अब सिर्फ जुमला बन कर ना रहे हकीकत मे इसमे अब अमल हो यही उम्मीद की सरकार से है। आज उत्तराखंड राज्य को बने 21 बरस पूरे हो गए। जब 9 नवम्बर, 2000 को भारत के मानचित्र पर 27वें राज्य के रूप में उत्तराखंड का उदय हुआ था तो हर किसी के दिलोदिमाग में था कि अब हमारा और हमारे प्रदेश का एक सुंदर भविष्य होगा। पर उस समय यह कल्पना किसी ने भी नहीं की होगी कि उनका यह सपना सिर्फ सपना ही रहेगाए हकीकत में कभी नहीं तब्दील होगा। आम और खास हर किसी ने यही सोचा था कि अब अलग प्रदेश बनने के बाद यहाँ के लोगों का समुचित विकास हो सकेगा। किसी ने ये नहीं सोचा था कि राज्य का विकास राजनीति की उठापटक की भेंट चढ़ जाएगा।












