डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
कई सालों से बंजर पड़े घरों के ताले क्या खुलने जा रहे हैं? ये सवाल इसलिए क्योंकि केंद्र सरकार कोरोना लॉकडाउन के दौरान अपने राज्यों से बाहर काम कर रहे लोगों की घर वापसी की गाइडलाइन जारी कर दी हैं। उत्तराखंड सरकार ने भी रोजी.रोटी की तलाश में दूरदराज गए अपने लाखों लोगों की वापसी की तैयारी शुरू की है। इसके लिए रजिस्ट्रेशन भी शुरू हो चुके हैं। तो क्या कई सालों से पलायन की मार झेल रहे इस छोटे राज्य के लिए ये लोगों की वापसी का ये एक बड़ा मौका साबित हो सकता है?
देवभूमि उत्तराखंड में पलायन एक ऐसा अजगर बनता जा रहा है, जो धीरे.धीरे यहां की संस्कृति और धरोहर को निगल रहा है। यहां पिछले एक दशक में लाखों लोगों ने पलायन किया है। उत्तर प्रदेश से अलग राज्य उत्तराखंड बनाने के लिए भले ही कई लोगों ने अपनी जान दांव पर लगा दी हो, लेकिन इसके बाद यह छोटा सा राज्य लगातार राजनीति की भेंट चढ़ता रहा। पहले आपको उत्तराखंड बनाने को लेकर हुए खूनी संघर्ष की एक झलक से रूबरू करवाते हैं। सबसे पहले अंग्रेजों के शासनकाल में उत्तराखंड को अलग करने की मांग उठी थी। इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को एक खत लिखकर उस दौर में ब्रिटिश कुमाऊं को अलग प्रांत बनाने की मांग की गई थी। इसके बाद लगातार कई बार कोशिशें होती रहीं। धीरे.धीरे कई संगठन बनने लगे, प्रधानमंत्री से लेकर राज्यपाल तक को ज्ञापन सौंपे गए। इसके बाद 1979 में उत्तराखंड क्रांति दल यूकेडी, का गठन हुआ। जिसके बाद ये आंदोलन और तेज कर दिया गया। 1988 में कई लोगों ने असहयोग आंदोलन शुरू किया और गिरफ्तारियां हुईं। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखंड को यूपी का ताज बताया और इसे अलग राज्य बनाने से साफ इनकार कर दिया। विधानसभा से लेकर संसद तक उत्तराखंड का मुद्दा गूंज रहा था, लेकिन इस आंदोलन को चिंगारी 1994 में मिली। जब पूरे राज्य में जनआंदोलन का आक्रोश फैल गया। लोग अपने अलग राज्य के लिए आर पार की लड़ाई लड़ने को तैयार थे, लेकिन 1 सिंतबर 1994 को जो हुआ वो पहाड़ के लोगों ने पहले कभी नहीं देखा। खटीमा में बिना चेतावनी के पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियां दाग दीं। जिसमें करीब 7 लोगों की मौत हुई। इसके बाद उत्तराखंड आंदोलन ने कई गोलीकांड सहे। जिनमें 2 सितंबर 1994 को मसूरी गोलीकांड जिसमें 6 लोगों की मौत हुई। 2 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर कांड जिसमें 7 लोगों की मौत और 3 अक्टूबर 1994 को देहरादून गोलीकांड 3 लोगों की मौत शामिल है।
आखिरकार 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य बना और उन हजारों आंदोलनकारियों का सपना पूरा हुआ। उत्तराखंड गठन के बाद राजनीतिक दल इन गोलीकांडों पर सियासत करके कई बार सत्ता हासिल कर चुके हैं, लेकिन आंदोनकारियों पर गोली चलाने वाले आज भी आजाद घूम रहे हैं। पहाड़ों में रोजगार और शिक्षा के लिए सबसे ज्यादा पलायन हुआ है। बेहतर सुविधाओं के लिए पलायन गांव से शुरू होकर कस्बों में हुआ। कस्बों से छोटे शहरों में और छोटे शहरों से महानगरों तक पहुंचा। लेकिन अब 20 साल बाद कोरोना महामारी उत्तराखंड सरकार के लिए एक बड़ा मौका लेकर आई है, क्योंकि उत्तराखंड के ज्यादातर लोग शहरों में आकर होटलों और फैक्ट्रियों में छोटी.मोटी नौकरियां करते हैं, लेकिन अब जब लॉकडाउन ने सब बंद कर दिया है तो लोग सोचने पर मजबूर हो चुके हैं कि आखिर उन्होंने अपना घर अपना गांव क्यों छोड़ दिया।
हजारों लोग ऐसे हैं, जिन्होंने गांव में ही कुछ नया करने का मन बनाया है। इसीलिए सरकार अगर ऐसे लोगों को मौका देती है, उनके रोजगार के लिए बड़े स्तर पर योजनाएं लागू करती हैं तो ये उल्टा पलायन उत्तराखंड के गांवों के लिए संजीवनी साबित हो सकता है। अगर रोजगार और बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा की गारंटी मिलेगी तो शहरों की धूल फांकने वाला व्यक्ति अपने खेत खलियानों और अपने पैतृक घर पर ही रहकर अपनी जिंदगी बिताएगा इस बार राजनीति को दरकिनार कर उत्तराखंड सरकार को चाहिए कि वो बाहें फैलाकर अपनों को स्वागत करे और उन्हें गले लगाए। ऐसा करके जहां बंजर पड़े हजारों गांवों में एक बार फिर बच्चों की किलकारियां गूजेंगीं, वहीं राज्य की इकनॉमी पर भी काफी असर पड़ेगा। अगर राज्य में हजारों लोग रोजगार करेंगेए अपना स्टार्टअप शुरू करेंगे तो इससे उत्तराखंड की इकनॉमी को एक बड़ा बूस्ट जरूर मिलेगा। इससे साबित हो जाएगा कि क्या वाकई नेताओं को पलायन की चिंता है या फिर वो इस पलायन के तवे पर 20 साल से अपनी रोटियां सेककर पेटभर खाना खा रहे हैं। उत्तराखंड सरकार के ग्राम्य विकास और पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अल्मोड़ा. 9303, बागेश्वर. 1541, चमोली.3214, चंमावत.5707, नैनीताल. 4771, पौड़ी.12039, पिथौरागढ़.5035, रुद्रप्रयाग.4247, टिहरी.8782, उत्तरकाशी.4721 में लोग रिवर्स पलायन में वापस लौटे हैं। रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड राज्य में कुल 59360 लोग अपने घर.गाँव वापस लौटे हैं।
इतनी संख्या में लोग वापस आ रहे है, तो वो खाली तो बैठ नहीं सकते हैं, इनके लिए मनरेगा जैसी योजनाएं भी काफी मददगार साबित हुईं हैं। टिहरी.गढ़वाल जिले के जौनपुर ब्लॉक की थान ग्राम पंचायत में दो दर्जन से ज्यादा दिल्ली और दूसरे बड़े शहरों से वापस लौटे हैं, यहां पिछले कुछ महीनों में मनरेगा का काम भी तेजी से हुआ है। यह बात प्रासंगिक है अगर इन्हें यहीं पर काम मिल जाए तो लोग बाहर ही क्यों जाएंगे।