डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड का खूबसूरत पहाड़ी शहर नैनीताल, अंग्रेजों के जमाने में इस शहर की रौनक देखते ही बनती थी। भारत में चाय पीने का चलन अंग्रेज ही लेकर आए थे। देश की आजादी के बाद अंग्रेज तो चले गए, लेकिन चाय यहीं की होकर रह गई। उत्तराखंड के अलग.अलग हिस्सों के अलावा नैनीताल के श्यामखेत में भी ऑर्गेनिक चाय का उत्पादन किया जा रहा है। यहां मिलने वाली ऑर्गेनिक चाय स्वाद और सेहत दोनों के पैमाने पर फिट है। श्यामखेत में पैदा होने वाली चाय एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर है। जो कि बीपी और शुगर जैसी गंभीर बीमारियों को दूर रखने में मदद करती है। सेहत की दृश्टी से लाभकारी और स्वदिष्ट जैवीक चाय इन दिनों नैनीताल के श्यामखेत में उत्तराखण्ड टी डेवपमेंट बोर्ड द्वार उगाई जा रही है। इससे स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल रहा है और जैविक चाय की अंतरराश्ट्रीय बाजार में अच्छी कीमत मिलने से स्थानीय किसानों को काफी मुनाफा भी हो रहा है।
हरे पेड़ों से लबरेज श्यामखेत का चाय बागान में जैविक चाय उगायी जाती है। अच्छी मिट्टी और मौसम की वजह से यहां पर आसानी से जैविक चाय उग रही है, जिसकी खेती 79 हेक्टेयर मे की जा रही है। जैविक चाय में किसी तरह की कैमिकल खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है। बल्कि स्थानीय लोगों द्वारा तैयार गोबर की खाद का प्रयोग किया जाता है। जिससे यह चाय औषधि युक्त और सेहत के लिये लाभकारी साबित होती है। जुलाई, अगस्त, सितम्बर माह में इस चाय का अधिक उत्पादन होता है। श्याम खेत स्थित फैक्ट्री मानकों के हिसाब से चाय तैयार की जाती है। इस उत्पादन से स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है। वहीं महिलाओं को भी रोजगार का साधन मिल गया है। श्यामखेत स्थित चाय बागान मे पत्तियां तोड़ने सुखाने और पैकिंग का कार्य महिलायएं करती हैं। श्यामखेत का यह चाय बागान पर्यटकों को भी अपनी ओर खींचता है।
उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड की पहल पिछले एक साल के दौरान श्यामखेत चाय बागान को एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में बदलने में कामयाब हो चुकी है। पर्यटकों के लिए प्रवेश शुल्क तय हो गया है। इससे आमदनी भी शुरू हो गई है। पिछले एक साल में यहां एक लाख से अधिक पर्यटक पहुंच चुके हैं। श्यामखेत चाय बागान 1994.95 में 12 हेक्टेयर क्षेत्र में विकसित किया गया था। तब उद्देश्य केवल चाय की बिक्री था। फिर धीरे.धीरे यह इलाका पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने लगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड ने जनवरी 2018 में फैसला लिया कि बागान में अब 20 रुपये एंट्री फीस लगाई जाई। यहां इसके साथ ही बोर्ड ने करीब तीन हजार किलो चाय भी बेची। बागान में अच्छी गुणवत्ता वाली चाय की कीमत 1200, 800 और 600 रुपये किलो है। इससे करीब 25 लाख रुपये की आय हुई है। अब बोर्ड की मंशा यहां की चाय को कोलकाता चाय मंडी तक पहुंचाने की है।
इसी बागान की तर्ज पर अब चाय विकास बोर्ड निगलाट, पदमपुरी, गुनियालेख, नथुवाखान, बेतालघाट के चाय बागानों को भी पर्यटकों के लिए खोलने की तैयारी में है। यहां आकर वह जैवीक चाय ले जाना नहीं भूलते हैं। श्यामखेत चाय बागान में भी लॉकडाउन का खासा असर दिखा है। चाय बागान में स्थित फैक्ट्री में निर्मित चाय के खरीदार नहीं मिलने के कारण चाय को डंप कर दिया गया है। इस बार यहां चाय पत्तियों का अच्छा उत्पादन हुआ था। जब इसकी बिक्री का समय आया तो कोरोना संक्रमण के चलते पूरे देश में लॉकडाउन घोषित हो गया। नतीजतन यहां चाय के खरीदार ही नहीं आए और चाय बागान प्रबंधन के आगे चाय पत्ती को डंप करने के सिवाय कोई चारा नहीं रहा।
इस बार श्यामखेत में पांच हजार किलो चाय पत्तियों का उत्पादन हुआ। चाय की पत्तियों की प्रोसेसिंग के बाद उसकी कुल मात्रा का लगभग 22 प्रतिशत चाय तैयार होती है। अब पूरी प्रक्रिया के बाद इसकी नीलामी की जाएगी। जून माह में चाय बागान को लगभग 18 लाख का नुकसान हुआ है। पिछले वर्ष जून माह में जहां चाय बागान के सेल काउंटर से लगभग 18 लाख की बिक्री हुई थीए वहीं वर्तमान में यह बिक्री एक लाख से भी काफी कम है। इधर चाय बागान प्रबंधन की मानें तो कोलकाता आदि शहरों में इस चाय की नीलामी की जा सकती है। मालूम हो कि भवाली के समीप श्यामखेत में 30 एकड़ में यह विश्व प्रसिद्ध चाय बागान है। यहां हर वर्ष उत्पादित चाय की काउंटर सेल हो जाती है। पूरे वर्ष हजारों की संख्या में पर्यटक यहां आते हैं और यहां चाय बागान में ही चाय पत्तियों से चाय निर्माण की प्रक्रिया को देखते हुए इसकी काउंटर से ही इसकी खरीद कर लेते हैं। इस बार पर्यटक नहीं आने से पूरे चाय बागान में सन्नाटा पसरा हुआ है। प्रबंधक चाय बोर्ड श्यामखेत की मानें तो अब चाय पत्तियों से चाय बनाने तक की पूरी प्रक्रिया करने के बाद उसे नीलाम कर दिया जाएगा। सरकारी स्तर पर भी कोई प्रयास किया जा सकती है