गुरू गोविंद दोनों खड़े का को लागूं पांय, बलिहारी गुरू आपने गोविंद दियो बताय। लेकिन गोविंद ने कहा कि पहले गुरू के पांव ही लगना चाहिए। मतलब यह कि गुरु का पद ही सर्वोपरि है। किसी ने कहा है कि गुरू के बिना शिक्षा अधूरी है। विवेकानंद, रविंद्र नाथ टैगोर से लेकर अरविंदो तक सभी के गुरु थे, उसी गुरू से प्राप्त हुई शिक्षा के कारण ही वह समाज और देश दुनिया को शिक्षा देने लायक बन सके। गुरु के बिना संपूर्ण शिक्षा संभव नहीं है। यह बात अलग है कि गुरु से शिक्षा प्राप्त कर शिष्य गुरु से आगे निकल सकता है। एकलव्य का प्रकरण सभी को पता है। जंगलवासी एकलव्य धनुष विद्या में प्रवीण बनाना चाहते थे। उन्होंने स्वाध्याय से प्रवीणता हासिल की, लेकिन गुरु द्रोणाचार्य मिट्टी की मूर्ति बनाकर अपनी विद्या को उस मुकाम तक ले गए कि गुरु द्रोण भी उनकी निपुणता को लेकर आश्चर्यचकित रह गए थे।
गुरु का स्थान सर्वोपरि है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती। गुरुकुलों ने राम, कृष्ण जैसे योद्धा पैदा किए थे। गुरुकुलों की यह परंपरा भारतीय शिक्षा पद्धति को उच्च स्तर तक ले जाने में सफल रही, हालांकि अब भारत में मैकाले की शिक्षा पद्धति ने भारत में गुरु पद का स्थान निम्नतर जरूर किया है।