डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
मुनस्यारी एक खूबसूरत पर्वतीय स्थल है। यह उत्तराखण्ड में जिला पिथौरागढ़ का सीमांत क्षेत्र है, जो एक तरफ तिब्बत सीमा और दूसरी ओर नेपाल सीमा से लगा हुआ है। मुनस्यारी चारों ओर से पर्वतों से घिरा हुआ है। मुनस्यारी के सामने विशाल हिमालय पर्वत श्रंखला का विश्व प्रसिद्ध पंचाचूली पर्वत, हिमालय की पांच चोटियां, जिसे किवदंतियों के अनुसार पांडवों के स्वर्गारोहण का प्रतीक माना जाता है, बाई तरफ नन्दा देवी और त्रिशूल पर्वत, दाई तरफ डानाधार जो एक खूबसूरत पिकनिक स्पॉट भी है और पीछे की ओर खलिया टॉप है। मुनि का सेरा अर्थात तपस्वियों का तपस्थल होने के कारण इसका नाम मुनस्यारी पड़ा। मुनस्यारी पिथौरागढ़ से 165 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। यहां से हिमालय की बर्फीली चोटियों के साथ ही नैनीताल की भी चोटियां दिखाई देती हैं।
मुनस्यारी में ऊनी वस्तुएं शाॅल, दन, कालीन, पंखी, पशमीना दुशाले, जड़ी.बूटियां आदि मिलती हैं। यहां से रालम, नामिक और मिलम ग्लेशियर का रास्ता जाता है। मदकोट एक सुरम्य पहाड़ी हिल है, जो प्राकृतिक भव्यता के साथ खुशनुमा है, क्योंकि यह स्थान वनस्पति से समृद्ध है। मदकोट गांव उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में मुनस्यारी से लगभग 22 किमी दूर स्थित है। यहां गर्म पानी का झरना धारचूला मार्ग पर स्थित है। मदकोट को व्यापक रूप से आवास थर्मल स्प्रिंग्स के लिए जाना जाता है। जिसमें हीलिंग शक्तियां होती हैं जो जोड़ों, मांसपेशियों या तंतुमय ऊतकों, विशेष रूप से संधिशोथ गठिया को फुलाती और दर्द ठीक करती है। इन गर्म पानी के झरनों का पानी भी त्वचा के फटने से छुटकारा पाने में मदद करता है। मदकोट गाँव मुनस्यारी गोरी गंगा के किनारे स्थित है।
सामान्यतया पहाड़ पर लोग नहाने और खासकर खुले में नहाने में ठंड की वजह से डर जाते हैं, लेकिन कुमाऊं मंडल यहां पिथौरागढ़ जिले के सुदूरवर्ती प्राकृतिक सुषमा के बीच गोरी नदी के किनारे गोवा की तरह खुले में न केवल प्राकृतिक तौर पर गर्म पानी से नहा पाएंगे, वरन यहां नहाने से उनका शरीर नदी के नाम की तरह गोरा भी होगा और त्वचा रोगों से मुक्ति भी मिलेगी। देश में गर्म पानी के तप्त कुंड तो कई स्थानों पर मिल जाते हैं, लेकिन देश का पहला गर्म पानी का प्राकृतिक तप्त स्विमिंग पूल पिथौरागढ़ जिले के मदकोट कस्बे में बनने जा रहा है। खास बात यह भी है कि इस स्विमिंग पूल का पानी प्राकृतिक तौर पर गुनगुना.गर्म होने के साथ ही गंधक युक्त भी है। इससे न केवल शरीर की कांति साफ गोरे रंग में दमकने लगती है, वरन इससे अनेक प्रकार के त्वचा रोगों से भी मुक्ति मिलती है।
उल्लेखनीय है कि कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा मदकोट में एक नया पर्यटक आवास गृह बनाया गया है, जिसके पास ही बहने वाली गोरी नदी के पूरे जलागम क्षेत्र में काफी मात्रा में गंधक की खानें हैं। गंधक की पहचान शरीर की कांति का गोरा करने के लिए भी है, संभवतया इसी कारण इस नदी का नाम गोरी नदी पड़ा होगा। गंधक युक्त प्राकृतिक जल गर्म तो होता ही है, साथ ही कुष्ठ जैसे असाध्य बताए जाने वाले रोगों के लिए भी रामबाण माना जाता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के दृष्टिकोण से भी माना जाता है कि गंधक युक्त जल में नहाने से त्वचा के एक्जीमा यानी खाज.खुजली व अन्स सभी तरह के त्वचा रोग भी ठीक हो जाते हैं। मदकोट में गंधक के तप्त कुंडों का लाभ यहां आने वाले सैलानियों को दिलाने के लिए पर्यटक आवास गृह के पास ही इसके छह गुणा तीन मीटर के तीन स्पान युक्त स्विमिंग पूल का निर्माण करा दिया है। निगम के मंडलीय प्रबंधक पर्यटन ने बताया कि देश में राजगीर, हिमांचल प्रदेश, बद्रीनाथ आदि अनेक स्थानों पर तप्त कुंड तो कई स्थानों पर मिलते हैं, लेकिन मदकोट में बन रहा स्विमिंग पूल देश का पहला तप्त स्विमिंग पूल होगा।
हिमालय के बेहद करीब होने के बावजूद मदकोट में स्थानीय युवक.युवतियां गोवा की तर्ज पर लगातार नहाते रहते हैं। ऐसा इसलिए कि यहां मौजूद गोरी नदी में आसपास स्थित गंधक की खानों का भंडार है, जिस कारण यहां पानी सर्दियों में भी गुनगुना रहता है। इसलिए यहां कितनी भी ठंड में लोग आराम से खुले में नहाते हैं और नदी किनारे रेत पर आराम से लेटे रहते हैं। निगम ने कहा कि स्विमिंग पूल बनने से सैलानी भी यहां आकर ऐसा ही आनंद उठा पाएंगे। हाल में हुई भारी बरसात के कारण बांदल नदी का जलस्तर इतना बढ़ गया था कि इस क्षेत्र में जान.माल की तो कोई हानि नहीं हुई परन्तु प्राकृतिक संसाधन जैसे जलस्रोतों ने अपना रास्ता बदल दिया। जिसकी मार घुत्तू गंधक पानी यानि इस चश्में पर भी पड़ी। मुनस्यारी में पर्यटक नहीं पहुंचने से पर्यटन कारोबार चौपट हो गया है।
लॉकडाउन के बाद से अब तक 5 माह में मुनस्यारी में कुल आधादर्जन पर्यटक ही पहुंचे हैं। पर्यटन नगरी मुनस्यारी में पर्यटन कारोबार खत्म होने से जहां सैकड़ों लोग बेरोजागरी का दंश झेल रहे हैं, वहीं कारोबारियों के सामने भी भुखमरी की नौबत आ गई है। बैंक से मोटा कर्ज उठाकर कारोबार कर रहे कारोबारी दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गए हैं। हालात इस कदर है कि ना तो लोग इस चश्में की नियत समय में मरम्मतीकरण का काम कर पा रहे हैं और ना ही सरकार द्वारा कोई खास कदम उठाए जा रहे हैं। कुल मिलाकर वन कानूनों के कारण घुत्तू गंधक पानी का चश्मा भविष्य में अपने प्राकृतिक स्वरूप में आएगा कि नही जो अहम सवाल है।












