देहरादून। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच परिसंपत्तियों के बंटवारे के मामले में राज्य सरकार श्वेत पत्र लाए। यदि श्वेत पत्र लाना संभव नहीं है तो स्टेटस रिपोर्ट ही जारी कर दे। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विवाद समाप्त होने का दावा कर रहे है, जबकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री चुप हैं। यह चुप्पी राज्य के खिलाफ जाती है। श्री रावत ने कहा कि अल्पकाल के लिए राज्य का मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने जितनी परिसंपत्तियों के मामले सुलझाए हैं, उतने आज तक किसी सरकार ने नहीं सुलझाए।
पूर्व मुख्यमंत्री श्री रावत उत्तराखंड समाचार के ‘उत्तराखंड के सुलगते सवाल’ मुद्दे के तहत ‘यूपी का उपनिवेश उत्तराखंड!’ विषय पर उत्तराखंड समाचार के संपादक शंकर सिंह भाटिया के साथ चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज बहुत आदर्श वातावरण है, एक पार्टी की दोनों राज्यों में सरकार है। दोनों मुख्यमंत्रियों के बीच अच्छी समझ भी दिखती है, लेकिन इस समझ का उपयोग उत्तराखंड सरकार को विवाद को सुलझाने में करना चाहिए, जो वह नहीं कर पा रही है। उन्हें लगातार बैठना चाहिए था, लेकिन इन्होनेे साढ़े तीन साल गुजार दिए लेकिन मामला नहीं सुलझा पाए। उत्तर प्रदेश के हठधर्मिता कतई उचित नहीं है।
श्री रावत ने कहा कि यह लीगली और संवैधानिक तौर पर सही नहीं है। दोनों को मिलकर बैठना पड़ेगा। जब उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक पेश हुआ, उस समय विपक्ष न होने के कारण एकपक्षीय निर्णय लिया गया। यह रूलिंग पार्टी भाजपा को देखना चाहिए था। उस समय देश तथा प्रदेश में भाजपा का प्रभाव था। इन्होंने नाम भी उत्तराचंल कर दिया था, उसे मैंने उत्तराखंड करवाया था। जिम्मेदारियों को निभाने के लिए कठिन फैसले लेने पड़ते हैं। अंतिम रूप से जो बात कही जा रही है, वह उचित नहीं है। परिसंपित्तयों के मामले में आज की स्थिति पर स्टेटस रिपोर्ट सामने आनी चाहिए। दूसरे राज्यों में भी इस तरह के विवाद हैं और आज भी विवाद मौजूद हैं। इसके लिए मुख्यमंत्री सर्वदलीय बैठक बुला सकते हैं। कांग्रेस क्यों नहीं उठाती मामले को यह सवाल आपका है, हम थोड़ा दूसरे प्रकृति के हैं, इसलिए इसे नहीं उठाते, दूसरों को भी इसे उठाना चाहिए।
क्श्मीरीगेट वाली संपत्ति का मामला है, कानपुर में इसी तरह का मामला है। उत्तर प्रदेश द्वारा अनावश्यक रूप से दबाया गया है। पेंशन वाला मामला भी यदि कोर्ट ने आदेश नहीं दिया होता तो उत्तर प्रदेश इस पर भुगतान नहीं करता। उत्तराखंड के साथ न्याय करना उत्तर प्रदेश दायित्व है, इस समय सबसे आदर्श स्थिति है। डबल इंजिन की सरकार है, लेकिन डबल इंजिन उत्तराखंड को न्याय दिलाने में असफल साबित हो रहा है।
इस दौरान चर्चा में मौजूद शक्तिशैल कपरूवाण ने कहा कि हम उत्तर प्रदेश के गुलाम बने हुए हैं। उत्तराखंड ने घुटने टेके हुए हैं। नारायण दत्त तिवारी के दौर में स्वर्णिम काल था, लेकिन तब भी कोशिश नहीं हुई। इस मामले को प्रधानमंत्री तक ले जाया जाए और एक लाइन के प्रस्ताव से मामले को सुलझा लिया जाए। उत्तराखंड के साथ अन्याय किया गया है। बिना मामलों को सुलझाए पुनर्गठन आयुक्त का लखनउ में स्थित कार्यालय समाप्त कर दिया। उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश की संपत्ति है, लेकिन उत्तर प्रदेश में उत्तराखंड की एक भी संपत्ति क्यों नहीं है? यहां विकास कहां हुआ, यहां तो अन्याय ही अन्याय हुआ है। आप चाहें तो सरकार पर दबाव बना सकते हैं, लेकिन दिल्ली के दबाव में कांग्रेस पार्टी भी कुछ नहीं करती है।