डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
पालक वानस्पतिक नाम अमरन्थेसी कुल का फूलने वाला पादप है, जिसकी पत्तियाँ एवं तने शाक के रूप में खाये जाते हैं। पालक में खनिज लवण तथा विटामिन पर्याप्त रहते हैं, किंतु ऑक्ज़ैलिक अम्ल की उपस्थिति के कारण कैल्शियम उपलब्ध नहीं होता। यह ईरान तथा उसके आस पास के क्षेत्र का देशज है। ईसा के पूर्व के अभिलेख चीन में हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि पालक चीन में नेपाल से गया था। 12वीं शताब्दी में यह अफ्रीका होता हुआ यूरोप पहुँचा। पालक में जो गुण पाए जाते हैं, वे सामान्यतः अन्य शाक.भाजी में नहीं होते। यही कारण है कि पालक स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है, सर्वसुलभ एवं सस्ता है। यह भारत के प्रायः सभी प्रांतों में बहुलता से सहज मिल जाता है। इसका पौधा लगभग एक से डेढ़ फुट ऊँचा होता है। इसके पत्ते चिकने, मांसल व मोटे होते हैं। यह साधारणतः शीत ऋतु में अधिक पैदा होता है, कहीं.कहीं अन्य ऋतुओं में भी इसकी खेती होती है इसमें पाए जाने वाले तत्वों में मुख्य रूप से कैल्शियम, सोडियम, क्लोरीन, फास्फोरस, लोहा, खनिज लवण, प्रोटीन, श्वेतसार, विटामिन ए एवं सी आदि उल्लेखनीय हैं। इन तत्वों में भी लोहा विशेष रूप से पाया जाता है।
लौह तत्व मानव शरीर के लिए उपयोगी, महत्वपूर्ण, अनिवार्य होता है। लोहे के कारण ही शरीर के रक्त में स्थित रक्ताणुओं में रोग निरोधक क्षमता तथा रक्त में रक्तिमा लालपन आती है। लोहे की कमी के कारण ही रक्त में रक्ताणुओं की कमी होकर प्रायः पाण्डु रोग उत्पन्न हो जाता है ह तत्व की कमी से जो रक्ताल्पता अथवा रक्त में स्थित रक्तकणों की न्यूनता होती है, उसका तात्कालिक प्रभाव मुख पर विशेषतः ओष्ठ, नासिका, कपोल, कर्ण एवं नेत्र पर पड़ता है, जिससे मुख की रक्तिमा एवं कांति विलुप्त हो जाती है। कालान्तर में संपूर्ण शरीर भी इस विकृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। लोहे की कमी से शक्ति ह्रास, शरीर निस्तेज होना, उत्साहहीनता, स्फूर्ति का अभाव, आलस्य, दुर्बलता, जठराग्नि की मंदता, अरुचि, यकृत आदि परेशानियाँ होती हैं। आयुर्वेद के अनुसार पालक की भाजी सामान्यतः रुचिकर और शीघ्र पचने वाली होती है। इसके बीज मृदु, विरेचक एवं शीतल होते हैं। ये कठिनाई से आने वाली श्वास, यकृत की सूजन और पाण्डु रोग की निवृत्ति हेतु उपयोग में लाए जाते हैं।
गर्मी का नजला, सीने और फेफड़े की जलन में भी यह लाभप्रद है। यह पित्त की तेजी को शांत करती है, गर्मी की वजह से होने वाले पीलिया और खाँसी में यह बहुत लाभदायक है। पालक की शाक में एक तरह का क्षार पाया जाता है, जो शोरे के समान होता हैए इसके अतिरिक्त इसमें मांसल पदार्थ 3.5 प्रतिशत, चर्बी व मांस तत्वरहित पदार्थ 5.5 प्रतिशत पाए जाते हैं।
स्त्रियों के लिए पालक का शाक अत्यंत उपयोगी है। युवतियां यदि अपने चेहरे का नैसर्गिक सौंदर्य एवं रक्तिमा लालिमा, बढ़ाना चाहती हैं, तो उन्हें नियमित रूप से पालक के रस का सेवन करना चाहिए। प्रयोग से देखा गया है कि पालक के निरंतर सेवन से रंग में निखार आता है। इसे भाजी सब्जी बनाकर खाने की अपेक्षा यदि कच्चा ही खाया जाए, तो अधिक लाभप्रद एवं गुणकारी है। पालक से रक्त शुद्धि एवं शक्ति का संचार होता है। भारत में यह अत्यधिक विस्तार से नहीं बोया जाता। पालक की पत्तियों में शारीरिक विकास के लिए आवश्यक लगभग सभी पोषक तत्व पाए जाते हैं। मिनरल्स, विटामिन और दूसरे कई न्यूट्रीएंट्स से भरपूर पालक एक सुपर.फूड है। आमतौर पर लोग पालक को सब्जी बनाकर या फिर पराठे के रूप में खाना पसंद करते हैं लेकिन अगर आपको पालक का पूरा फायदा चाहिए तो पालक का जूस पीना सबसे ज्यादा फायदेमंद रहेगा। उत्तराखंड की स्पेशल रेसिपी पालक का कापा ऐसी को यदि बागवानी रोजगार से जोड़े तो अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग है। मनुष्य का प्रकृति से संबंध पृथ्वी के जन्म के समय से रहा है। बिना प्रकृति और पर्यावरण के धरती पर प्राणियों का जीवित रहना संभव नहीं उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक परिस्थितियां और जलवायु फूलों की खेती के लिए बहुत अनुकूल हैं। इसके उत्पादन और गुणवत्ता में बढ़ोतरी के लिए अच्छे उपाय किए जाने चाहिए।












