पिथौरागढ़। जिले के डीडीहाट तहसील के अंतर्गत ग्राम सभा लीमा के लटेनाथ मंदिर में पूर्णिमा के दिन लगने वाला मेला संपन्न हुआ। ग्रामवासी गांव के मध्य में स्थित पंचायतघर से कलश लेकर चले। कलशयात्रा का लटेनाथ मंदिर में जाकर समापन हुआ।
गौरतलब है कि लटेनाथ देवता को लीमा गांव की सुरक्षा का देवता माना जाता है। बताया जाता है कि जब आबादी बहुत कम थी पास के बाजानी गांव में दैत्य का प्रकोप बढ़ा और दैत्य आगे बढ़ते हुए लीमा की ओर अग्रसर हुआ। लटेनाथ देवता ने किमचूरा के रण में दैत्य को साध दिया। उसके प्राण इस शर्त पर नहीं लिए कि वह कभी भी लीमा गांव में प्रवेश नहीं करेगा।
गांव के लोग लटेनाथ मंदिर में पूर्णिमा के दिन और रात्रि जागरण करते हैं। दास समुदाय के लोग नगाड़ों के साथ इस आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। धूनी रमाकर रात भर लोग जागरण करते हैं और लटेनाथ के झोड़े गाकर उनके अवतरण का आहवान करते हैं। उत्तराखंड में देव मंदिर के चारों तरफ वृक्षों का आवरण बनाने की परंपरा है। इसे स्थानीय भाषा में घाड़ी कहा जाता है। उस संपूर्ण क्षेत्र में लटेनाथ मंदिर की घाड़ी सबसे बड़ी है। जिसका दायरा करीब डेढ़ किमी से अधिक है। इस घाड़ी में सैकड़ों साल पुराने बांज, बुरांश, काफल और विभिन्न प्रजातियों के पेड़ हैं। इनकी आयु सैकड़ों साल की बताई जाती है।
लटेनाथ की जयकार के साथ लोग पंचायत भवन से मंदिर पहुंचे। महिलाएं परंपरागत वेशभूषा में सिर पर कलश लेकर चली। एक खड़ी चढ़ाई पार करने के बाद लोग मंदिर में पहुंचे। उसके बाद यह आयोजन संपन्न हुआ।