डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड राज्य में सड़क ने विकास किया है या विनाश? राज्य में जितना अंदर सड़क गयी है, उतना पलायन की दर वहां बड़ी है, लेकिन जिन जगहों पर सड़क गयी है, वहां के लोगों का जीवन स्तर भी बड़ा है। इस राज्य क्षेत्र में सड़क निर्माण की पहली बार भारत सरकार को तब सूझी जब भारत में चीन ने आक्रमण किया। सरकार को तब पहली बार लगा कि इस क्षेत्र में भी सड़क का निर्माण किया जाना चाहिये। विश्व भर में प्रसिद्ध चिपको आंदोलन के मूल कारणों में एक मुख्य कारण सड़कों के निर्माण के लिये किया जाने वाला अंधाधुंध वन कटान का विरोध था। जिसे अब केवल गौरा देवी के एक जंगल से चिपकने की घटना तक सीमित कर दिया गया है, जबकि यह एक दशक तक लोगों के वन अधिकारों की लड़ाई है।
प्रधानमंत्री सड़क योजना शुरू होने के साथ पूरे देश की तरह उत्तराखंड के गावों में भी सड़कों का अंधाधुंध निर्माण शुरू हुआ। मनरेगा ने सड़क निर्माण के कार्य और अधिक गति देने का काम किया। उत्तराखंड में इन सड़कों से गावों से बाहर जाने के रास्ते तो खोलने का काम किया, लेकिन इनका निर्माण कभी इस तरह नहीं किया गया, सड़क बनने से कोई गांव बसा हो या किसी सड़क ने सिवाय ड्राइविंग के गांव के युवाओं को कोई नवीन रोजगार दिया हो। उत्तराखंड की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखकर एक भी सड़क का निर्माण किया गया हो ऐसा मुश्किल है। चूंकि यहां अधिकांश सड़कों का निर्माण केंद्र द्वारा दिये फंड द्वारा होता है जिसमें त्वरित और अधिक पैसा आता है। केंद्र के अधिकारी इतनी जहमत कम ही उठाते हैं कि उत्तराखंड के किसी गांव में आये और सर्वे रिपोर्ट की जांच करें फिर पर्यावरण रिपोर्ट का आंकलन करें और सड़क बनाने की अनुमति दें। चारधाम यात्रा ऑल वैदर रोड। ऑल वैदर रोड का अर्थ है हर मौसम में खुलने वाली रोड, जिसे भी इन चार धामों के विषय में जानकारी होगी वह जानता होगा कि यह धाम वर्ष में कम से कम तीन से चार महिना बंद रहते हैं। ऐसे में चारधाम ऑल वेदर रोड जैसा कोई कांसेप्ट ही नहीं बनता। कायदे से देखा जाये तो एक सवाल यह भी है कि क्या इन सड़कों के निर्माण की आवश्यकता वास्तव में थी। दिमाग में जोर डालकर याद करेंगे तो उत्तराखंड में सड़क न होना परेशानी नहीं है सड़क का रखरखाव बड़ी परेशानी है। सरकार ने सड़क के रखरखाव के लिये कदम उठाने के बजाय सड़कों को चौड़ा कर दिया। इन सब मामलों के बाद अब तक हमने पर्यावरण के विषय में बात नहीं की है।
पारस्थितिकी दृष्टि से अतिसंवेदनशील क्षेत्र में 900 किमी का सड़क निर्माण कार्य चल रहा है बिना किसी पर्यावरण प्रभाव आंकलन के, कानून के मुताबिक़ यदि 100 किमी से अधिक राजमार्ग का निर्माण किया जाता है, तो सरकार को पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिपोर्ट बनानी पड़ेगी। सरकार ने 900 किमी की ऑल वैदर रोड को 53 भागों में बांट दिया। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी, जब से ऑल वैदर रोड का निर्माण कार्य शुरू हुआ है आये दिन सड़क हादसे हो चुके हैं। सड़कों को लम्बवत काटा जा रहा है। पहाड़ को रोकने के लिये कंक्रीट की दीवार बनायी जा रही है जो कभी भू.स्खलन को रोक ही नहीं सकती। सड़क के चौड़े होने से प्रवासी उत्तराखंडियों को फायदा होगा वाली बात आधा सच है। हकीकत यह है कि प्रवासी उत्तराखंडी साल में दीवाली, होली और गर्मियों की छुट्टी में पहाड़ आता है। इसके लिये वह प्राइवेट गाड़ियों या उत्तराखंड परिवहन की बसों पर निर्भर रहता है और ये दोनों इस दौरान क्या हाल करते हैं किसी प्रवासी उत्तराखंडी से नहीं छुपा है। परियोजना के तहत चारधाम राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया जा रहा है। इस परियोजना के लिए पेड़ों की कटाई से पर्यावरण को हुए नुकसान को लेकर अब सर्वोच्च न्यायलय ने केंद्र सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि साल 2018 में जारी किए गए नोटिफिकेशन का अनुपालन किया जाए।
चारधाम राष्ट्रीय राजमार्ग उत्तराखंड में हाईवे परियोजना है। इसके अंतर्गत राज्य में स्थित चार धाम तीर्थस्थलों को एक्सप्रेस राष्ट्रीय राजमार्गों के माध्यम से जोड़ा जाना है। इसके अंतर्गत कम से कम 10.15 मीटर चौड़े दो.लेन प्रत्येक दिशा में राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण होगा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह भी निर्देश दिया कि इस परियोजना के निर्माण के कारण पर्यावरण को जो क्षति पहुंची है, उसकी भरपाई के लिए पौधरोपण कराया जाए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चार धाम निर्माण के कारण वन क्षेत्र के नुकसान की भरपाई के लिए पौधारोपण करने का भी निर्देश दिया गया है। सरकार ने कहा कि पौधारोपण का काम लगातार चल रहा है, लेकिन अदालत 2018 के सर्कुलर में छोटा सा बदलाव करने की मंजूरी देने से पीठ ने इनकार कर दिया।
चारधाम परियोजना का मकसद सभी मौसम में पहाड़ी राज्य के चार पवित्र स्थलों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ना है। इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद हर मौसम में चार धाम की यात्रा की जा सकेगी। इस परियोजना के तहत 900 किलोमीटर लम्बी सड़क परियोजना का निर्माण हो रहा है। अभी तक 400 किलोमीटर सड़क का चौड़ीकरण किया जा चुका है। एक अनुमान के मुताबिक अभी तक 25 हजार पेड़ों की कटाई हो चुकी है जिससे पर्यावरणविद् नाराज हैं सर्कुलर में स्पष्ट किया गया है कि प्रतिदिन 8000 पैसेंजर कार यूनिट ;पीसीयूद्ध तक के दबाव वाली सड़कों की चौड़ाई इंटरमीडिएट डबल लेन के हिसाब से तय की जाएगी। सड़क की चौड़ाई बढ़ने पर अधिक पेड़ कटेंगे व भूस्खलन के नए जोन भी अस्तित्व में आने की आशंका बनी रहेगी। इसके बाद भी अन्य 21 सदस्यों ने डबल लेन पेव्ड शोल्डर के हिसाब से सड़क की चौड़ाई 10 से 12 मीटर करने की संस्तुति कर दी थी। इसी तरह सामरिक महत्व वाले तर्क का भी हाल है, सीमा के निकटवर्ती तीर्थों तक ज्यादा चौड़ी सड़कों से जयादा जरूरी है सीमा के छोर तक छोटी सड़कों का निर्माण पूरा करना, उत्तराखंड की अनेक सीमा चौकियां ऐसी हैं जहां आज भी कई.कई दिन तक पैदल चल कर ही पहुंचा जा सकता है।
उत्तराखंड में वर्षा का अनियमित चक्र पहले से ही मौजूद सड़कों के लिए बहुत बड़ी समस्या बनता जा रहा है। हर वर्ष बारिश के दिनों में सड़कें कई कई दिनों तक बंद रहती हैं। इसलिए उत्तराखंड की मौजूदा सड़कों को ही आल वेदर बनाए रखना ज्यादा बेहतर विकल्प हो सकता था, देवभूमि उत्तराखण्ड के मंशा अनुरूप पारदर्शिता के साथ नियत समय में यह परियोजना पूरी हो पाएगी।