डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
हिमालय की घाटी, तलहटी और बुग्यालों, पहाड़ में मखमली घास के मैदान में फूलों का अद्भुत संसार बसा हुआ है। इनमें सबसे खास हिमालय के चार कमल हैं। इनके दीदार को हर पर्यटक लालायित रहता है। विश्वभर में 61 प्रजातियां पाई जाती हैं। सभी औषधीय गुणों से लबरेज हैं। इनमें से उत्तराखंड में ब्रह्मकमल, कस्तूरी कमल, नील कमल व फेन कमल ही मिलती हैं। हिमालय के बुग्याली क्षेत्र और घाटी.तलहटी में चार कमलों का खिलना जून से शुरू हो जाता है। स्थानीय समुदाय के बीच ये चार कमल नील कमल, ब्रह्मकमल, फेन कमल व कस्तूरा कमल, पूजनीय माने जाते हैं।
ब्रह्मकमल का वेदों में भी है उल्लेख। हिमालय में उगने वाले कमल पुष्पों में ब्रह्मकमल, सौसुरिया ओबव्ल्लाटा सबसे प्रमुख है। इसे उत्तराखंड के राज्य पुष्प का दर्जा हासिल है। वेदों में भी इस पुष्प का उल्लेख मिलता है। इसलिए इसे देव पुष्प कहा गया है। समुद्रतल से 3600 मीटर से लेकर 4500 मीटर की ऊंचाई पर जून से लेकर सितंबर के मध्य तक यह पुष्प आसानी से मिल जाता है। गंगोत्री नेशनल पार्क के केदारताल, नेलांग घाटी, तपोवन, नंदनवन, क्यारकोटी बुग्याल, गिडारा बुग्याल आदि क्षेत्रों में भी ब्रह्मकमल का दीदार किया जा सकता है। इसके पौधे की ऊंचाई 70 से 80 सेमी तक होती है। फेन कमल सौसुरिया सिम्पसोनीटा, हिमालयी क्षेत्र में 4000 से 5600 मीटर तक की ऊंचाई पर जुलाई से सितंबर के मध्य खिलता है। इसका पौधा छह से 15 सेमी तक ऊंचा होता है और फूल प्राकृतिक ऊन की भांति तंतुओं से ढका रहता है। फेन कमल बैंगनी रंग का होता है। ऐसा ही एक कमल बर्फ की तरह सफेद होता है, जिसे कस्तुरा कमल कहते हैं। कस्तूरा कमल सौसुरिया गॉसिपिफोरा भी फेन कमल की प्रजाति में ही आता है। हिमालय का चौथा कमल नील कमल जेनशियाना फाइटोकेलिक्स है। जो समुद्रतल से 3500 मीटर से लेकर 4500 मीटर तक की ऊंचाई पर मिलता है। जानकारी के अभाव में कम ही पर्यटक नील कमल को पहचान पाते हैं।
प्रसिद्ध हिमालयी फोटोग्राफर कहते हैं, जब पर्यटक हिमालय के चार कमल के बारे में सुनते हैं तो उन्हें देखने और छूने के लिए बेहद उत्सुक होते हैं। उन्होंने स्वयं कई पर्यटकों को नील कमल, ब्रह्मकमल, फेन कमल व कस्तुरा कमल से परिचत कराया है। बताते हैं कि फेन कमल, कस्तूरा कमल और ब्रह्मकमल तो आसानी से दिख जाते हैं, लेकिन नील कमल काफी दुर्लभ है। ब्रह्कमल परिवार के तीन अन्य सदस्यों कस्तूरी कमल, फेन कमल व नील कमल को भी उगाने की तैयारी है।
उन्होंने बताया कि ब्रह््मकमल की तरह यह तीनों कमल भी औषधीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। कस्तूरी कमल 3700 से 5700 मीटर और फेन व नील कमल 4000 से 5600 मीटर की ऊंचाई पर उगते हैं। उन्होंने जानकारी दी कि इन तीनों पुष्प प्रजातियों के रोपण के मद्देनजर इनके कंद एकत्रित करने का वन क्षेत्राधिकारी की अगुआई में एक दल चमोली जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र के नंदीकुंड क्षेत्र में भेजा गया है। कंद एकत्रित होने के बाद इन्हें भी माणा वन पंचायत की नर्सरी में रोपा जाएगा।वन संरक्षक ने कहा कि जिस तेजी से तमाम वनस्पतियां व पुष्प प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं, उसे देखते हुए इनका संरक्षण आवश्यक है।
इसी क्रम में ब्रह्मकमल के साथ ही इसके परिवार के तीन अन्य सदस्यों को संरक्षण देने की मुहिम शुरू की गई है। इसके पीछे मंशा यही है कि यदि ये कहीं विलुप्त भी हो गए तो सैंपल सुरक्षित रहने पर उन्हें वहां फिर से उगाया जा सकेगा। चमोली जिले में समुद्रतल से 12995 फीट की ऊंचाई पर स्थित फूलों की घाटी बीते एक जून को खोल दी गई थी। लेकिन, कोरोना संक्रमण के चलते अब तक एक भी पर्यटक घाटी के दीदार को नहीं पहुंचा। अब नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क प्रशासन ने निर्णय लिया है कि कोरोना गाइडलाइन के तहत देशी पर्यटकों की घाटी में आवाजाही कराई जाएगी। इसके लिए स्थानीय लोगों की सहमति भी ले ली गई है। अब तक फूलों की घाटी में आवाजाही को लेकर कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं थी। 87.5 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली फूलों की घाटी को वर्ष 2005 में यूनेस्को ने विश्व प्राकृतिक धरोहर घोषित किया था। इन दिनों घाटी में लगभग 350 प्रजाति के रंग.बिरंगे फूल खिले हुए हैं। इसके अलावा पर्यटक नदीए झरनेए दुर्लभ प्रजाति वन्यजीव व परिंदों के साथ ही औषधीय वनस्पतियों का दीदार भी कर सकते हैं। विदित हो कि सितंबर के आसपास घाटी में 550 से अधिक प्रजाति के फूल खिलते हैं। विश्व धरोहर फूलों की घाटी में 500 से अधिक प्रजाति के फूल खिलते हैं। इन्हें देखने के लिए देश.विदेश के हजारों सैलानी पहुंचते रहे हैं। अगर लॉक डाउन नहीं होता तो अब तक मार्ग के बड़े हिस्से से ग्लेशियर हटाए जा चुके होते। पार्क के कर्मचारी कभी.कभी इस मार्ग पर सीमित आवाजाही कर रहे हैं। सुगम मार्ग के अभाव में आम लोगों का यहां पहुंचना जोखिम भरा है। हेमकुंड साहिब व लोकपाल लक्ष्मण मंदिर मार्ग भी यहीं से जुड़ा हुआ है। पर्यटक .हर वर्ष देश.विदेश के पर्यटक फूलों की घाटी के दीदार के लिए हजारों की संख्या में पहुंचते हैं।लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट के चलते पर्यटक फूलों की घाटी के दीदार नहीं कर पा रहे हैं।












