फिर से तारीखों का क्रम बदला, आज 21 वां जनमबार है हमारे उत्तराखण्ड का, सभी को बधाई। नमन उन ४२ रणबांकुरों को जिनके रक्त की बूंदों से यह आन्दोलन और सुदृढ हुआ। नमन उन मां बहनों, बेटि-ब्वारियों को जो सारा काम छोड़कर इस आन्दोलन में कूद गईं, नमन उन तमाम आन्दोलनकारियों को, जिन्होंने अपना पूरा जीवन इस संघर्ष में होम कर दिया। नमन उन लाखों लाख युवाओं को, जिन्होंने अपने कैरियर को परे रख इस आन्दोलन में अपनी आहूति दी, नमन उन सरकारी कर्मचारियों को जिन्होंने अपनी नौकरी दांव पर लगाकर हमें सम्बल प्रदान किया, नमन उन प्रवासी उत्तराखण्डियॊं को जिन्होंने प्रदेश के बाहर आन्दोलन कर हमें निरन्तर उत्साहित किया। आज के उत्तराखण्ड की स्थिति देखकर मन कसैला हो जाता है, क्षोभ से भर जाते हैं हम, दो सदियों के अंतहीन आन्दोलन, शहादतों, अपमान और दमन-बलात्कार जैसे दौर से गुजर कर हमने यह राज्य प्राप्त किया। क्या इसलिये कि इस राज्य की मूल अवधारणा ही समाप्त कर दी जाय, क्या इसलिये कि आज भी यहां का युवा बेरोजगार ही रहे। आज हम 21 साल में अपने प्रदेश की राजधानी तय नहीं कर पाये हैं, जबकि आन्दोलन काल से ही वह निर्विवाद रुप में गैरसैंण थी, जिसे रमाशंकर कौशिक समिति ने जनमत संग्रह से दस्तावेजों में भी लाया गया और मोती लाल बोरा की एक्सपर्ट कमेटी ने भी उसे फिजिबल पाया था। हम पलायन नहीं रोक पाये, हम स्माल इंड्रस्ट्रीज विकसित नहीं कर पाये, हम पानी नही दे पाये, हम सड़क नहीं दे पाये, हम संचार सुविधा नहीं दे पाये, हम स्वास्थ्य सुविधा नहीं दे पाये, जबकि उत्तराखण्ड राज्य की मूल अवधारणा में यही सब कारक थे। मुजफ्फर नगर कांड के आरोपी खूले घूम रहे हैं, वृद्ध आन्दोलकारियों को सम्मान तक नहीं मिल पाता। सरकार के खजाने खाली हैं, कर्जा लेकर सरकार वेतन दे पा रही है, हमने इन सालों में अपने आर्थिक संसाधन मजबूत नहीं किये, अपने नये स्रोत नहीं ढूंढे, जो कि प्रचुर मात्रा में बहुतायत से मौजूद है। सरकारें बदल रही हैं, सरकारी आंकड़े उत्तराखण्ड को बहुत आगे दिखा रहे हैं, एक बार तो प्रदेश की जीडीपी देश से आगे निकल गई थी, प्रति व्यक्ति आय के आंकड़ों की बाजीगरी तो इस प्रदेश में ऐसी होती है कि उ़सका कोई सानी नही है, नौकरशाही हावी है, माफिया राज पसरा है पूरे प्रदेश में, पहाड़ के युवा नशे की गिरफ्त में हैं, सरकार मोबाईल वैन से शराब बेच रही है, नदी-घाटी की सभ्यता उजाड़ कर बांध पर बांध बनाये जा रहे हैं, जिनसे उत्तराखण्ड को कोई लाभ नहीं हो रहा। खनन पर रुतबे वालों का प्रश्रय है, खुली लूट है, परिसम्पतियों का बंटवारा हम आज तक नहीं करा पाये, जो नहरें, सम्पत्तियां, बांध, जलाशय हमारी सीमा में हैं, उन पर आज भी पूर्ववर्ती प्रदेश का कब्जा है, सिडकुल में हम अपने बेरोजगारों को ठेके पर काम देने पर मजबूर हैं, क्योंकि हमने कोई नीति नहीं बनाई, ७० प्रतिशत रोजगार के लिये नीति होनी चाहिये थी, रुतबेदारों के दबाव में एग्जक्यूटिव आर्डर निकाल कर इतिश्री कर दी गई।ऐसी परिस्थितियों में मन में उत्सव का महौल नहीं बन पा रहा, ग्लानि और क्षोभ से भरा हुआ हूं। आखिर इस राज्य के सपने के एकीकरण के लिये मैं भी कहीं न कहीं दोषी हूं। मैं आज युवा शक्ति से अनुरोध करना चाहता हूं कि आप लोग कुछ करें, आगे आयें, सरकारों का मुंह मत ताकें, वोकेशनल कोर्स कर अपने पुरखों की जमीनों को उपजाऊ बनायें, स्वरोजगार को महत्ता दें, अब सिर्फ आपके भरोसे है राज्य, सरकार तो पानी दे नहीं पा रही हैं, हां शराब जरुर उपलब्ध करा रही है। अंत में गिर्दा की दो पंक्तियाआज हिमाल तुमुन के धत्यूछों, जागो-जागो हे मेरा लाल,नि करण दियो, हमरी नीलामी, नि करन दियो, हमरो हलाल॥जय भारत! जय उत्तराखण्ड!!
काशी सिंह ऐरी की फेसबुक वाल से












