उरगम घाटी (लक्ष्मण सिंह नेगी)। उत्तराखंड विविधताओं से भरा हुआ प्रदेश है यहां विश्व प्रसिद्ध पर्वत चोटियों विश्व प्रसिद्ध नंदा देवी राजजात यात्रा विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी विश्व प्रसिद्ध पंच केदार एवं पंच बद्री के अलावा दर्जनों हिम शिखर पर्वत मालाएं हैं, ये क्षेत्र विश्व के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लाते है। उन्हीं पर्वतमाला में रुद्र नाथ हिमालय भी अपना अलग महत्व रखता है, जहां भगवान शंकर की मुखारविंद की पूजा होती है और देव ऋषि नारद स्वयं रुद्रनाथ में निवास करते हैं।
यहां के क्षेत्रपाल रक्षक जिन्हें वजीर कहते हैं उनका अपना बड़ा महत्व है जब दक्ष ने अपनी बेटी सती को शिव से शादी की थी उस समय सती स्वयं शंकर के साथ रुद्रनाथ में विराजमान थी और दक्ष ने जब हरिद्वार में यज्ञ किया था जिसमें सती को नहीं बुलाया गया था। और शिव का अपमान किया गया उसी समय शिव ने अपनी जटाओं से वीरभद्र पैदा किया था, जिसे वजीर कहते हैं। वजीर देवता का मंदिर डुमक गांव मैं विराजमान है और यह गांव 7500 फीट की ऊंचाई पर पर स्थित है। जोशीमठ तहसील का सबसे दूरस्थ गांव में से एक है, जहां आज भी पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर पैदल दूरी तय करना पड़ता है। यहां पर गांव के ऊपर हिस्से में वजीर देवता का मंदिर विद्यमान है, जो बहुत ही सुंदर जगह पर है यहां से चारों और हिमालय का दिव्य दर्शन होते हैं और वजीर देवता के पास एक नाग मंदिर है, जहां पर आज भी संरक्षित क्षेत्र माना जाता है।
इस संरक्षित क्षेत्र पर लगभग 5 हेक्टेयर भूमि पर किसी को भी जाना प्रतिबंधित है जब कभी अवर्षण की स्थिति पैदा होती है लोग यहां जाकर के वजीर देवता की पूजा अर्चना और बासुकी नाग की पूजा अर्चना करते हैं रुद्रनाथ से यहां पहुंचने के लिए 20 किलोमीटर की पदयात्रा करनी पड़ती है उसके बाद यहां पहुंचा जाता है। डुमक गांव रुद्रनाथ मार्ग का एक बडाव भी है जब कल्पेश्वर से यात्री रुद्रनाथ के लिए यात्रा करता है तो डुमक गांव में रात्रि विश्राम करता है यहां पर होमस्टे की व्यवस्था लोगों के द्वारा की गई है। इस वर्ष दीपावली के महापर्व पर डुमक वजीर के मंदिर को भव्य रूप से सजाया गया था नौजवानों के द्वारा चारों तरफ से बिजली के बल्बों से मंदिर को सजा कर दीपक और से भरपूर बनाया गया था हिमालय की गोद में बसा यह क्षेत्र अपने में प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज रहता है।
यहां से त्रिशूली नंदा देवी आदि पर्वतमाला अत्यंत रोचक और सौंदर्य से भरपूर रहते हैं। यहां पर चारों ओर घने जंगलों का आवरण यहां पहुंचने वाले लोगों की थकान दूर कर देता है। गांव में अधिकांश लोग खेती और पशुपालन का कार्य करते हैं जीविका उपार्जन के लिए लोग मनरेगा और मजदूरी का काम भी करते हैं यहां जो भी सामग्री पहुंचा नहीं हो घोड़ों खच्चर ओं के माध्यम से ही यहां पहुंचा जाता है वैसे तो प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत यहां के लिए सड़क स्वीकृति थी ठेकेदारों एवं विभाग की लापरवाही के कारण आज भी यह सड़क नहीं बन पाई और यहां के लोग काले पानी की सजा की तरह भोग रहे हैं। वजीर देवता के दर्शन के लिए यदि आपको आना है तो गोपेश्वर से कुजाऊ मैकोट होते हुए तोली और उसके बाद डुमक गांव पहुंचा जाता है दूसरा रास्ता जोशीमठ से कल्पेश्वर किमाणा होते हुए कलगोठ से डुमक पहुंचाया जाता है। तीसरा रास्ता देवग्राम गीरा वांशा होती हुई कलगोठ के रास्ते डुमक पहुंचा जाता है।