• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar
No Result
View All Result

दो दशकों का लेखा जोखा उत्तराखंड?

24/01/22
in उत्तराखंड
Reading Time: 1min read
106
SHARES
133
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
जरा सा याद कर लो अपने वायदे जुबान को, गर तुम्हे अपनी जुबां का कहा याद आए ये लाइनें उन राजनेताओं और राजनीतिक दलों के लिए सटीक बैठती हैं, जो सत्ता में आने के लिए तो तमाम वादे कर देते हैं. लेकिन धरातल पर उतारने के लिए प्रयासरत नहीं दिखाई देते हैं. उत्तराखंड में भी कुछ ऐसे ही मुद्दे और वादे हैं, जो साल दर साल वक्त के साथ पुराने तो हो रहे हैं. लेकिन उन पर सियासत की रोटियां सेकने के सिवाय कभी गंभीरता से कोई काम नहीं हो पाया.

उत्तराखंड राज्य के गठन के लिए एक बड़ा आंदोलन चला, जिसमें महिलाएं, बच्चे और हर स्तर के लोग कूद पड़े थे, लेकिन यह राज्य 20 साल में ही बूढ़ा हो गया। नए उत्तराखंड राज्य को आज की अपेक्षाओं और आशाओं पर खरा उतरना चाहिए था, लेकिन यह दो ही दशक में बेहाल हो गया। वैसे तो देश में आजादी के बाद भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की शुरुआत हुई थी और जो देश में विकेंद्रित कार्य-शैली के लिए जरूरी भी था। जिन नए राज्यों का गठन हुआ, उसके पीछे कुछ हद तक स्थानीय कारण तो थे ही, लेकिन उसके साथ-साथ राजनीतिक मंशाओं और महत्वाकांक्षाओं को भी नकारा नहीं जा सकता।

अगर विभिन्न राज्यों का आकलन करें, तो कहीं-कहीं राज्य बनने के बाद आर्थिक, सामाजिक सुरक्षा भी मिली है। लेकिन अन्य कई राज्य कोई चमत्कार न कर सके।अगर पिछले करीब दो दशकों में देखें, तो तीन छोटे राज्यों-झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड का गठन हुआ। यह मानकर चला गया कि इन सबकी अपनी-अपनी अनोखी प्रकृति, पारिस्थितिकी और समस्याएं हैं, जो देश के अन्य हिस्सों से अलग हैं। पर अगर हम इनके दो दशकों का लेखा-जोखा देख लें, तो न केवल निराशा ही हाथ लगेगी, बल्कि इनके बारे में कोई बड़े दावे भी नहीं किए जा सकते।

अब उत्तराखंड राज्य को ही देख लें। स्वतंत्र उत्तराखंड राज्य के गठन के लिए एक बड़ा आंदोलन चला, जिसमें महिलाएं, बच्चे और हर स्तर के लोग कूद पड़े थे, लेकिन यह राज्य 20 साल में ही बूढ़ा हो गया। नए उत्तराखंड राज्य को आज की अपेक्षाओं और आशाओं पर खरा उतरना चाहिए था, लेकिन यह दो ही दशक में बेहाल हो गया। उत्तराखंड राज्य की मांग के पीछे बहुत से कारण थे।जैसे, इसकी भौगोलिक परिस्थितियां, दूर-दराज स्थित गांव, सड़कों का अभाव और साथ में स्थानीय प्राथमिकताएं शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सहूलियतें, जो तब हाशिये पर थीं और आज 21 साल बाद भी हाशिये पर ही हैं।

इस राज्य को शुरुआत में ही नाम के झंझट से गुजरना पड़ा। जैसे, कभी उत्तरांचल, तो कभी उत्तराखंड। फिर यह उन अपेक्षाओं पर आज तक खरा नहीं उतर पाया, जो यहां की प्राथमिकताएं थीं। जिस राज्य ने 21 साल के इतिहास में 10 मुख्यमंत्री देख लिए हों, उसकी अस्थिरता का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। फेरबदल का ऐसा नमूना देश में कहीं और नहीं दिखता।फिर इस राज्य का राजनीतिक चरित्र भी ऐसा नहीं रहा, जो पिछले कार्यों को आगे बढ़ाता। तब यह फेरबदल भी इतना घातक नहीं होता।

हालांकि इस सिलसिले में हमें यह सामूहिक जनदोष भी स्वीकार लेना होगा कि हम अपना नेतृत्व राज्य के मुद्दों के बजाय अन्य प्रभावों के असर में चुनते रहे हैं। इस राज्य को बारी-बारी से विभिन्न दलों की सरकारों का नेतृत्व हासिल हुआ। लेकिन सच यह है कि इस राज्य को लेकर जो अपेक्षाएं थीं और जिन मुद्दों को लेकर यह राज्य बनाया गया था, वे आज भी अधर में ही हैं।अब अगर इस राज्य को बूढ़ा होने से बचाना है, तो हमें नए सिरे से राजनीतिक नेतृत्व पर चर्चा करनी होगी। दरअसल इस राज्य को नेतृत्व देने वाले ज्यादातर उम्रदराज लोग थे।

वैसे भी यह पहाड़ है और यहां एक खास उम्र के बाद चढ़ाई चढ़ना मुश्किल हो जाता है। यही दृष्टिकोण राजनीति और नेतृत्व में भी लागू होना चाहिए। यहां की विशेषताएं, सीमाएं और प्राथमिकताएं अपने आप में अलग हैं, जिनका समाधान धैर्य, गंभीरता और जोश के साथ ही संभव है। और ये विशेषताएं उम्र के साथ घटती जाती हैं।

अब कद्दावर नेता दिवंगत नारायण दत्त तिवारी का ही उदाहरण, जिन्होंने देश में तमाम स्तर पर राजनीतिक प्रतिनिधित्व किया और विकास पुरुष की ख्याति भी प्राप्त की। लेकिन वही एनडी तिवारी जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने, तब वह राज्य के सभी जिलों का दौरा नहीं कर पाए और देहरादून में सिमट कर ही उन्होंने सरकार चलाई। राज्य ने बेशक उनके बड़े कद का लाभ उठाया, लेकिन सच्चाई यह है कि उनकी उम्र और असमर्थता पहाड़ की पीड़ा दूर करने में भी अक्षम थीं।

युवा उत्तराखंड के बूढ़ा दिखने का एक बड़ा कारण यह भी रहा है कि इसका प्रतिनिधित्व करने वाले लोग उम्रदराज थे। राजनीति में विवाद हमेशा ही रहेगा, पर यह विवाद ज्यादा गहरा तब होता है, जब दो पीढ़ियों में सत्ता की होड़ मच जाए। आज जनहित में ऐसे विवादों से बचना होगा और युवाओं को अवसर देने होंगे। अगर राजनीतिक पार्टियां इससे संबंधित निर्णय लेने में कतराएं, तो फिर जनता को जनार्दन बनना होगा।उत्तराखंड का इतिहास देखें, तो इन 20-21 साल में युवाओं को नेतृत्व नहीं मिला। उत्तराखंड की राजनीति ने एक लंबे समय से विवादों में उलझते-उलझते अवसादों में पड़कर अपनी जवानी खो दी है। 21 साल का उत्तराखंड बूढ़ा हो गया है।

ऐसे में, यही वह समय है, जब तमाम राजनीतिक दलों के युवाओं को ही पार्टी का नेतृत्व करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। और इस दिशा में पहल दलों के वरिष्ठ नेता ही करें, ताकि किसी भी तरह के टकराव की गुंजाइश न रहे।युवाओं पर ही अब जनता की आस भी टिकी है। वर्तमान मुख्यमंत्री का ही उदाहरण सामने है, जिन्हें अपनी पारी खेलने की छोटी-सी अवधि मिली थीं। पर युवा होने के कारण वह कम ही समय में काफी लोकप्रियता पा चुके हैं। उन्होंने पार्टी की गिरती साख को तो बचाया ही, इसे ऑक्सीजन भी दी।

इसके अलावा लोगों ने राज्य के युवा नेतृत्व को स्वीकारा भी है।यह सभी राजनीतिक दलों के लिए संदेश है कि वे भी अब राज्य के प्रति गंभीर होकर अपने बीच के युवाओं को बड़ी भूमिका दें, अपने आप को घिसे-पिटे राजनीतिक दांव-पेच से ऊपर उठाएं और उत्तराखंड व युवाओं के प्रति न्याय कर नई राजनीति की नींव रखें। बूढ़े होते उत्तराखंड की झुर्रियां युवा ही दूर कर पाएंगे, उम्रदराज नेता नहीं।

आज अगर कहीं कोई आशा बची है और उत्तराखंड को अवसादों से बचाना है, तो यह युवाओं से ही संभव है।साफ है कि अगर राजनीतिक दल अब ठोस निर्णय नहीं लेंगे, तो फिर जनता ही उन दलों को नकार देगी, जो युवाओं को स्थान नहीं देंगे। उत्तराखंड आज 21 साल पहले जैसा नहीं रहा और यह बात लोगों को खटक रही है। मौजूदा हालात के लिए राजनेताओं को ही दोषी माना जा रहा है।

इसलिए उत्तराखंड में सरकार चला चुके सभी दलों के लिए जरूरी है कि वे वक्त रहते अपनी कार्य-शैली सुधार लें। पहाड़ी राज्य में दोनों बड़ी पार्टियों यानी बीजेपी व कांग्रेस ने सत्ता में आते ही उन लोगों को कोई हिस्सेदारी देने की तरफ सोचा तक नहीं,जिन्होंने खुद को उत्तरप्रदेश से अलग करने और एक नया पहाड़ी राज्य बनाने की लंबी लड़ाई लड़ी थी.

देवभूमि कहलाने वाला देश का इकलौता उत्तराखंड ही ऐसा राज्य है जिसे बनाने के लिए वहां के लोगों ने उस पहाड़ से निकलकर देश की राजधानी में आकर ऐसा संघर्ष किया था कि वे दिल्ली के जंतर-मंतर पर सालों तक धरना देते रहे कि आखिर एक दिन तो सरकार उनकी मांग मानेगी ही.कांग्रेस या बाकी दलों से बनी खिचड़ी सरकार ने उनकी इस जायज मांग की तरफ कोई ध्यान नही दिया.

लेकिन जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी, तो उन्होंने साल 2002 में उत्तराखंड समेत झारखंड और छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाने का एलान करके वहां के लोगों को एक बड़ी सौगात दी. पहाड़ी राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से उत्तराखंड में योजनाओं को लागू करने में कई तरह की समस्याएं भी आती हैं।

लेकिन जब भी सरकार की इच्छा शक्ति ने हुई तो योजना ने परवान चढ़ी, लेकिन जब भी राज्य सरकार वोटबैंक और अपने राजनीतिक लाभ के लिए विकास कार्यों को टालती रही तो इसका नुकसान भी जनता को उठाना पड़ा है। आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार सरकारों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। देहरादून, उत्तराखंड की राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है।

राज्य आंदोलनकारियों की मांग थी कि उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है अतः इसकी राजधानी पहाड़ में होनी चाहिए। जिसके चलते गैरसैंण नामक कस्बे की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है लेकिन विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। यूपी से अलग होकर राज्य बने उत्तराखंड में अब एक नया आंदोलन जन्म ले रहा है।

पहाड़ के युवाओं ने यूपी के मैदानी क्षेत्रों को उत्तराखंड में मिलाने के बजाय पहाड़ी जिलों का पृथक राज्य बनाने की मांग उठाई है। कहा कि 10 पर्वतीय जिलों को मिलाकर सिक्किम की तर्ज पर उत्तराखंड से पृथक राज्य बनाया जाए। इसकी राजधानी गैरसैंण बनाई जाए। इससे विकास से कोसों दूर चल रहे पहाड़ी जिलों का विकास हो सके। नया राज्य बनने खुशहाल होगा।

राजनीतिक दलों ने स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर भी एक से बढ़कर एक दावे किए. भाजपा ने तो एयर एंबुलेंस तक की शुरुआत करने की बात कही लेकिन जनता की अपेक्षाओं के अनुसार पहाड़ पर स्वास्थ्य सुविधाओं को जुटाने में कोई भी सरकार कामयाब नहीं हो पाई. हालात यह हैं कि मामूली सी बीमारी के लिए भी पहाड़ के लोगों को हजारों लाखों रुपए खर्च कर मैदानों में आना पड़ता है. उधर, सामान्य मेडिकल से जुड़ी मशीनें भी पहाड़ी जनपदों में मौजूद नहीं है. इसके लिए भी लोग हल्द्वानी या देहरादून पर ही निर्भर दिखाई देते हैं. यानी स्वास्थ्य के मामले पर भी राजनीतिक दलों ने अपने वादों को पूरी तरह से भुला दिया. रोजगार उत्तर प्रदेश के समय से ही एक बड़ा मुद्दा रहा है.

इस दौरान पहाड़ी क्षेत्र मे युवाओं को रोजगार नहीं मिलने के कारण लोगों में आक्रोश बढ़ा और अलग राज्य की स्थापना को लेकर आंदोलन ने तेजी पकड़ी. युवाओं को रोजगार देने के लिए भी राजनेताओं ने बड़े-बड़े वादे कर डाले. सरकार ने दोनों ही सरकारों ने रोजगार के मामले पर युवाओं को रिझाने की कोशिश की. प्रदेश में बड़ी संख्या में युवाओं की मौजूदगी को देखते हुए राजनीतिक दलों के फोकस पर युवा रहे, लेकिन यह फोकस केवल चुनावी रहा.

बेरोजगारी के मामले पर राज्य सरकारों ने 21 सालों में कुछ खास प्रयास नहीं किए हकीकत में सरकारी विद्यालयों के बंद होने का सिलसिला जारी रहा. निजी स्कूलों में लोगों द्वारा बच्चे पढ़ाई जाने की मजबूरी भी दिखाई देती रही. अच्छी शिक्षा के लिए निजी स्कूलों ने लोगों की जेब काटी और सरकारी स्कूल प्रदेश के खजाने को केवल खाली करने तक ही सीमित दिखाई दिए हैं.इस मामले में राजनीतिक दलों की तरफ से अपने अपने तर्क रखे जाते हैं. यहां भी राजनीति करने से राजनेता पीछे नहीं हटते.

प्रदेश प्रवक्ता कहते हैं कि पिछले करीब साढे़ 5 साल में सरकार ने बहुत अच्छा काम किया है. रोड कनेक्टिविटी से लेकर रेल मार्ग को बेहतर करने और हवाई मार्ग को स्थापित करने पर सरकार ने पूरा फोकस किया है. लेकिन लोकायुक्त शिक्षा स्वास्थ्य जैसी विषयों पर सरकार क्यों फेल हो गई इसका जवाब उनके पास नहीं था. सरकारों में कुछ अधूरापन दिखाई दिया.

इसी के चलते प्रदेश में उन सपनों को पूरा नहीं किया जा सका, जो राज्य आंदोलनकारी और प्रदेश की आम जनता ने देखे थे. उत्तराखंड में पिछले 21 सालों में 4 निर्वाचित सरकारें रही हैं. इस दौरान ऐसे कई मुद्दे राजनीतिक दलों के एजेंडे में रहे हैं, जिसने जनता को चुनावी दौर में रिझाने की कोशिश तो की. लेकिन आज तक इन पर गंभीर प्रयास नहीं हो पाए.

इसकी वैसे तो अपनी अलग-अलग कई वजह हो सकती हैं. लेकिन प्रदेश निर्माण को लेकर सड़कों पर आंदोलन करने वाले राज्य जानकारी मानते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह उत्तराखंड में सरकारों का रिमोट कंट्रोल केंद्र के हाथों में होना है. राज्य आंदोलनकारियों ने प्रदेश में 20 सालों से विभिन्न मुद्दों और वादों को लेकर अपनी बातें रखीं.

Share42SendTweet27
https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/10/yuva_UK-1.mp4
Previous Post

पहाड़ों से पलायन बड़ा मुद्दा, लेकिन सुध लेने मुद्दों से सब दूर?

Next Post

गणतंत्र दिवस पर उत्तराखंड की झांकी कुछ ऐसी होगी

Related Posts

उत्तराखंड

मुख्यमंत्री धामी का आईएसबीटी देहरादून में औचक निरीक्षण, गंदगी देखकर खुद उठाई झाड़ू

November 18, 2025
6
उत्तराखंड

केदारनाथ धाम में श्रद्धालु छोड़ गए सैकड़ों टन कूड़ा

November 18, 2025
6
उत्तराखंड

डोईवाला: सिंचाई नहर बंद होने से गन्ने की कई बीघा फसल सुखी, किसानों ने दी आत्मघाती कदम उठाने की चेतावनी

November 17, 2025
8
उत्तराखंड

कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दीवान एस. रावत को इंडियन केमिकल सोसाइटी वर्ष 2025 का “आचार्य पी. सी. राय मेमोरियल लेक्चर अवॉर्ड”

November 17, 2025
5
उत्तराखंड

जियो थर्मल पॉलिसी बनाने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य: डॉ आर मीनाक्षी सुंदरम

November 17, 2025
9
उत्तराखंड

उत्तराखंड पहाड़ों के लिए अब आर्थिक और राजनीतिक संकट

November 17, 2025
6

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    67506 shares
    Share 27002 Tweet 16877
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    45757 shares
    Share 18303 Tweet 11439
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    38034 shares
    Share 15214 Tweet 9509
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    37426 shares
    Share 14970 Tweet 9357
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    37305 shares
    Share 14922 Tweet 9326

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

मुख्यमंत्री धामी का आईएसबीटी देहरादून में औचक निरीक्षण, गंदगी देखकर खुद उठाई झाड़ू

November 18, 2025

केदारनाथ धाम में श्रद्धालु छोड़ गए सैकड़ों टन कूड़ा

November 18, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.