देहरादून। जिस अटल आयुष्मान गोल्डन कार्ड के जरिये सरकार पांच लाख के कैशलैस इलाज का दावा कर रही है, खासकर निजी अस्पताल उस कार्ड को तबज्जो देने को तैयार नहीं हैं। कार्ड के दम पर इलाज कराने अस्पताल पहुंचने वाले गंभीर मरीज या तो मौत के मुंह में जा रहे हैं, या फिर मायूस होकर घर लौट रहे हैं। पूरे राज्य में यही स्थिति बनी हुई।
सरकार आयुष्मान गोल्डन कार्ड को चुनाव से ठीक पहले तुरूप का पत्ता मानकर इसका जमकर प्रचार कर रही है। केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना के दायरे में राज्य के ग्यारह लाख परिवार आ रहे हैं। राज्य सरकार इसी तर्ज पर अटल आयुष्मान योजना लेकर आई है, जिसमें कुल 23 लाख परिवार कवर होने का दावा किया जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि प्रति परिवार एक साल में पांच लाख का कैशलैस इलाज इस कार्ड के जरिये किया जा सकेगा। इसके लिए बकायदा सरकारी और निजी अस्पतालों की सूची भी जारी की गई थी। इन अस्पतालों में जब लोग पहुंच रहे हैं, तो उन्हें निराश होकर लौटना पड़ रहा है। कुछ ही दिन पहले हल्द्वानी में एक बड़े निजी अस्पताल ने गुर्दे के इंफेक्शन से पीड़ित 17 वर्षीय किशोर का आयुष्मान कार्ड से इलाज करने से मना कर दिया था, मरीज को नकद धनराशि जमा करने को कहा गया। धन न होने की स्थिति में परिजन उसे घर ले आए, जहां उसकी मौत हो गई।
नया मामला राज्य की राजधानी में प्रतिष्ठित इंदिरेश अस्पताल का है। न्यूरोलाजी, न्यूरो सर्जरी, बर्न प्लास्टिक एंड रिकांस्टिेटिव सर्जरी, थोरासिक सर्जरी आदि बीमारियों का इलाज आयुष्मान कार्ड से नहीं किया जाएगा। नवक्रांति स्वराज मोर्चा के गजेंद्र जोशी जब इंदिरेश अस्पताल के सीएमएस डा.अजय पंडित से मिले तो उन्होंने साफ तौर पर उक्त बीमारियों का इलाज आयुष्मान कार्ड से करने से इंकार कर दिया। यहां तक कि डिलीवरी केश को निजी अस्पताल आयुष्मान कार्ड के तहत तभी लेंगे, जब मरीज को किसी सरकारी अस्पताल से रेफर किया गया होगा।
जब कई गंभीर बीमारियों का इलाज आयुष्मान योजना के गोल्डन कार्ड से होगा ही नही ंतो इस कार्ड की उपयोगिता क्या रह जाएगी? मरीज कार्ड पाकर इलाज कराने अस्पताल पहंुंच रहे हैं, वहां उन्हें दुत्कारा जा रहा है। यदि सरकार इस मामले में गंभीर है तो उसे सबसे पहले पैनल में मौजूद सभी निजी तथा सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था ठीक करनी होगी, तय करना होगा कि मरीजों को किसी तरह की दिक्कत न हो। यह भी तय करना होगा कि अस्पताल में मौजूद सभी तरह का इलाज पांच लाख की सीमा तक मरीजों को मिले, अन्यथा इस योजना का कोई मलतब नहीं रह जाता है।