डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड
भारत के कई हिस्सों में लोग केले के पत्ते पर खाना खाते हैं। केले के पत्ते पर खाना उनकी स्थानीय परंपरा का हिस्सा है। मेहमानों को जहां केले के पत्ते के सबसे ऊपरी हिस्से में खाना परोसा जाता है वहीं घर के लोग खुद निचले हिस्से में खाना रखकर खाते हैं। साफ फर्श पर बैठकर सभी बिना कांटे-चम्मच के हाथ से खाना खाते हैं। चावल, मीट, सब्जी, करी, अचार, दही सबकुछ इसी केले के पत्ते पर परोसा जाता है, लेकिन हजारों साल से चली आ रही इस परंपरा की अपनी मान्यताएं हैं। केले का पत्ता प्लांट.बेस्ड कंपाउंड, पॉलीफेनॉल्स से पूर्ण होता है।
पॉलीफेनॉल्स नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जोकि शरीर में मौजूद फ्री.रेडिकल्स और दूसरी बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने का काम करते हैं। एक ओर जहां केले की पत्िरी यों को सीधे तौर पर पचाना संभव नहीं है वहीं केले के पत्ते में रखे खाद्य पदार्थ इससे पॉलीफेनॉल्स को अवशोषित कर लेते हैं। इससे शरीर को इन ऑक्सीडेंट्स का फायदा भी मिल जाता है। इसके साथ ही ये माना जाता है कि केले के पत्ते में एंटी.बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं जोकि खाने में मौजूद बैक्टीरिया को समाप्त कर देते हैं। इससे बीमार पड़ने की आशंका कम हो जाती है। रखे खाद्य पदार्थ स्वाद बढ़ जाता है केले की पत्तियों पर मोम के जैसी एक ऊपरी परत होती है। हालांकि ये परत बहुत पतली होती है लेकिन इसका स्वाद बहुत अलग होता है। जब गर्म खाना केले के पत्ते पर परोसा जाता है तो ये मोम पिघलकर खाने में मिल जाती है। जिससे खाने का स्वाद और बढ़ जाता हैण् केले की पत्तियों को बहुत अधिक साफ करने की जरूरत नहीं होती है। ये खुद ही बहुत हाइजीएनिक होती हैं। इन्हें सिर्फ थोड़े से पानी से साफ करके इस्तेमाल में लाया जा सकता है। प्लास्टिकक की प्लेट में खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है आज जबकि पर्यावरण की सुरक्षा एक अहम मसला बन चुका है ऐसे में केले की पत्ती पर खाना खाना पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से एक सार्थक पहल है। आमतौर पर लोग भोज या फिर किसी समारोह में प्लास्टिेक या स्टीरोफोम के प्लेट्स का इस्तेमाल करते हैं। इस्तेमाल के बाद इन्हें यूं ही फेंक दिया जाता है। जबकि केले के पत्तों को डिकंपोज करना बहुत ही आसान है। केले की पत्ती में खाने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इससे हमारे शरीर में किसी भी प्रकार का कोई रासायनिक पदार्थ प्रवेश नहीं कर पाता है। जबकि प्लास्टिक की प्लेट में खाने से पिघली हुई प्लास्ट्कि का कुछ अंश हमारे शरीर में भी चला जाता है। जोकि कैंसर जैसी भयानक बीमारी का कारण भी बन सकता है। ऐसे में केले के पत्ते पर खाना खाना स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत फायदेमंद है।
प्लास्टिक को यूज करने के बाद उसे फेंकने में ज्यादा डर लगता है केरल में आज भी कई घरों में खाना केले के पत्तों पर ही खाया जा इसे अपनाना चाहिए। ऐसी वनस्पतियों को उत्तराखण्ड में यदि रोजगार से जोड़े तो शायद इसमें मेहनत भी कम हो सकती है क्योंकि यह स्वतः ही पैदा हो जाने वाली वनस्पति है। इस प्रकार एक बहुपयोगी एवं आर्थिक रूप से समृद्धि देने की जोकि उत्तराखण्ड में पारम्परिक एवं अन्य फसलों के साथ सुगमता से लगाया जा सकता है जिससे एक रोजगार परक जरिया बनने के साथ साथ इसके औषधीय गुणों को संरक्षण से पर्यावण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है। अपने पुराने तौर.तरीकों को अपनाकर हम को भी ईको.फ्रेंडली बना सकते हैं योगदान को बढ़ावा दे सकते हैं। पर्यावरण बचाने के लिए ताइवान और वियतनाम देशों से पहाड़, पानी, वनों का ही हिस्सा समझते हुए व्यवहार किया गया, जबकि हिमालय वेद पुराण के अनुसार तब भी आध्यात्मिक महत्त्व ज्यादा रखता था और आज भी उसी तरह से रखता है। हिमालय को हमेशा एक पूजनीय स्थल समझा गया और यही कारण है कि सभी तरह के देवी.देवताओं का यह वास बना। कोई भी धर्म होए हिमालय उसका केन्द्र बना पहाड़ी क्षेत्रों देवभूमि प्रेरणा को भी सुरक्षित रखा जा सकता है।












