उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पितृ कार्य की आड़ में दी गई इजाजत
शंकर सिंह भाटिया/प्रकाश कपरूवाण
देहरादून। अभी भगवान बदरीनाथ के कपाट खुले भी नहीं, उत्तर प्रदेश के एक विधायक समेत 11 लोगों को बदरीनाथ जाने की इजाजत दे दी गई है। यह इजाजत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता के पितृ कार्य के आड़ में दी गई है।
इजाजती पत्र उत्तराखंड के अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश के हस्ताक्षरों से जारी किया गया है। जिसमें कवियत्री के हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे अमरमणि त्रिपाठी के पुत्र निर्दलीय विधायक अमनमणि त्रिपाठी समेत ग्यारह लोगों को 2 मई से 7 मई तक देहरादून से श्रीनगर, बदरीनाथ, केदारनाथ जाने की इजाजत दी गई है। इजाजत देने की वजह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के स्वर्गीय पिता का पितृ कार्य बताया गया है।
पहला सवाल यह उठता है कि योगी आदित्यनाथ के पिता का अंतिम संस्कार गंगा तट पर हुआ है, उनकी अस्थियों का विसर्जन करने के लिए उत्तर प्रदेश के विधायक अमनमणि त्रिपाठी को जाने की जरूरत क्यों पड़ी है? उनका अंतिम संस्कार उनके परिजनों द्वारा किया गया है। उससे आगे की जो भी प्रक्रिया होनी है, उनके परिजन कर रहे हैं। अमनमणि उनके सगे संबंधी भी नहीं हैं। बदरीनाथ में पित्रों का श्राद्ध करने की परंपरा रही है। पित्रों का श्राद्ध उनके पुत्र या परिजन करते हैं। अमनमणि त्रिपाठी किस हैसियत से उनका पितृ कार्य कर रहे हैं? परिजनों के अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति उन्हें श्रद्धांजलि दे सकता है। श्रद्धांजलि देने के लिए बदरीनाथ-केदारनाथ जाने की क्या जरूरत है? क्या यह पितृ कार्य की आड़ में दी गई अवैध इजाजत नहीं है? जब बदरीनाथ के कपाट ही नहीं खुले हैं, इस स्थिति किस आधार पर किसी को इजाजत दी जा सकती है।
जहां तक पितृ कार्य का सवाल है सिद्धांत ज्यातिषचार्य राम दयाल मैदुली का कहना है कि कपाट खुलने के उपरांत ही तीर्थ धामों में पितृ कर्म करने का विधान है। कपाट खुलने के बाद भगवान बदरीविशाल को लगाए गए भोग प्रसाद के चावलों के भात से ही पिंड बनते हैं। तीर्थ पुरोहितों की मौजूदगी में ही पिंडदान किया जाता है। कपाट बंदी के दौरान वहां तीर्थ पुरोहित नहीं होते हैं।
शास्त्रीय पक्ष यह है कि मृत आत्मा के वार्षिक श्राद्ध के उपरांत पहले श्राद्ध पक्ष में मृतक की तिथि के अनुसार पार्वण श्राद्ध किया जाता है। उसी के बाद तीर्थ में आने का विधान है। पितृ कार्य के लिए पहले केदारनाथ आने और उसके बाद मोक्षधाम बदरीनाथ आने का विधान है। पितृ कार्य व मोक्ष के लिए मृतक आत्मा के पुत्र व अन्य सगे संबंधियों द्वारा ही पिंडदान दिया जाता है।
सवाल यह उठता है कि जब लाॅकडाउन की वजह से यहां लोग गौचर से चमोली नहीं जा पा रहे हैं, एक जिले के अंदर ही आवागमन नहीं कर पा रहे हैं। पहाड़ के हजारों लोग एक माह से अधिक समय से देहरादून में फंसे हुए हैं, उन्हें अब जाकर घर जाने की इजाजत मिली है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता के पितृ कार्य करने के लिए ग्यारह लोगों को राज्य शासन के वरिष्ठ अधिकारी ने कैसे इजाजत दे दी? क्या यह गलत तरीके से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की आड़ लेकर इजाजत लेने का मामला नहीं है? क्या राज्य सरकार के मुखिया इसका संज्ञान लेंगे?












