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औषधीय गुणों से भरपूर भंगजीरा, किसानों को बना सकता है स्मृद्ध

26/08/19
in उत्तराखंड, हेल्थ
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जयदेव चौहान एवं डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
भंगजीरा जिसका वैज्ञानिक नाम परिला फ्रूटीसेंस है, लमिएसिए परिवार का एक सदस्य है, जिसे आमतौर पर भांजीरा या भंग्जीरा के रूप में जाना जाता है। भारतीय हिमालय की एक अल्पविकसित फसल है। यह भारत और चीन का मूल निवासी है और पेरिला के नाम से भी जाना जाता है। इसके प्रमुख उत्पादक देश चीन, भारत, जापान, कोरिया, थाईलैंड और अन्य पूर्वी एशियाई देश हैं। यह एक वार्षिक प्रजाति का पौधा है और भारत के पहाड़ी राज्यों में व्यापक रूप से विस्तृत है। भारत में और उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण में विस्तरित हिमालय कश्मीर से भूटान मै 457-2590 मीटर ऊंचाई पर पाया जाता है। रूपात्मक वर्णों के आधार पर, आमतौर पर दो प्रकार से विभाजित किया गया है। पहला हरे पत्ते वाली और दूसरी बैंगनी पत्ती वाली किस्में है।
इनमें हर किसी की पत्तियां व्यापक रूप से स्वाद, भोजन के लिए उपयोग की जाती हैं। चीन, कोरिया और जापान में इसे दवा और तेल के साथ प्रयोग किया जाता है और इनमें सबसे लोकप्रिय है। गार्निश और खाद्य क्लरेंट में से एक के रूप में प्रयोग करना, पत्तियों के साथ.साथ बीज भी लोकप्रिय हैं और पारंपरिक चीनी हर्बल दवाएं, सर्दी और खांसी के लिए और पाचन को बढ़ावा देने के लिए पौधा अपने पौष्टिक मूल्य के कारण महत्वपूर्ण है।
वही हमारे गढ़वाल एवं कुमाऊं में इसे चटनी के रूप में प्रयोग किया जाता है, जो अनजाने में अपने साथ कई औषधीय गुणों से भरपूर है। एक स्टडी के अनुसार इसे विटामिन और खनिज युक्त, टेरपेनोइड्स, फेनोलिक्स, फ्लेवोनोइड और एंथोसायनिन में सूचित किया गया है। इसे एंटीऑक्सिडेंट, एंटीस्पास्मोडिक दिखाया गया है। हाल ही में इसे यूरोप, रूस और यूएसए जैसे अन्य देशों में भी पेश किया गया है। हिमालय क्षेत्र मै इसके बीजों को कच्चा खाया जाता हैए बीज का तेल खाना पकाने के उद्देश्यों के लिए उपयोग मै भी किया जाता है और तेल के कच्चे या मवेशियों को खिलाया जाता है। भुने हुए बीज मसालेदार चटनी के लिए तैयार किए जाते हैं। पेरीला के बीज में असंतृप्त वसा अम्ल जिसे आम भाषा मै ओमेगा 3, 6, 9 फैटी एसिड भी कहते है, जो हृदय से जुड़े विकारों को कम करने में मदद करता है। विभिन्न पॉलीफोरोल, खनिज, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट होते हैं। एंटीमाइक्रोबियल, एंटीऑक्सिडेंट, साइटोटॉक्सिसिटी, एंटी.इंफ्लेमेटरी और एंटी.एलर्जिक गतिविधियों जैसे कुछ दवा गुण भी बताए गए हैं।
यह भी प्रदर्शित किया गया है कि यह भोजन का एक संभावित स्रोत है जो प्रोटीन और ओमेगा 3 और 6 पॉली अनसैचुरेटेड फैटी एसिड से भरपूर होता है, जिसे मानव और पशु के लिए पौष्टिक भोजन माना जा सकता है। कुछ आवश्यक तत्वों, जैसे कि थ्मए डर्दए द और ब्ं के अपेक्षाकृत उच्च सांद्रता का प्रदर्शन जानवरों और मनुष्यों में विषाक्त तत्वों की अवधारण को प्रभावित करने के लिए किया गया है। इसके तेल में रोगाणुरोधी गुण की विविधता की वजह से पौधे में एक विशिष्ट गंध होती है जो आवश्यक तेल घटक इसके पोषण को प्रभावित करते हैं और औषधीय गुणों से भरते हैं। इसका तेल सीमित जांच का विषय है, जो गुलाब के एक समृद्ध स्रोत के रूप में सूचित किया जाता है, इससे स्वादिष्ट मसाला और इत्र भी बनाया जाता हैै।
पेरिलाकिटोन को इसमें प्रमुख घटक के रूप में पहचान की गई है विभिन्न पौधों के अंगों और इसके तेल मै शोध जरी है । जिसमे डॉ हरीश चंद्र अन्डोला द्वारा भी एक शोध किया गया है जो जर्नल ऑफ़ एसेंशियल आयल रिसर्च में छपा जिसकी स्टडी के अनुसार उन्होंने भंगजीरा से कुल मिलाकर, सोलह वाष्पशील यौगिकों की पहचान की और एक भिन्नता उनकी सामग्री में पाया । 1. 3.फुरनील .4.मिथाइल.1.पैंटानोन पेरिलैकेटोन पाया गया था। सबसे प्रचुर मात्रा में वाष्पशील यौगिक 44.4.69.2, इसके बाद इसोएगोमैकेटोन 7.3-27.6, ट्रांसकार्योफिलीन 0.1-17.8 और लीनूल 0.3.5.0। साथ ही साथ उन्होंने इसमें ओमेगा फैटी एसिड की भी पुष्टि की और कहा की यह ह्रदय से जुडी बिमारियों की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भांजीरा या भंग्जीरा भंगजीरा पौधे के बीज और पत्तियों में ओमेगा.3 व ओमेगा.6 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो कॉड लीवर आयल का बेहतर विकल्प है।
शोध के वैज्ञानिकों का दावा है कि यदि सरकार व दवा कंपनियां इस दिशा में पहल करें तो भंगजीरा की व्यावसायिक खेती करके रोजगार के बेहतर अवसर पैदा किए जा सकते हैं। यही नहीं इससे मांस, मछली न खाने वालों को ओमेगा.3 व ओमेगा.6 का शुद्ध और बेहतर विकल्प भी मिल सकेगा। मुख्य रूप से मात्र ही स्त्रोतों ओमेगा 3 ओमेगा 6 ओमेगा 9 जो कि मानव के बैद्धिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, उत्तराखण्ड में भांजीरा या भंग्जीरा बाजार उपलब्ध न होने के कारण स्थानीय काश्तकार इसे कुछ मात्रा में उगाते हैं। उत्तराखंड के अलग अलग पहाड़ी इलाकों में इसे उगाने की बात चल रही है। अगर ऐसा होता है तो पर्यावरण संरक्षण के साथ साथ स्वरोजगार की दिशा में ये बेहतर कदम होगा। प्रदेश शासन को इस मुहिम में अपना भरपूर योगदान देना चाहिए। यह राज्य की आर्थिकी का एक बेहतर पर्याय बन सकता है।

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