डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
प्रमोद महाजन का जन्म 30 अक्टूबर 1949 को तेलंगाना में हुआ था। प्रमोद महाजन छात्र जीवन से ही संघ से जुड़ गए थे। संघ का इनके जीवन पर विशेष प्रभाव रहा। बता दें कि उन्होंने पुणे के रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म से पत्रकारिता की थी। इसके बाद RSS के मराठी अखबार ‘तरुण भारत’ के उप संपादक बन गए। साल 1974 में उनको संघ प्रचारक बनाया गया और इमरजेंसी के दौरान प्रमोद महाजन ने पूर्व पीएम इंदिरा गांधी विरोध का मोर्चा संभाला।राजनीति शह-मात का खेल है, लेकिन सियासत में ‘चाणक्य’ वही कहलाता है, जिसकी चाल सफलता का इतिहास लिखती है। भारत की वर्तमान राजनीति में हर पार्टी के पास अलग-अलग ‘चाणक्य’ हैं। यह केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा में भी है, लेकिन पार्टी के अंदर पहले ‘चाणक्य’ कहे गए प्रमोद महाजन, जिन्हें खुद अटल बिहारी वाजपेयी ‘लक्ष्मण’ कहा करते थे। प्रमोद महाजन वह नेता थे, जो अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के दौर में भाजपा की सेकेंड लाइन में खड़े हुआ करते थे।मौजूदा परिदृश्य में भाजपा का यह स्वर्णिम काल कहा जा सकता है, लेकिन गुजरे दौर में पार्टी ने अनेकों उतार-चढ़ाव देखे। उस समय पार्टी के ‘लक्ष्मण’ प्रमोद महाजन ही थे, जो संकटमोचक बने। अटल बिहारी वाजपेयी का प्रधानमंत्री बनना हो, लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा हो, महाराष्ट्र में शिवसेना से गठबंधन हो या नया ‘शाइनिंग इंडिया’ का मंत्र देना, ये सब बातें प्रमोद महाजन के जिक्र के बिना अधूरी हैं।30 अक्टूबर 1949 को महबूबनगर (तेलंगाना) में जन्मे प्रमोद महाजन ने पत्रकार से लेकर भाजपा नेता बनने का सफर तय किया था। स्कूली समय में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव हो चुका था। 1970 के दशक में पहले पत्रकार (संघ के मराठी अखबार ‘तरुण भारत’ में काम) के तौर पर और फिर प्रचारक (1974) बनकर उन्होंने संघ में अपनी जगह बना ली थी।हालांकि, 1975 में आपातकाल लगा तो उन्हें भी जेल की यात्रा पर जाना पड़ा। उसी समय में पत्रकारिता के साथ-साथ राजनीति का जुनून चढ़ रहा था। प्रमोद महाजन की सक्रियता ने भाजपा में उनके लिए रास्ते बनाए और यहां से आगे उनका एक नया सफर शुरू हुआ था।आगे चलकर उनकी सियासी समझ और ईमानदारी ने उनके नाम को राजनीति की बुलंदियों तक पहुंचाने का काम किया। उन्होंने कम समय में ही तेजी से राजनीति में तरक्की की। 1978 में वे महाराष्ट्र राज्य इकाई के महासचिव बनाए गए। 1983 में वे पार्टी के अखिल भारतीय सचिव थे और फिर 1986 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने।उसी समय में देश में राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ने लगा था। भाजपा की अपनी तैयारी थी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं के हाथ में बागडोर थी। कहा जाता है कि 1983 में जब चंद्रशेखर ने पदयात्रा की तो राम मंदिर आंदोलन के लिए आडवाणी ने भी ऐसी ही पदयात्रा निकालने का मन बनाया था। उस समय प्रमोद महाजन की राय ने आडवाणी को एक नया रास्ता दिखाया और पदयात्रा की जगह रथयात्रा की तैयारी की गई। प्रमोद महाजन ने मेटाडोर को रथ में बदल दिया था और उसे ‘रामरथ’ नाम दिया गया। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए रथयात्रा की थी, जिसमें बड़ी भूमिका प्रमोद महाजन ने निभाई।यह रथयात्रा भाजपा के लिए एक संजीवनी जैसी थी। आने वाले आम चुनावों में भाजपा का जनसमर्थन लगातार बढ़ता गया। 1996 के आम चुनावों में भाजपा को लोकसभा में 161 सीटें प्राप्त हुईं और प्रमोद महाजन भी अपना पहला लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंच गए थे। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनाए गए तो महाजन रक्षा मंत्री बने। सरकार सिर्फ 13 दिन चल गई। इसका दुख भाजपा में सबको था और उस समय अटल बिहारी वाजपेयी ने भी संसद में ऐतिहासिक भाषण दिया था।इसी दौरान प्रमोद महाजन के लिए एक परीक्षा की घड़ी थी। गुजरात में भाजपा के दो कद्दावर नेताओं के बीच दरार आ चुकी थी। कहा जाता है कि उस वक्त आडवाणी ने प्रमोद महाजन को सुलह कराने का जिम्मा सौंपा, जिसमें वे सफल होकर लौटे। इस तरह 1995-96 में वे भाजपा के संकटमोचक बने।दो साल के बाद 1998 में भाजपा को फिर से सत्ता में आने का मौका मिला था। पार्टी ने आम चुनावों में 182 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उसी बीच भाजपा की अगुवाई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का गठन हुआ, जिसमें जयललिता के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक भी इसका हिस्सा बनीं। वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने शपथ ली, लेकिन जयललिता की पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया, जिस कारण सरकार लोकसभा में विश्वासमत के दौरान एक वोट से गिर गई।इसके पीछे वह अनैतिक आचरण था, जिसमें ओडिशा के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री गिरधर गमांग ने पद पर रहते हुए भी लोकसभा की सदस्यता नहीं छोड़ी और विश्वासमत के दौरान सरकार के विरुद्ध मतदान किया। इस आचरण के कारण ही देश को दोबारा आम चुनावों का सामना करना पड़ा। 1999 में हुए चुनावों में फिर से भाजपा को 182 सीटें मिलीं, लेकिन एनडीए गठबंधन बहुमत का आंकड़ा छूने में सफल रहा। सरकार बनाने के लिए पहली बार 20 पार्टियों से ज्यादा सहयोगियों को साथ लाया गया था। इसमें अहम रोल प्रमोद महाजन का था।जब एनडीए बनने की बात शुरू हुई तब कुछ घंटों में ही प्रमोद महाजन ने नेताओं से बातचीत शुरू की। प्रमोद महाजन कुछ घंटों में ही ममता बनर्जी, जयललिता और आंध्र से चंद्रबाबू नायडू से बात कर चुके थे, जो सफल थी। सरकार बनने तक प्रमोद महाजन इन नेताओं से संपर्क में बने रहे। लगातार इस काम में जुटे रहे कि गठबंधन में कोई बाधा न आए। इस घटनाक्रम के बारे में जितेंद्र दीक्षित ने अपनी किताब ‘बॉम्बे आफ्टर अयोध्या’ में लिखा था।इस राजनीतिक उतार-चढ़ाव में प्रमोद महाजन की भूमिका कम नहीं हुई थी। उन्होंने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक सलाहकार से लेकर संचार मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री तक कई जिम्मेदारियां निभाईं।तमाम समाचार लेखों में जिक्र मिलता है कि 2004 में समय से पहले चुनाव कराने के पीछे भी प्रमोद महाजन थे, जिनके हाथ में भाजपा के हाईटेक प्रचार कार्य की बागडोर सौंपी गई थी। उसी समय वे ‘इंडिया शाइनिंग’ जैसे नारे भाजपा के लिए लेकर आए थे। हालांकि, यह अलग बात है कि उस चुनाव में पार्टी और एनडीए को नुकसान उठाना पड़ा।इसके बाद दिसंबर 2005 में भाजपा की रजत जयंती का आयोजन हुआ। जिम्मेदारी प्रमोद महाजन को ही सौंपी गई थी। यह कार्यक्रम प्रमोद महाजन के लिए यादगार बना, क्योंकि आयोजन के अंत में अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें ‘लक्ष्मण’ का खिताब दिया था। महाराष्ट्र में बालासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना और भाजपा के बीच गठबंधन में भी प्रमोद महाजन की भूमिका रही। बीजेपी का नेता प्रमोद महाजन ने महाराष्ट्र में बीजेपी को सत्ता में पहुंचाने की नींव रखी। उन्होंने गोपीनाथ मुंडे के साथ मिलकर मराठा राजनीति में कांग्रेस के दबदबे को खत्म कर दिया। उनकी राजनीतिक कौशल का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि राममंदिर निर्माण को लेकर 1990 में अयोध्या से सोमनाथ तक जब लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा निकाली गई तो इसकी प्लानिंग का जिम्मा प्रमोद महाजन को सौंपा गया। महाजन ने ही 10 राज्यों से गुजरने वाली 10 हजार किलोमीटर की यात्रा की रूपरेखा तय की थी। 2003 में उन्होंने बीजेपी को हिंदुत्व की लाइन से हटकर विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़वाया। रणनीति के कारण दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बनी। महाराष्ट्र में शिवसेना से गठबंधन के सूत्रधार भी प्रमोद महाजन ही रहे। वह शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे और बीजेपी शीर्ष नेतृत्व के बीच कड़ी बने। 1995 में महाराष्ट्र में पहली बार बीजेपी सत्ता में पहुंची। भगवा दलों में गठबंधन का यह लंबा दौर 2019 तक चला। उनकी काबिलियत के कारण अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें लक्ष्मण कहा था। दिवंगत नेता प्रमोद महाजन के नाम पर महाराष्ट्र में 511 कौशल केंद्र बनाए गए हैं। निधन के 18 साल बाद महाराष्ट्र सरकार ने दिग्गज नेता प्रमोद महाजन को याद किया। आपातकाल के दौरान प्रमोद ने आरएसएस के लिए जमकर काम करते हुए इंदिरा विरोध मार्च भी निकाला। संघ के प्रति उनकी कर्तव्यनिष्ठा और सक्रियता को देखते हुए उन्हें बीजेपी में शामिल कर लिया गया। यहीं से उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई। साल 1983 से 1985 तक प्रमोद महाजन बीजेपी के अखिल भारतीय सचिव थे। इसके बाद 1986 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने। साल 1984 में प्रमोद महाजन ने लोकसभा चुनाव लड़ा। हालांकि, इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वे लगातार तीन बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे। भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय पटल लाने का श्रेय जिन नेताओं को जाता है, उनमें से एक प्रमोद महाजन हैं। हालांकि असमय हुई मौत के कारण वह राष्ट्रीय राजनीति में वह कद नहीं हासिल कर पाए। जिसके वह असली हकदार थे। बता दें कि 22 अप्रैल 2006 को प्रमोद महाजन को उनके ही छोटे भाई प्रवीण महाजन ने गोली मार दी थी। जिसके बाद 13 दिनों तक अस्पताल में प्रमोद महाजन जिंदगी और मौत से संघर्ष करते रहे। जिसके बाद इलाज के दौरान 3 मई को मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में उनकी मौत हो गई। प्रमोद महाजन की हत्या को आज कई साल बीत चुके हैं, लेकिन उनकी हत्या क्यों की गई। यह बात आज भी राज ही है। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*












