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चारधाम परियोजना पर पुनर्विचार करने की अपील

27/09/25
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला*

चार धाम परियोजना उत्तराखंड के चार प्रमुख धार्मिक स्थलोंबद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को सबी मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करने वाली एक योजना है. यह भारत सरकार की राजमार्ग  परियोजना है. इस परियोजना के तहत 889 किलोमीटर का राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने की योजना है ताकि उत्तराखंड के इन पवित्र स्थलों तक श्रद्धालु पूरे साल बगैर किसी रोकटोक के पहुंच सके.आपको बता दें कि चार धाम परियोजना उत्तराखंड के चार प्रमुख धार्मिक स्थलों – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को सबी मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करने वाली एक योजना है. इसके काफी पहले नवरी 2022 में  प्रसिद्ध पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने चार धाम परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट की उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) के अध्यक्ष के रूप में इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने कहा था कि मुझे नहीं लगता है कि एचपीसी इस नाजुक (हिमालयी) पारिस्थितिकी की रक्षा कर सकता है। दरअसल 27 जनवरी 2022 को रवि चोपड़ा ने सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को अपना त्यागपत्र सौंपा। इस त्यागपत्र में चोपड़ा ने शीर्ष अदालत के दिसंबर 2021 के आदेश का उल्लेख किया, जिसमें एचपीसी की सिफारिश और सितंबर 2020 के अपने आदेश में सिफारिशों को स्वीकार किए जाने के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यापक सड़क रचना को स्वीकार कर लिया है।चोपड़ा ने पत्र में लिखा कि इस निर्णय ने एचपीसी की भूमिका को केवल दो गैर-रक्षा सड़कों की देखरेख तक सीमित कर दिया है। वहीं उन्होंने कहा कि एचपीसी द्वारा अतीत में किए गए निर्देशों और सिफारिशों को या तो अनदेखा कर दिया गया है या सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा देरी से प्रतिक्रिया दी गई है। चोपड़ा ने लिखा कि यह अनुभव इस विश्वास को प्रेरित नहीं करता है कि मंत्रालय की प्रतिक्रिया दो गैर-रक्षा सड़कों के संबंध में भी बहुत भिन्न होगी। उन्होंने लिखा कि माननीय न्यायालय ने गैर-रक्षा राजमार्गों को चौड़ा करने के लिए रिस्पांडर्स को कानूनी राहत लेने की भी अनुमति दी है। इन परिस्थितियों में, मुझे एचपीसी का नेतृत्व जारी रखने या वास्तव में इसका हिस्सा बनने का कोई उद्देश्य नहीं दिखता है।चारधाम परियोजना के लिए वन एवं वन्यजीव क़ानूनों के बड़े स्तर पर उल्लंघन का इशारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त उच्च अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष ने केंद्रीय पर्यावरण सचिव को भेजे पत्र में कहा था कि परियोजना के कारण हिमालयी पारिस्थितिकी को बेहिसाब और दीर्घकालिक क्षति हुई। समिति ने  केंद्रीय पर्यावरण सचिव को भेजे गए पत्र में कहा था कि कानूनों का इस तरह से उल्लंघन किया गया जैसे कानून का शासन मौजूद ही नहीं है। विभिन्न हिस्सों पर बिना अधिकृत मंजूरी के पेड़ों और पहाड़ियों को काटने के साथ खुदाई सामग्री निकाली गई जिससे परियोजना के कारण हिमालयी पारिस्थितिकी को बेहिसाब और दीर्घकालिक क्षति हुई।परियोजना के पारिस्थितिक प्रभाव की जांच करने और इसे सही करने के उपायों की सिफारिश करने के लिए इस उच्च अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया था। यह भारत सरकार की राजमार्ग  परियोजना है. इस परियोजना के तहत 889 किलोमीटर का राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने की योजना है ताकि उत्तराखंड के इन पवित्र स्थलों तक श्रद्धालु पूरे साल बगैर किसी रोकटोक के पहुंच सके पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने चारधाम परियोजना के खिलाफ अपनी आवाज उठाई है. उन्होंने इस परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा है. साथ इस परियोजना को लेकर अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है. उन्होंने अपने इस पत्र में हिमाचल प्रदेश में बीते दिनों आई प्राकृतिक आपदाओं का भी जिक्र किया है. आपको बता दें मुख्य न्यायाधीश को जिन लोगों ने पत्र लिखकर इस परियोजना को लेकर कोर्ट के फैसले पर विचार करने की बात कही है, उनमें डॉ कर्ण सिंह, डॉ मुरली मनोहर जोशी, कुंवर रेवती रमण सिंह, के एन गोविंदाचार्य, प्रो शेखर पाठक, रामचंद्र गुहा, सांसद रंजीत रंजन, उज्ज्वल रमन सिंह जैसे नाम शामिल हैं. मुरली मनोहर जोशी ने मुख्य न्यायाधीश को लिखे अपने पत्र में कोर्ट के उस आदेश का जिक्र किया है अब तक किसी भी स्टडी में यह वैज्ञानिक आधार पर साबित नहीं हुआ है कि चार धाम प्रोजेक्ट की वजह से उत्तराखंड में लैंडस्लाइड या बाढ़ जैसी आपदाएं आईं. गौरतलब है कि चार धाम परियोजना की सड़कों की चौड़ाई बढ़ाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है क्योंकि सिटीज़न्स फॉर ग्रीन दून नाम के एनजीओ ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं को लेकर इस प्रोजेक्ट के खिलाफ याचिका दायर की थी.आपको याद दिला दें कि इससे पहले राज्यसभा में इसी साल मार्च के महीने में सड़क परिवहन और हाईवे मंत्री नितिन गडकरी ने भी एक लिखित जवाब में कहा था कि ‘उत्तराखंड सरकार, जिओलॉजिकल सर्वे और डीजीआरई की रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तराखंड में बाढ़जनित आपदा का कारण चार धाम प्रोजेक्ट की सड़कों को चौड़ा करना नहीं था. इसमें चारधाम परियोजना के तहत सड़कों के चौड़ीकरण की अनुमति देने की बात कही है. जोशी ने अदालत से अपने पहले के आदेश की समीक्षा करने की मांग की है. इस पत्र में कहा गया है कि इस तरह की स्थिति बेहद खतरनाक है. पत्र में कहा गया है कि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश में उभरते “अस्तित्वगत संकट” को स्वीकार किया है. यदि अभी सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो पूरे देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इस पत्र में विशेष रूप से भागीरथी इको-सेंसिटिव ज़ोन का उल्लेख किया गया है, जो गंगा का उद्गम स्थल है और हाल ही में धाराली आपदा जैसी त्रासदियों का सामना कर चुका है. नागरिकों का कहना है कि इस क्षेत्र में ‘आरओएमएडी’ डिज़ाइन से सड़क निर्माण की अनुमति देना जीवन, आजीविका और नदी तंत्र को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता है. पत्र में यह भी स्वीकार किया गया है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में रक्षा बलों की आवाजाही के लिए हर मौसम में संपर्क मार्ग आवश्यक है. लेकिन इसके साथ ही जोर दिया गया है कि हिमालय में इन्फ़्रास्ट्रक्चर का विकास “आपदा एवं जलवायु-लचीले दृष्टिकोण” से होना चाहिए, जो भू-भाग की पारिस्थितिक सीमाओं का सम्मान करता हो.नागरिकों ने मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया है कि चारधाम परियोजना के निर्णय की पुनः समीक्षा कर अधिक टिकाऊ ढांचा अपनाया जाए, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा की जरूरतों और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित हो सके मूल मुद्दा प्रणाली की वहन क्षमता है। भारी भूस्खलन, हिमस्खलन और ढलानों के ढहने से लगातार अवरुद्ध होती चौड़ी सड़क, दोहरी मार का कारण बनेगी क्योंकि न केवल सैन्य या हथियारों की आवाजाही में देरी होगी, बल्कि क्षतिग्रस्त सड़क को साफ करने या पुनर्निर्माण के लिए भारी प्रयास की आवश्यकता होगी, चार धाम परियोजना’ उन सभी पर्यावरणीय मानदंडों और संरक्षण रणनीतियों का बुनियादी उल्लंघन है जिनका पालन हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में किसी भी निर्माण गतिविधि के लिए आवश्यक है। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए), वन मंज़ूरियों से लेकर परिपत्रों और दस्तावेज़ों को छिपाने तक – यह एक अवैज्ञानिक सड़क-चौड़ीकरण परियोजना साबित हुई है जिसके विनाशकारी परिणाम होंगे।. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*

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