डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
चुकंदर की फसल पुरे भारत में विभिन्न उदेश्यों के लिए उगाई जाती है। यह गहरे लाल रंग का फल है। इसका प्रयोग सब्जी, रस, चीनी, चारा, सलाद और मानव रोग निवारण के लिए किया जाता है। उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं ही नहीं, यहां के खान.पान में भी विविधता का समावेश है। अंग्रेज़ी से अनुवाद किया गया कॉन्टेंट.चुकंदर एक चुकंदर के पौधे का टेपरोट हिस्सा है, जिसे आमतौर पर उत्तरी अमेरिका में बीट के रूप में जाना जाता है और इसे टेबल बीट, गार्डन बीट, चुकंदर, लाल बीट, डिनर बीट या गोल्डन बीट के रूप में भी जाना जाता है।
चुकंदर एक मूसला जड़ वाला वनस्पति है। यह बीटा वल्गैरिस नामक जाति के पौधे होते हैं जिन्हें मनुष्यों ने शताब्दियों से कृषि में पाला है और कई नस्लों में विकसित करा है। इसकी मूसला जड़ अक्सर हलकी.मीठी होती है और उसका रंग लाल, जामुनी, पीला या श्वेत होता है। विश्व के कई स्थानों में चुकंदर की जामुनी जड़ को कच्चा, उबालकर या भूनकर खाया जाता है। इसे अकेले या अन्य सब्ज़ी के साथ खाया जा सकता है और इसका अचार भी डाला जाता है। भारतीय खाने में इसे महीन काटकर और हलका.सा पकाकर मुख्य खाने के साथ खाया जाता है। चुकंदर के पत्तों को भी खाया जाता है, इनका प्रयोग आहार में कच्चा, उबालकर या भाप.देकर होता है। चुकंदर लोहा, विटामिन और मिनरलस का बहुत ही अच्छा श्रोत है इसीलिए चुकंदर का औषधीय उपयोग अधिक किया जाता है। चुकंदर खाने से जोड़ों का दर्द दूर होता है, लीवर को शक्ति देता है। दिमाग के लिए भी अच्छा है। यह मीठा, पुष्टिकर और मानसिक तरावट बढ़ाने वाला फल होता है। चुकंदर की सब्जी बनाकर या इसे कच्चा भी खा सकते हैं तथा रस भी पी सकते हैं चुकंदर कई तरीके से खाया जाता है आमतौर पर इसे कच्चे सलाद के रूप में खाया जाता है इसलिए मूली, गाजर, प्याज, टमाटर आदि की तरह ही चुकंदर को भी सलाद में शामिल करें।
दक्षिण भारत में उबाल कर खाने का भी प्रचलन है हालांकि उबालने से इस के कुछ तत्त्व खत्म हो जाते हैं। इसलिए इसे कच्चा खाना ही सब से लाभप्रद है। सभी पोषक तत्वों वाले गाढ़े लाल रंग के रस को पाने के लिए तरोताजा चुकन्दर ही प्रयोग करें, ताकि उसका छिलका सही.सलामत रह सके। कभी भी चुकन्दर का छिलका हटाएं और न ही उसकी जड़ को काटें, बल्कि प्राकृतिक दशा में ही उसे पकाएं, ताकि पर्याप्त पोषक तत्व प्राप्त हो सकें। खोजों से यह बात उभर कर आई है कि चुकन्दर के अधिक पकाने से इसमें पाया जाने वाला लाल रंग का रस टयूमर पर हमला करने की काबिलियत खो बैठता है। अनेक खूबियों से भरे रक्तवर्धक चुकंदर को आमतौर पर बहुत से लोग पसंद नहीं करते, लेकिन इसके रस को पीने से खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ती है, चुकंदर में अच्छी मात्रा में विटामिन और खनिज होते हैं जो रक्त शोधन के काम में सहायक होते हैं। इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट तत्व शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं। यह प्राकृतिक शर्करा का स्रोत होता है। इसमें आयरन, सोडियम, पोटेशियम, फॉस्फोरस और अन्य महत्वपूर्ण विटामिन पाए जाते हैं। चुकंदर के प्रमुख फायदे होते है, चुकन्दर का जूस पीने से ब्लड में बढ़ी नाइट्रेट की मात्र नाइट्रिक एसिड में तब्दील हो जाता है और ब्लड प्रेशर को घटने में सहायता करता है। चुकंदर का जूस हमारे शरीर में प्लाज्मा नाइट्रेट के मात्र बढ़ा शारीरिक कार्य कुशलता बेहतर करता है चुकन्दर का इस्तेमाल महिलाओं के ब्रेस्ट और पुरुषों के प्रोस्टेट ग्लैंड कैंसर के इलाज में भी किया जाता है।
ज़्यादा शराब का सेवन या नुक़सानसायक भोजन के सेवन से लीवर पर पड़ रहे दुष्प्रभाव से लड़ने में भी चुकंदर काम आता है। चुकन्दर का सेवन शारीरिक वज़न और चुस्ती को बनाए रखने में भी खूब लाभकारी साबित होता है। आयरन, मैंगेनीज़, पोटैशियम, फॉस्फोरस और कॉपर जैसे मिनरल्स का एक बेहतरीन सोर्स है, इन मिनरल्स की सहायता से शरीर का इम्यून सिस्टम स्वस्थ रहता है।
दिल के मरीज़ों के लिए तो चुकंदर एक वरदान जैसा है जो उनके शरीर के कॉरेस्ट्रोल को कम कर एक चिंता मुक्त जीवन जीने में सहायता करता है। शरीर में हो रही आयरन की कमी के चलते हीमोग्लोबिन की भारी गिरावट में भी चुकन्दर का सेवन बेहद लाभकारी है। यह आयरन की कमी को दूर कर हीमोग्लोबिन बढ़ाता है चुकन्दर में पाए जाने वाले फाइबर शरीर की पाचन क्रिया को आसान कर देते है और खून को साफ़ करने में मदद करता है। इतने सभी फायदे के साथ ही साथ चुकंदर हमारे दाँत, त्वचा और बालों के लिए भी एक वरदान है। चुकन्दर के पेड़ की पत्तियां हों, या हो जड़ हर हिस्सा हमारे किसी न किसी काम तो अवश्य ही आता है और न सिर्फ काम आता है बल्कि हमें बीमारियों की चपेट में आने से भी बचाता है। इसलिए हमें चुकन्दर का सेवन नियमित रूप से करते रहना चाहिए।
चुकन्दर एक बेहद ख़ास सब्जी है, जो हमारे मस्तिष्क से लेकर मांसपेशियों को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभाता है और यदि इसका उचित रूप से सेवन किया जाए तो एक परिवार में मौजूद बुज़ुर्ग, महिला, पुरुष और बच्चा सदैव स्वस्थ रहते हुए अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं फिर चाहे सलाद में शामिल कर हो या फिर जूस के तौर सेवन कर हो, चुकंदर हमेशा शरीर फायदा ही करेगा। किसानों द्वारा उगाये गई सब्जियों को पर्याप्त मूल्य नहीं मिल रहा है, लेकिन बाजार में अन्य प्रांत से आने वाले सब्जी जैसे परवल 100 रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से बिक रहा है। इसी तरह टिंडा 100 रुपये प्रति किलो में बिक रहा है। वहीं शिमला मिर्च, कटहल, चुकंदर, शलजम के भाव लोगों के बजट से बाहर हैं। गुरदासपुर किसानों को गन्ने की फसल लगाने के साथ साथ चुकंदर की खेती करने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है। चुकंदर भी चीनी बनाने में उपयोग की जाती है। राणा गुरजीत सिंह ने कहा कि इसकी खेती मे जहां लागत कम होती है तथा पानी की बचत होती है वहीं एक एकड़ में काश्त की गई चकुंदर की फसल गेहूं व धान के मुकाबले अधिक मुनाफा देती है। उन्होंने कहा कि प्रति एकड़ में चुकंदर का बीज एक किलो 400 ग्राम पैदा होता है। मिल द्वारा फ्री बीज दिया जा रहा है जिसकी बाजारी कीमत प्रति किलो तीन हजार रुपये है तथा इसका बीज विदेश से मिलता है। इसकी खेतीए कटाई तथा मंडीकरण भी मिल द्वारा खुद किया जाएगा।उन्होंने कहा कि प्रति एकड़ में से चुकंदर का 3 से 4 सौ क्विंटल झाड़ मिलता है तथा इसकी बाजार में कीमत प्रति क्विंटल 150 रुपये मिल रही है। उन्होंने कहा कि चकुंदर की खेती करने का समय अक्टूबर है तथा यह छह माह की खेती है।उपेक्षा का दंश झेल रहे जंगली फलों को महत्व देते हुए पूर्व में उद्यान विभाग ने मेलू मेहल, तिमला, आंवला, जामुन, करौंदा, बेल समेत एक दर्जन जंगली फलों की पौध तैयार कराने का निर्णय लिया। इस कड़ी में कुछ फलों की पौध तैयार कर वितरित भी की जा रही है, शिमला मिर्च, कटहल, चुकंदर, शलजम को शामिल कर करने की अपेक्षा है लेकिन इसे विस्तार मिलना अभी बाकी है।
2019 में मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र ने मसूरी कार्निवाल में शामिल पर्यटकों व अन्य लोगों का स्वागत करते हुए कहा कि फूड फेस्टिवल के माध्यम से राज्य के व्यंजनों को प्रोत्साहन मिलेगा। उन्होंने होटल व्यवसायियों से अपने मैन्यू में स्थानीय व्यंजनों को शामिल करने की अपेक्षा की। उन्होंने कहा कि हमें अपनी लोक संस्कृति, परंपरा एवं खानपान पर गर्व होना चाहिए। हमारे उत्पाद देश व दुनिया में अपनी पहचान बनाये इसके भी प्रयास होने चाहिए। हमारे पारंपरिक खाद्यान्न पौष्टिकता से भरपूर हैं, इनका अपना विशिष्ट स्वाद है, इसकी बेहतर ब्रांडिंग के जरिये हम इनकी पहचान बनाने में सफल हुए तो इससे इनके उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा तथा ग्रामीण आर्थिकी को मजबूती मिलेगी। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने इस अवसर पर श्रेष्ठ व्यंजन बनाने वालों को पुरस्कृत भी किया था। यही वजह है कि धीरे.धीरे इसके फलों से मार्केट भी परिचित होने लगा है। अपनी जमीन पर जैविक उपज तैयार करने से ज्यादा सुकून इस बात का है कि हम दूसरों को भी ऐसा करने में मदद कर रहे हैं। शहरी लोगों और किसानों के बीच यह तालमेल स्वच्छ भोजन के संकट से निपटने के लिए भारत का सबसे व्यावहारिक समाधान है। विशेषज्ञों के अनुसार इन फलों की इकोलॉजिकल और इकॉनामिकल वेल्यू है। इनके पेड़ स्थानीय पारिस्थितिकीय तंत्र को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, जबकि फल सेहत व आर्थिक दृष्टि से अहम हैं। चुकंदर की खेती करने के लिए भी प्रेरित करने चाहिए। जबकि तराई.भाबर के इलाकों में अधिकतर किसान गेहूंए धान की फसल लगाने में ही उलझे रहते हैं। मिल द्वारा किसानों को गन्ने की फसल लगाने के साथ साथ चुकंदर की खेती करने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है। चुकंदर भी चीनी बनाने में उपयोग की जाती है।इसकी खेती मे जहां लागत कम होती है तथा पानी की बचत होती है वहीं एक एकड़ में काश्त की गई चकुंदर की फसल गेहूं व धान के मुकाबले अधिक मुनाफा देती है। उन्होंने कहा कि प्रति एकड़ में चुकंदर का बीज एक किलो 400 ग्राम पैदा होता है। मिल द्वारा फ्री बीज दिया जा रहा है जिसकी बाजारी कीमत प्रति किलो तीन हजार रुपये है तथा इसका बीज विदेश से मिलता है। इसकी खेतीए कटाई तथा मंडीकरण भी मिल द्वारा खुद किया जाएगा।