डा.हरीश चंद्र अन्डोला
पहाड़, पानी, वनों का ही हिस्सा समझते हुए व्यवहार किया गया, जबकि हिमालय वेद पुराण के अनुसार तब भी आध्यात्मिक महत्त्व ज्यादा रखता था और आज भी उसी तरह से रखता है। हिमालय को हमेशा एक पूजनीय स्थल समझा गया और यही कारण है कि सभी तरह के देवी.देवताओं का यह वास बना। कोई भी धर्म हो, हिमालय उसका केन्द्र बना। इसका प्रमाण इन धर्मों के तीर्थस्थलों की हिमालय में उपस्थिति से मिलता है। हरिद्वार में गंगाजल लेने आए कांवड़ियों द्वारा अराजक तरीके से फैलाई गयी गन्दगी की सफाई करना प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ है। इतना ही नहीं शहर में चारों तरफ फैले बेतरतीब कूड़े और अस्थायी पार्किगों में किये गए मल.मूत्र विसर्जन से शहर में संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। पूरे शहर में गंदगी के पसरे होने से हवा में तीखी दुर्गन्ध फैली हुई है। स्थानीय नागरिकों का चलना तक मुश्किल हो गया है। गंगाजल लेने हरिद्वार पहुंचे कांवड़िये अपने पीछे 2400 मीट्रिक टन कूड़ा.कचरा छोड़ गए हैं। हरिद्वार शहर में रोजाना 200 मीट्रिक टन कूड़ा इकठ्ठा होता है लेकिन कांवड़ मेले के दिनों में इससे कई गुना ज्यादा कूड़ा इकट्ठा हुआ है।
कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िये प्लास्टिक की बोतल, पन्नियाँ, प्लास्टिक की बोतलें, बेकार हो चुके कपड़े, खाना आदि सड़क और घाटों पर ही फेंककर चले गए। इस दौरान गंगा को भी नहीं बख्शा गया। कांवड़िये गंगा नदी में अपने साथ लायी कांवड़ के अलावा प्लास्टिक और अन्य कचरा भी बहा गए। हरकी पैड़ी, महिला घाट, मालवीय घाट, कनखल, भूपतवाला, बैरागी कैम्प आदि कई क्षेत्रों में खुले मेंकी गयी शौच की गन्दगी फैली हुई है। भीषण बदबू से रास्तों पर चलना मुहाल है। दैनिक जागरण की खबर के मुताबिक कांवड़ यात्रा के दौरान एनजीटी के नियमों की भी खुलेआम धज्जियाँ उडाई गयी। प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबन्ध होने के बावजूद गंगा घाटों और शहर में कई अन्य जगह प्लास्टिक के कैन, प्लास्टिक की चटाई, बरसाती आदि की धड़ल्ले के साथ खरीद.फरोख्त हुई। खुलेआम सजी इन दुकानों को देखकर भी पुलिस आंख मूंदे रही, दिखावे के लिए एकाध जगह अनुष्ठानिक कार्रवाई ही की गयी। हरिद्वार नगर निगम के मुताबिक कांवड़ यात्रा के आखिरी दिनों में शहर के जाम हो जाने की वजह से कूड़े का निस्तारण नहीं हो पाया था। इस वजह से चुनौती और ज्यादा बढ़ गयी है।