डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
आपदा की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड में आपदाएं जिंदगी की डोर पर भारी पड़ रही हैं। इस वर्षाकाल में भी आपदा ने चिंता और चुनौती दोनों बढ़ा दी हैं। पहाड़ में बादल फटना, भूस्खलन तो मैदानी क्षेत्रों में बाढ़, जलभराव की दिक्कत सांसें अटका रही है।आंकड़े देखें तो डेढ़ माह के वक्फे में ही आपदा ने 25 जिंदगियां लील ली, जबकि 18 लोग घायल हुए और आठ लापता हैं। इसके अलावा मवेशियों, घरों, कृषि भूमि के साथ ही सड़कों, पेयजल व विद्युत योजनाओं और सार्वजनिक परिसंपत्तियों को काफी क्षति पहुंची है। यही नहीं, सड़क हादसे भी भारी पड़ रहे हैं। विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में चौमासा यानी वर्षाकाल के चार माह भारी गुजरते हैं। इस दौरान जनजीवन अस्त-व्यस्त रहता है। पर्वतीय क्षेत्रों में अतिवृष्टि, बादल फटना, भूस्खलन, आकाशीय बिजली जैसी आपदाएं चौमासे में भयभीत करती हैं, जबकि मैदानी क्षेत्रों में नदियों के उफान पर रहने के कारण बाढ़ और जलभराव मुसीबत का सबब बनते हैं। इस बार का परिदृश्य भी इससे जुदा नहीं है। विभिन्न जिलों में एक के बाद एक आपदाएं जान-माल के नुकसान का सबब बन रही हैं। एक जून से अब तक की तस्वीर देखें तो इस अवधि में राज्य में आपदा ने 270 घरों की नींव हिलाई है, जबकि 79 छोटे-बड़े मवेशी काल कवलित हुए हैं।पिछले वर्षाकाल को लें तो तब आपदा में 90 व्यक्तियों की जान गई, जबकि 91 घायल हुए। 28 व्यक्तियों का कोई पता नहीं चल पाया। यही नहीं, घरों, मवेशियों, कृषि भूमि के साथ ही परिसंपत्तियों को भारी क्षति पहुंची। तब आपदा से 1100 करोड़ रुपये की क्षति का आकलन किया गया था। इस बार वर्षाकाल के डेढ़ माह में ही मौसम ने जैसे तेवर दिखाए हैं और आगे जैसी संभावना है, उससे क्षति भी अधिक होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इस सबको देखते हुए शासन ने क्षति के आकलन के लिए जिलों को निर्देश जारी किए हैं। पहाड़ी इलाकों में ज़मीन की ढलान तेज़ होती है, जिससे पानी तेजी से नीचे बहता है। जब इतनी भारी बारिश एक साथ होती है, तो नदी-नालों का जलस्तर अचानक बढ़ जाता है, जिससे फ्लैश फ्लड यानी अचानक बाढ़ आ जाती है। इस पानी के साथ मलबा, पत्थर और पेड़ भी बहते हैं, जो घरों, पुलों और सड़कों को तबाह कर देते हैं। बादल फटना अब एक बार-बार होने वाली त्रासदी बन चुका है, जो हर साल खासकर मानसून सीजन में पहाड़ी राज्यों में कहर ढाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि वैज्ञानिक कारणों को समझना और स्थानीय स्तर पर तैयारी करना समय की मांग है। इसके साथ ही, जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित निर्माण भी इन आपदाओं को और भयावह बना रहे हैं। पहाड़ अब सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य नहीं, प्राकृतिक संवेदनशीलता का क्षेत्र बन चुके हैं। समाधान के लिए जरूरी है – सतर्कता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पहाड़ों के साथ संतुलित विकास। मौसम विभाग ने तेज बारिश की चेतावनी दी है. अलर्ट पर प्रशासन है. कई इलाकों पर है आपदा का खतरा.इसे जलवायु परिवर्तन का चिंताजनक संकेत बताया। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*