उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी मंच के देहरादून निवासी ’मनोज नौटियाल’ ने अपने 06 सदस्यों के दल के साथ 12 जून को सतोपंत हिमशिखर’ पर ’लहराया तिरंगा।’ मूल रूप से टिहरी निवासी निवासी मनोज नौटियाल ने अपनी टीम के साथ मिलकर गंगोत्री क्षेत्र की अति दुर्गम और कठिन माने जानेवाली चोटी पर सफल आरोहण किया। साथोपंत हिम शिखर जो कि ’7075 मीटर पर स्तिथ’ है, अति जटिलताओं से भरा है। विगत कई वर्षों से कई आरोहण दलों को सफलता प्राप्त भी हुई और अनेकों बार दलों को खाली हाथ लौटना पड़ा है। अपितु इस हिम शिखर पर अनेकों को अपनी जान भी गवानी पड़ी है।
राज्य आंदोलनकारी मंच के अध्यक्ष जगमोहन सिंह नेगी एवं जिला अध्यक्ष प्रदीप कुकरेती ने मनोज नोटियाल को बधाई देते हुए कहा कि वह संघर्षशील व्यक्ति है और पूर्व में भी जिस प्रकार समय समय अलग अलग स्थानों पर ट्रेकिंग पर जाकर सफलता प्राप्त करते रहे हैं।
मनोज नोटियाल ने अपने इस रोमांचकारी अभियान की दास्तां राज्य आंदोलनकारियों को भी सुनाई 26 मई को गंगोत्री से शुर इस आरोहण में 06 सदस्य जो की आसाम, कलकत्ता, मुंबई, बंगूलूर से थे। गंगोत्री से शुरू हुआ यह अभियान गौमुख होते हुए नंदनवन, वसुकिताल और फिर बेस कैंप पहुंचा। जिसमे दल को 05 से 06 दिन लगे।
बेस कैंप पर फिर आगे की रूपरेखा तैयार की गई आगे का रास्ता बहुत जटिल और जोखिम भरा था। दल के साथ मुख्य गाईड ग्यालबु शेरपा थे, जो की एक विख्यात व्यक्तित्व के स्वामी हैं। उन्होंने कई आरोहण सेना एवं अन्य ग्रुप्स को करवाए हैं। 05 जून को वासुकी ताल से आगे का सफर शुरू करके एडवांस बेस कैंप को रवाना हुए। फिर वहां से सामान राशन आदि का ढूलान कर के सम्मिट कैंप तक ले जाना एक चुनौती थी। सारे मेंबर्स ने 9 जून तक ये सभी साजो सामान सम्मिट तक पहुंचाया।
10 जून को आराम करने के बाद 11 जून को रात्रि 10 बजे सारे सदस्य आरोहण के लिए कूच कर चले। बहुत ही विषम परिस्थितियों में और शून्य से नीचे माइनस 15° तापमान जिसमे हाड़ तक जम जाय, उसको लांघते हुए अपनी मंजिल की ओर निकल पड़े। कुछ ही दूरी पर चोटी की सबसे भयवाहक हिस्सा जिसे नाइफ रिज कहते हैं, चाकू की धार वो सामने थी, जहां पर सिर्फ एक पैर ही रखने की जगह है।
सभी ने बड़ी कुशलता और धैर्य के साथ उसको पार कियाए लगभग सुबह 5 बजे ये दल चोटी के करीब पहुंचे और फिर कुछ पल रुक कर फिर आरोहण को निकाल पड़े। यकायक धुंध छा गई और सभी खामोश हो गए। मगर महादेव की कृपा से कुछ ही पलों में सब साफ हो गया। कड़ी मेहनत के बाद और दृढ़ संकल्प के साथ सभी लोग आगे बढ़ते गए। लगभग दोपहर के 2.33 पर दल अपनी मंजिल पर था। खुशी थी दिलों में, और हाथों में तिरंगा प्यारा। सभी ने अपनी खुशी का तिरंगा फहेरा कर किया। ये वो पल था जहां सभी ने सतोपंत हिम शिखर को प्रणाम किया और अपना धन्यवाद दिया। जिसने हमें उस तक पहुंचने की आज्ञा दी। ये खुशी अभिव्यक्त करना बहुत मुश्किल है।
सदस्य मितेश सिंह, बरनाली डेका, हर्षाली, अर्पितो पाउल, कुणाल, अमृता शेरपा रहे।