शंकर सिंह भाटिया
कोरोनाकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ अपनी पांचवीं चर्चा में सबसे अधिक चिंता इस बात को लेकर जताई है कि कोरोना कहीं गांव में प्रवेश न कर जाए। इससे बचने के लिए सबसे अधिक कोशिश की जानी चाहिए। प्रधानमंत्री की यह चिंता उत्तराखंड के परिप्रेक्ष में सबसे अधिक सटीक बैठती है। उत्तराखंड के लिए रेलों से प्रवासियों का आना शुरू हो गया है। इससे पहले अपने वाहनों से दूसरे राज्यों से आने वाले प्रवासियों ने पहले उधमसिंह नगर जिले में चार संक्रमण और उसके बाद कोरोना से पूरी तरह मुक्त उत्तरकाशी जिले को भी एक संक्रमण दे दिया। अभी तक करीब 35-40 हजार प्रवासी ही राज्य में पहुंचे हैं, अभी डेढ़ लाख से अधिक लोगों को आना है, गांवों में कोरोना के प्रवेश के लिए यही दौर सबसे अधिक संवेदनशील होने जा रहा है।
प्रवासी खाली हाथ हैं, जहां वे काम करने गए थे, अब उन्हें वहां अपना भविष्य सुरक्षित नहीं लग रहा है। इसलिए वह अपने घरों को आ रहे हैं। उनके आने का विरोध करना कतई उचित नहीं है। हां यह सुनिश्चित होना चाहिए कि वे लोग कोरोना के कैरियर न साबित हों। ज्यादातर लोग महानगरों से आ रहे हैं, सभी महानगर कोरोना के रेड जोन हैं। निश्चित तौर पर आने वाले प्रवासियों में कई कोरोना संक्रमित होंगे। यदि लावरवाही बरती गई तो निश्चित रूप से ऐसे लोग कोरोना कैरियर साबित होंगे। राज्य सरकार ने दबावों के चलते लोगों को घर पहुंचाने के लिए वाहन सुविधाएं दी हैं। रेल संचालन में उत्तराखंड पहले थोड़ा पिछड़ा हो, लेकिन अब रेल से भी यात्री आने लगे हैं। इन लोगों को क्वारंटीन करने की व्यवस्था को लेकर कई स्तरों पर शक जाहिर किया जा रहा है। गांवों से उठ रहे विरोध के स्वरों को भी इसी परिप्रेक्ष में देखा जा सकता है। होम क्वारंटीन की जो व्यवस्था अभी की जा रही है, वह प्रधानों के जिम्मे है। उत्तराखंड के गांवों में कई प्रधान बहुत सक्रिय हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है। गांवों के पंचायत घरों और स्कूलों में 14 या 21 दिन के लिए क्वारंटीन किए गए लोग गुपचुप तरीके से अपने घर वालों के साथ संपर्क कर सकते हैं। यही खतरे की सबसे बड़ी घंटी है।
प्रधान संसाधनहीन हैं। हालांकि इस मामले में उन्हें जिला प्रशासन से सहयोग की व्यवस्था की गई है। इतने लंबे समय तक प्रवासियों पर कड़ी नजर रखना, उनके खान पान की उचित व्यवस्था करना एक कड़ी परीक्षा है। कई प्रधान इसमें सफल साबित होंगे, लेकिन सभी होंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। अनुभव बताते हैं कि क्वारंटीन की इस व्यवस्था से गांवों में विवाद भी खड़े हो रहे हैं। इसीलिए होम क्वारंटीन के स्थान पर संस्थागत क्वारंटीन की व्यवस्था करने की मांग उठ रही थी।
प्रवासियों के आने के पहले चरण में ही उत्तराखंड को बड़ा धक्का लगा है। शुरूआती दौर में ही प्रवासियों ने रेड से ग्रीन का सफर तय करने वाले उधमसिंह नगर जिले को चार संक्रमण दिए हैं, जबकि लगातार कोरोना से मुक्त रहे उत्तरकाशी जैसे सीमांत जिले को भी संक्रमण का डंक दिया है। उत्तरकाशी पहुंचने वाले संक्रमण ग्रसित व्यक्ति की यदि देहरादून ही उचित जांच हो जाती तो कोरोना को पहाड़ में चढ़ने से बचाया जा सकता था। इसलिए सारा दारोमदार लोगों के सहयोग के साथ सरकार की व्यवस्था पर टिका हुआ है। तभी उत्तराखंड के गांवों को कोरोना प्रवेश से बचाया जा सकता है। यदि किसी लापरवाही की वजह से उत्तराखंड के गांव संक्रमण की चपेट में आ गए तो इससे बदतर व्यवस्था कोई नहीं हो सकती है।












