देहरादून। एक संवेदनशील कवि, साहित्यकार, पत्रकार मंगलेश डबराल का जाना पूरे साहित्य जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है। कोरोना ने उन्हें 72 वर्ष की आयु में ही हमसे छीन लिया, अन्यथा उनके साहित्य में ‘पहाड़ पर लालटेन’ जैसी साहित्यिक ऊर्जा लौटती हुई दिख रही थी।
‘उत्तराखंड के सुलगते सवाल’ सिरीज में हमने उनसे 6 अक्टूबर 2020 को उनका साक्षात्कार लिया था। मंगलेश डबराल जी से हमारी यह चर्चा साहित्यिक विमर्श कतई नहीं थी। उनसे हमारी चर्चा एक ख्याति प्राप्त लेखक, कवि, पत्रकार से उनकी मातृभूमि को लेकर उनकी सोच पर थी। जो अपनी जन्म भूमि टिहरी जिले के गांव काफलपानी, जो अब टिहरी झील के तल में डूबा हुआ है, उसकी यादों को लेकर है।
दशकों तक दिल्ली जैसे महानगर में रहकर अपने साहित्य कर्म को मातृभूमि के संस्मरणों से जोड़कर रखने वाले साहित्यकर्मी, पत्रकार से यह चर्चा थी।
उनसे इस बात को लेकर चर्चा थी कि उन जैसे लोग जिन्होंने अपने कर्म से एक मुकाम हासिल कर लिया है और अब वह दिल्ली महानगर में रह रहे हैं, अपनी मातृभूमि के बारे में क्या सोचते हैं? जब सन् 2000 में उत्तराखंड राज्य बना तो उन्हें भी दूसरे लोगों की तरह खुशी हुई होगी, लेकिन जब बीस साल बाद वह देखते हैं कि उत्तराखंड एक आधा-अधूरा राज्य है, जिसकी सीमा के अंदर जमीनों, नहरों, झीलों, तालाबों, बांधों, आवासीय एवं कार्यालयी भवनों पर दूसरा राज्य काबिज है और अब इस कब्जे को वैधानिक रूप दिया जा रहा है, तब उन्हें कैसा लगता है?
ऐसे ही बहुत सारे सवालों को लेकर हम मंगलेश डबरालजी से रूबरू हुए थे। उनके जैसे संवेदनशील व्यक्ति के जो उत्तर थे, उतने ही संवेदनाओं से भरे हुए थे। यहां पर हम उनके साथ 6 अक्टूबर 2020 को हुई चर्चा पर वीडियो दे रहे हैं। आप भी सुनिये और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करइये।-












