डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
धराली जैसी त्रासदी का खतरा है। यहां साड़ा व उपराड़ी गांव के संवेदनशील नाले आपदा की दृष्टि से निचली बसावट के लिए डर का कारण बनते जा रहे है।मुख्यालय के ठीक ऊपर बसे साड़ा और उपराड़ी गांव के संवेदनशील तोक मुरीला, सिला, दरम्याली और कुराला कभी भी भारी तबाही मचा सकते हैं।धराली आपदा के बाद इन गांवों की भौगोलिक स्थिति ने निचले बस्तियों में रह रहे लोगों की चिंता बढ़ा दी है। ग्रामीण सुमन प्रसाद बधानी बताते हैं यहां वर्षों से दलदल बनी हुई है, जो बरसात में पहाड़ी ढलानों से आए पानी से भर जाती है। यही पानी साड़ा व उपराड़ी गांव के नालों से होकर तेज रफ्तार में बड़कोट की ओर उतरता है।वर्ष 1998 में ऐसे ही उफान में सेव से लदे खच्चर भी बह गये थे। सुमन प्रसाद ने बताया कि 2003 से 2008 के बीच, जब उनकी पत्नी ग्राम प्रधान थीं, उन्होंने तत्कालीन जिलाधिकारी को खतरे की जानकारी दी थी। आपदाग्रस्त धराली में तबाही मचाने वाली खीर गंगा नदी ने सोमवार शाम हुई वर्षा से फिर रौद्र रूप ले लिया। इससे जहां लोग घंटों खौफ में रहे, वहीं राहत कार्यों में भी बड़ी बाधा पहुंची है।स्निफर डॉग्स और तमाम उपकरणों के बाद भी मलबे में शवों को निकाल पाना मुश्किल सा हो रहा है. सेना और एसडीआरएफ ने प्रशिक्षित डॉग्स की मदद से कई पॉइंट्स चिन्हित किए हैं, लेकिन दलदली जमीन और बड़े-बड़े बोल्डर के बीच यहां से मलबा निकाल पाना मुश्किल हो रहा है. उधर बड़ी चुनौती यह है कि करीब 30 से 40 फीट नीचे यदि कोई दबा भी है तो उस जगह को पक्के तौर पर ढूंढ पाना आसान नहीं है. शायद इसीलिए मलबे के नीचे दबे लोगों को निकालना अब नामुमकिन सा हो रहा है.धराली में भारी मालबे से आई आपदा को अब एक हफ्ता पूरा हो चुका है, लेकिन अब तक इतनी बड़ी आपदा में केवल कुछ एक शव ही ढूंढे जा सके हैं, जबकि उत्तरकाशी जिला प्रशासन ने आज ही एक हफ्ते बाद 42 लोगों के गुमशुदा होने की सूची जारी कर दी है. हालांकि, आने वाले दिनों में यह संख्या और भी बढ़ने की उम्मीद है. खास बात यह है कि खीरगंगा से आया लाखों टन मलबा आज धराली बाजार के ऊपर पसरा हुआ है. एक पूरा बड़ा बाजार मलबे के नीचे है. जाहिर है कि जिस बाजार में 65 होटल 30 से ज्यादा रिजॉर्ट और होमस्टे समेत तमाम दुकानें मौजूद हो उसके ऊपर 25 से 30 फीट और कहीं-कहीं 40 फीट मलबा आने से सब कुछ जमींदोज हो चुका है. भारी तबाही के बीच राहत एवं बचाव कार्य तो पूरा हो चुका है, लेकिन, अब उससे भी कठिन सर्च ऑपरेशन करना दिखाई दे रहा है. लाखों टन मलबे के नीचे कई शवों के होने की उम्मीद है, लेकिन सेना और एसडीआरएफ भारी मशीनों और स्निफर डॉग्स की मदद से भी इन शवों को मलबे के नीचे नहीं ढूंढ पा रही हैं. इस क्षेत्र में करीब 10 से ज्यादा जगह पर स्निफर डॉग मलबे के नीचे इंसानों के शव होने की तरफ इशारा कर चुके हैं. जब यहां पर गड्ढे खोदे जाते हैं तो शव बरामद नहीं हो पा रहे हैं. उधर इस जगह पर दलदली जमीन में गड्ढे खोदना भी मुश्किल हो रहा है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि एक तरफ यहां बड़ी भारी जेसीबी या पोकलैंड मशीन नहीं पहुंच पा रही है. दलदली जमीन होने के कारण भारी मशीन यहां नहीं पहुंचाई जा सकती है. खुद एसडीआरएफ और सेना के जवानो का यहां गड्ढे खोदने में मुश्किल हो रही है. साथ ही यहां बड़े-बड़े बोल्डर(पत्थर) भी हैं. जिन्हें बेलचे या फावड़े से निकालना मुमकिन नहीं है. राहत कार्यों को गति देने के लिए पिछले पांच दिन में जो तैयारियां की गई थीं, वो एक झटके में खीर गंगा के उफान में बह गईं। इससे राहत एवं बचाव कार्य में लगी टीमों के समक्ष दुश्वारियां खड़ी हो गई हैं। आपदा प्रभावित क्षेत्र में संचार सेवा भी ध्वस्त हो गई है। इससे क्षेत्र में सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं हो पा रहा है। इधर, भागीरथी के जलस्तर में वृद्धि होने से हर्षिल क्षेत्र में बनी झील में भी पानी बढ़ गया है। सोनगाड और डबराणी के बीच ध्वस्त गंगोत्री हाईवे पर बचा पैदल मार्ग वर्षा और भूस्खलन से भागीरथी नदी में समा गया है। इससे 500 मीटर हाईवे पूरी तरह अवरुद्ध हो गया है। इनमें धराली गांव की दो गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं, जिन्हें प्रसव के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अब तक आपदा प्रभावित क्षेत्र से हेलीकाप्टरों से 1,308 स्थानीय लोग व यात्री निकाले जा चुके हैं। भूवैज्ञानिकों ने उस समय सर्वे कर यह स्पष्ट कहा था कि गांव को विस्थापित करना आवश्यक है। लेकिन 17 साल बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। ग्रामीण घर की दीवारों में बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं।सड़क किनारे लगी आरसीसी व वायर क्रेट दीवारें तिरछी हो गई हैं। पहाड़ की ओर बढ़ें तो पेड़ भी झुक चुके हैं। हरि नेगी और संजय सेमवाल साड़ा गांव में अधिकांश मकानों में दरारें हैं।प्रशासन को कई बार पत्र लिखे, पर कोई सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने प्रशासन गांवों का विस्थापन और स्थायी पुनर्वास करने की मांग की है, ताकि भविष्य में धराली जैसी त्रासदी से बचा जा सके।निचले इलाकों में तबाही की आशंका वर्ष 2024 में तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा भूवैज्ञानिक से कराए गए सर्वे में यह बात सामने आई थी कि यह इलाका हर साल कुछ सेंटीमीटर धंस रहा है। भूवैज्ञानिकों का मानना है कि अगर यहां अतिवृष्टि हुई तो निचले इलाकों में भारी तबाही हो सकती है। राज्य उत्तराखंड प्राकृतिक आपदाओं और भूकंपीय दृष्टि से अति संवेदनशील है. इसका एक उदाहरण उत्तरकाशी का धराली आपदा है. जो भारी तबाही के साथ ही चेतावनी भी अब सरकार इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाएगी। उत्तराखंड जैसे संवेदनशील पहाड़ी राज्य में तेजी से हो रहा अनियंत्रित निर्माण अब प्रकृति के लिए खतरे की घंटी बनता जा रहा है। धराली का भयंकर मंजर अब भी डरा रहा है। प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता से भरपूर इन पर्वतीय इलाकों में बेतहाशा इमारतों और सड़कों का निर्माण न केवल पर्यावरणीय संतुलन बिगाड़ रहा है, बल्कि आपदा का बड़ा कारण भी बन रहा है। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*