डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
धारचूला। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से करीब 90 किलोमीटर की दूरी मौजूद बसा हुआ है। यहां बड़े शॉपिंग सेंटर, सिनेमाघर इत्यादि भले ही न देखने को मिलें, मगर यहां आपको प्रकृति के अद्भुत नज़ारे खूब दिखेंगे। धारचूला के इतिहास पर नज़र डाले तो एक समय में यह एक बड़ा व्यापारिक केंद्र था। यहां के लोग तिब्बत के साथ बड़ी मात्रा में भोजन और कपड़ों का व्यापार करते थे। साल 1962 में हुए भारत.चीन युद्ध ने धारचूला की तस्वीर बदल कर रख थी। इस युद्ध के फलस्वरूप यहां के लोगों को तिब्बतियों के साथ अपने सभी व्यापार बंद करने पड़े। ऐसे में यहां के लोगों के पास खेती, मवेशी पालन जैले ही काम बचे थे। इससे ही उनके घर का दाना.पानी चलता था।
1962 के युद्ध के बाद भारत सरकार की मदद से यह पर्यटन का केंद्र बिन्दु बना। दरअसल, धारचूला का एक भाग भारत जैसा है, तो वहीं दूसरा नेपाल जैसा है। यही कारण है कि इसने लोगों को आकर्षित किया। धीरे.धीरे एक बड़ी संख्या में सैलानी यहां आने लगे, जो बदस्तूर जारी है। हिमालयी चोटियों से घिरे धारचूला के नाम के पीछे भी अपना एक तर्क है। यह धार यानि कि पहाड़ी और चूला यानि चूल्हा शब्द से मिलकर बना हुआ है। इसकी बनावट भी कुछ चूल्हे जैसी प्रतीत होती है। यही कारण है कि इसे धारचूला के नाम से जाना जाता है। अपनी यात्रा के दौरान जब आप यहां के स्थानीय लोगों से मिलेंगे तो एक पल के लिए अंदाजा नहीं लगा पाएंगे कि ये लोग भारतीय ही हैं। ये लोग देखने में कॉफी हद तक बिल्कुल वैसे ही लगते हैं, जैसे ये नेपाल के हो।
देवताओं और ऋषियों की भूमि उत्तराखंड में बहुत से ऐसे पवित्र स्थल हैं जिनके बारे में अभी तक बहुत कुछ जानकारी ही नहीं है। ऐसा ही एक स्थल है पिथौरागढ़ जिले के धारचूला तहसील में 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित सीपू गांव में। गांव से करीब 12 किमी दूर एक प्राचीन गुफा है जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान शिव ने इस गुफा में विश्राम किया था। शिव जिस पत्थर पर बैठे, उस पर आज भी उनके बैठने के निशान हैं। ग्रामीण इस क्षेत्र में मौजूद एक मात्र भोजपत्र के वृक्ष को शिव की लाठी का रूप मानते हैं। गुफा तक पहुंचने के लिए खड़ी चट्टान को पार करना होता है। गांव में बड़ी पूजा होने पर ग्रामीण गुफा तक जाकर प्रसाद चढ़ाते हैं। गुफा के नजदीक ही मिलती माई का तालाब है। गर्मियों में भी पानी से लबालब भरे रहने वाले इस तालाब को सबसे पहले एक तिब्बती व्यापारी ने देखा। कहते हैं कि घोड़े पर सवार यह तिब्बती व्यापारी इस गुफा की गहराई नापने के लिए तालाब में उतरा तो फिर वापस नहीं लौटा। व्यापारी की टोपी सीपू गांव में फूटने वाले इस तालाब के स्रोत से निकली। इस तालाब की भी वर्ष में एक बार विशेष पूजा होती है।
पिछले वर्षों में क्षेत्र भ्रमण के दौरान सीपू के ग्रामीणों से इन महत्वपूर्ण स्थानों की जानकारी आइटीबीपी के तत्कालीन डीआइजी एपीएस निंबाडिया को दी। इस पर उन्होंने आइटीबीपी की एक टीम यहां भेजी। यहां पहुंचे जवानों ने गुफा के बाहर की फोटो ली। जवानों के मुताबिक गुफा के भीतर कई शिवलिंग और बाहर आकर्षक चट्टानें हैं। जवान गुफा में करीब दो किमी भीतर तक गए। अनुमान है कि इसकी लंबाई चार से पांच किमी हो सकती है।जवानों के अनुसारए गुफा में कई शिवलिंग बने हैं। गुफा के बाहर भी आकर्षक चट्टानें हैं। गुफा के भीतर ऊपर से पानी टपकता रहता है। ग्रामीणों ने इस गुफा को धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने की मांग की है। यदि गुफा तक पहुंचने का मार्ग बन जाए तो उच्व हिमालय में यह गुफा शिव की गुफा के रूप में आस्था और पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन सकती है।












