
फोटो- प्रलयंकारी जलजले से पूर्व विष्णुप्रयाग
02— जलजले के बाद विष्णु प्रयाग की स्थिति ।
प्रकाश कपरूवाण
जोशीमठ। उत्तराखंड के प्रथम प्रयाग विष्णु प्रयाग में भगवान विष्णु के चरणों को स्पर्श कर ही धौली गंगा को रौद्र रूप शांत हो सका। इसे एक चमत्कार ही कहेंगे कि जैसे ही भगवान विष्णु के मंदिर के अंन्दर धौली गॅगा का प्रवाह पहंुचा एकाएक पानी कम होता चला गया।
रैणी व तपोवन के बाद यदि तबाही हुई तो वह हुई, उत्तराख्ंाड के प्रथम प्रयाग विष्णुप्रयाग में। धौली के रौद्र रूप ने यहां सब कुछ तबाह करके रख दिया था।
7 फरवरी को ऋषि गंगा मंे आए जल प्रलय ने ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट रैणी के साथ ही तपोवन वैराज साइट को तो तबाह किया ही, अपितु इस जल प्रलय ने करीब दस किमी0 दूर उत्तराखंड के प्रथम प्रयाग विष्णु प्रयाग को भी तहस-नहस करके रख दिया। लेकिन यहाॅ उस दिन एक चमत्कार भी देखने को मिला, पवित्र व शाॅत धौली गंगा जो रैणी व तपोवन से ही रौद्र रूप धारण कर सब कुछ तहस-नहस करते हुए आगे बढ रही थी, तब विष्णु प्रयाग पहंुचने पर सबसे पहले करीब पचास फीट की ऊॅचाई पर बने पैदल झूला पुल को अपने आगोस में समा लिया, विष्णु प्रयाग घाट व आस-पास बनी कुटियाओं के साथ ही योगा केन्द्र को भी जमींदोज करने के बाद जैसे ही माॅ धौली गंगा को जल प्रवाह बदरीथ मार्ग पर काफी ऊॅचाई पर बने पौराणिक भगवान विष्णु के मंदिर के अंन्दर प्रवेश हुआ, वैसे ही धौली का प्रवाह कम होता चला गया और देखते ही देखते धौली गंगा का रौद्र रूप शाॅत होता दिखने लगा। इस चमत्कार के बाद ऐसा लग रहा था कि मानो धौली गंगा भगवान विष्णु के चरणों को स्पर्श करने के लिए ही व्याकुल रही हो।
इस दृश्य को देख बदरीनाथ राष्ट्रीय राज मार्ग पर कार्य कर रहे सैकडांे मजदूर जो जल प्रलय के भयावहता को देखते हुए जान बचाने के लिए हाथी पहाड पर चढ गए थे, वे भी हतप्रद रह गए। यही नहीं विष्णु प्रयाग के बाद नीचे की ओर धौली व अलंकंनदा बेहद शांत स्वरूप में अन्य दिनों की भाॅति ही दिखी। जबकि रैणी, तपोवन व विष्णु प्रयाग की तबाही के बाद हेलंग से लेकर ऋषिकेश तक हाई एलर्ट किया जा चुका था।
धौली गंगा के रौद्र रूप ने जब काफी ऊॅचाई पर बने पैदल झूला पुल को तिनके की तरह उडा दिया तो प्रत्यक्षदर्शियो को भी ऐसा लग रहा था कि अब भगवान विष्णु व बाबा भैरवनाथ का मंदिर भी नहीं बच सकेंगे। लेकिन अचानक आश्चर्यजनक रूप से जल प्रवाह भगवान विष्णु मंन्दिर के अंन्दर तक प्रवेश हुआ। और उसके बाद सब कुछ शाॅत होता चला गया। सत फरवरी को देवभूमि मंे आए प्रलयंकारी जलजले के बीच इस चमत्कार की भी सर्वत्र चर्चा होना लाजमी ही है।












