डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
विश्व पृथ्वी दिवस दुनिया भर में हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है। इस साल पृथ्वी दिवस की थीम है। यह दिवस सन् 1970 से मनाया जा रहा है, जिसमें दुनिया के 192 देशों के 1 अरब से अधिक लोग हर साल भाग लेते हैं। 2021 में इसके 51 साल पूरे हो चुके हैं। इस प्रकार इतनी बड़ी संख्या के साथ यह पूरी दुनिया का सबसे बड़ा नागरिक आन्दोलन है। इस साल ऑर्गेनाइजर द्वारा 20 से 22 अप्रैल तक 3 दिन का क्लाइमेट एक्शन कार्यक्रम रखा है। हालांकि, कई बार अर्थ वीक भी मनाया जाता है और इस दौरान पूरे हफ्ते के लिए कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की जाती है। कोरोना काल में अर्थडे की थीम पृथ्वी को फिर से अच्छी अवस्था में बहाल करना है। इसके लिए इस बार उन प्राकृतिक प्रक्रियाओं और उभरती हुई हरित तकनीकों पर ध्यान दिया जाएगा, जो दुनिया के पारिस्थिकी तंत्र को फिर से कायम करने में मददगार साबित होंगे। इस तरह से इस बार की थीम में इस अवधारणा को खारिज किया जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किए जा रहे प्रयासों में केवल प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाली गधिविधियों को कम करना ही काफी होगा। साल दर साल जैसे.जैसे जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम सामने आते जा रहे हैं। इसके महत्व पर ज्यादा जोर दिया जाने लगा है।
यह दिन एक मौका होता है कि करोड़ों लोग मिल कर पृथ्वी से संबंधित पर्यावरण की चुनौतियों जैसे कि ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण और जैवविविधता संरक्षण के लिए प्रयास करने में और जागरुक हों और इसमें तेजी लाए जलवायु परिवर्तन को लेकर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के प्रमुख का कहना है कि जलवायु परिवर्तन अचानक हरियाली और प्रदूषण घटाने का साधन बन गया है। लेकिन, कई देशों की कथनी और करनी में अंतर है। बता दें कि विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार मौसम बदलते तेवरों से दुनिया की जीडीपी में 20 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। मनुष्य स्वस्थ और जीवित रहना चाहता है तो उसके लिए पर्यावरण के मसलों पर ध्यान देना आवश्यक है और इसकी अहमियत को समझना और स्वीकार करना भी जरूरी है। उदाहरण के तौर पर, धरती पर रहने वाले हम लोगों की रक्षा ओजोन परत करती है। यह हमें सूरज की हानिकारक किरणों से बचाती है लेकिन इस लेयर में छेद हो गया है। इसका पर बढ़ता प्रदूषण, उद्योगों से निकलने वाले जहरीले पदार्थ आदि हैं।
यहां तक कि ग्लेशियर भी समय के साथ.साथ पिघलने लगे हैं और ऐसे में अब इंसानों का सतर्क होना बहुत ही आवश्यक है और पर्यावरण को सुरक्षित करने की दिशा में अहम कदम उठाए जाना भी जरूरी है। प्रकृति में इतनी ताकत होती है कि वह हर मनुष्य की जरुरत को पूरा कर सकती है लेकिन पृथ्वी कभी भी मनुष्य के लालच को पूरा नहीं कर सकती है। देश में वनों का इसी तरह से अंधाधुंध विनाश होता रहा अर्थात लकड़ी के जंगलों की जगह कंक्रीट के जंगल बनते रहे, उद्योग लगते रहे और विश्व के नेता और उद्योगपति अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों को मौजमस्ती का अड्डा समझते रहे तो बहुत जल्दी ही यह प्रथ्वी फिर से आग का गोला बन जाएगी। वैश्विक स्तर पर फैसले लिए जाते हैं। उन सभी पर कार्य भी जरूर होता है लेकिन परिणाम उम्मीद से कम नज़र आते हैं।
फिर आया एक ऐसा मोड़ कि साल 2020 में धरती का दूसरा जन्म हुआ। धरती ने चैन की सांस ली, इंसानों को धरती के असली स्वरूप को पहली बार देखने का मौका मिला। 2017 से 2020 तक में गया में 54 फीसदी वायु प्रदूषण का स्तर कम हुआ है। वहीं हिमालय से सटे बर्फीले पहाड़ों की चोटियां पंजाब से सालों बाद एक बार फिर दिखने लगी। 1995 के बाद लॉकडाउन में यह मंजर देखने को मिला। लॉकडाउन इंसानों के लिए शाप बनकर आया हो लेकिन धरती के लिए कुछ लेकर आया है। गंगा, यमुना जैसी तमाम पवित्र नदियां फैक्ट्रियों के गंदे पानी से नहीं बच सकी थी वह लॉकडाउन में बहुत हद तक साफ हो गई। नदियों के प्रदूषण का स्तर 40 से 50 फीसदी तक गिरा। नदियों को साफ करने के लिए सरकारें बड़ी.बड़ी योजना बना रही थी। वह सब कुछ दिन के लॉकडाउन में ही हो गया। लॉकडाउन मानवजाति के लिए जरूर बुरा हो सकता है लेकिन इससे पर्यावरण को बहुत हद तक फायदा हुआ है। धरती में होने वाले कंपन में गिरावट दर्ज की गई। जहां एक और मानवजाति के शोर के बीच धरती कंपकंपाती रहती थी। लेकिन लॉकडाउन के बाद 30 से 50 फीसदी तक यह कंपन कम हो गई। हर दिन गाड़ियों का शोर, ट्रेनों, फैक्ट्रियां, आवाजाही लगातार होने से धरती में भी कंपन होने लगता था।
बेल्जियम में रॉयल ऑब्जर्वेटरी के मुताबिक धरती में कंपन बस, ट्रेन, आवाजाही की गतिविधियां, मानव जाति के शोर से पैदा होता है। लॉकडाउन में ब्रुसेल्स में ही मार्च में धरती का कंपन 30 से 50 फीसदी तक कम पाया गया है। बढ़ती जरूरतों के साथ धरती पर से पानी का स्तर लगातार कम होता जा रहा था। इसे लेकर पूरा विश्व चिंतित था। लेकिन सिर्फ लॉकडाउन के दौरान पानी का स्तर फिर से बढ़ने लगा था। वैज्ञानिकों ने इसे एक बहुत अच्छा परिवर्तन माना है। लॉकडाउन होने से प्रकृति से मानव का दखल कम हुआ और वायरल होती तस्वीरों ने इंसानों को प्रकृति से रूबरू कराया।
साल 2021 में पृथ्वी दिवस की थीम रिस्टोर द अर्थ है। बेहतर होगा 2020 के बाद धरती के प्राकृतिक सौंदर्य में जो परिवर्तन आया है उसे बरकरार रख सकेंगे। तकनीकी वर्ल्ड में प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करते हुए उसका रास्ता रोकने का प्रयास नहीं करें। इसकी रक्षा के लिए पहल करना। न तो इसे लेकर कभी सामाजिक जागरूकता दिखाई गई और न राजनीतिक स्तर पर कभी कोई ठोस पहल की गई। लेकिन इसके लिए किसी एक दिन को ही माध्यम बनाया जाए, क्या यह उचित है, हमें हर दिन को पृथ्वी दिवस मानकर उसके बचाव के लिए कुछ न कुछ उपाय करते रहना चाहिए। तो आइए, इस पृथ्वी दिवस यानि अर्थ डे के दिन खुद से एक वादा करते हैं कि इस पृथ्वी की खूबसूरती को न सिर्फ बनाकर रखेंगे बल्कि इसे और ज्यादा प्राकृतिक बनाने की ओर पहल करेंगे। आज लगभग पूरी दुनिया में प्रति वर्ष पृथ्वी दिवस के मौके पर पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर संक्लप लिए जाते हैं। जिस तरह से कोरोना महामारी के चलते लोग परेशान नजर आ रहे हैं, ऐसे में पृथ्वी को बचाकर रखना बहुत ही जरूरी हो गया है। पृथ्वी को सुरक्षित रखने, बीमारियों से बचाकर रखने और सुंदर बनाने के लिए पेड़.पौधे लगाना बहुत ही जरूरी है। पेड़.पौधे सेहत के लिए भी बहुत लाभादायक होते हैं। पृथ्वी की गुणवत्ता, उर्वरकता और महत्ता को बनाए रखने के लिए हमें पर्यावरण और पृथ्वी को सुरक्षित रखने की जरूरत है। पृथ्वी बचाने के लिए स्थानीय लोगों को नीतियों में शामिल करना जरूरी है।अतः एक सुनियोजित एवं सामंजस्य पूर्ण विकास एवं सोच की नितांत आवश्यकता है।