कमल बिष्ट/गढ़वाल। जलवायु परिवर्तन वैश्विक तापमान में वृद्धि आपदाओं में वृद्धि, जैव विविधता संकट, पर्यावरणीय प्रदूषण, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी वर्तमान विश्व समुदाय के लिए महा चुनौती बन रहा है। भारत जैसे देश के लिए यह समस्या और भी बड़ी गंभीर हो गई है। भारत विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाले देशों में प्रथम स्थान पर आ खड़ा हो गया है। पर्यावरण के क्षेत्र में गत कई वर्षों से विद्यार्थियों को प्राणी जगत की भलाई के लिए वृक्षारोपण कर प्रयासरत हैं कि किस प्रकार हमारा पर्यावरण स्वच्छ व सुंदर बने। प्रोफेसर डाॅ. किशोर चौहान के अनुसार भारत का कुल क्षेत्रफल लगभग 328 7263 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें 1394 420 224 जनसंख्या निवास करती है। भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। भारत में कुल वन क्षेत्र 24.62% है। जबकि निश्चित मानक के अनुसार किसी भी देश में न्यूनतम 33% भूभाग पर वन क्षेत्र होना चाहिए। भारत में व्यापक एवं गंभीरता से प्राचीन काल से ही पर्यावरण संरक्षण एवं प्रकृति संरक्षण की परंपरा रही है। वेदों एवं उपनिषद में वर्णित अनेक मंत्र ऐसे हैं, जो पर्यावरण संरक्षण की ओर भारत की प्राचीन गंभीरता को प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण के तौर पर : पृथ्वी शांतिराप: शांतिरोषधय:।
सर्व शांति शांतिर्रधि ।।
ओम शांति:शांति: शांति: यह मंत्र यजुर्वेद से लिया गया है। इसी प्रकार से दूसरा मंत्र : सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया।
इसी प्रकार से तीसरा मंत्र अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम।
उधार चरिताना वसुधैव कुटुंबकम यह मंत्र महा उपनिषद से लिया गया है। जहां पारिस्थितिकी शब्द सर्वप्रथम व्याख्या 1869 जर्मन जीव विज्ञानी ई हैकल ने की, वहीं भारत मे वसुदेव कुटुंबकम वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा हजारों वर्षों से विद्यमान है। रामायण एवं महाभारत काल से ही पर्यावरण संरक्षण की परंपरा चलकर मौर्यवंशी सम्राट अशोक 273 ईसा पूर्व जीव हत्या निरोध जनसाधारण के लिए चिकित्सा व्यवस्था कुआं खुदवाने, वृक्ष लगवाने, लोगों से हिंसा त्यागने और अहिंसा को अपनाने की बात कालसी उत्तराखंड में स्थित शिलालेख में कही गई है। भारत विविध संस्कृतियों वाला देश है। जहां आदिवासी एवं जनजातीय क्षेत्रों में निवास करने वाले लोग अपनी विभिन्न परंपराओं से करते आ रहे हैं और भारतीय प्रकृति के उपासक हैं। प्रकृति के संरक्षण के लिए तत्पर रहते हैं। विश्व शांति दूत महात्मा गांधी ने भी सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलकर प्रकृति के संसाधनों का उचित उपयोग स्वच्छता एवं वृक्षारोपण पर बल दिया है। यही कारण है कि 21वीं शताब्दी में भारत में जितने लोग पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करते हैं वह स्वयं को गांधीवादी मार्ग पर चलता हुआ पाते हैं। भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत पर्यावरण अभियान की प्रेरणा महात्मा गांधी के विचारों से ही ली है। इसलिए स्वच्छ भारत के लोगों में महात्मा गांधी जी के चश्मे को रखा गया है। महात्मा गांधी का मानना था कि भारत के प्रत्येक विद्यार्थी को विद्यार्थी जीवन से ही समाज सेवा, राष्ट्र सेवा एवं पर्यावरण संरक्षण जैसे कार्यों को करने की आवश्यकता है। जिससे वह एक जिम्मेदार नागरिक तैयार हो सके। पर्यावरण दिवस 5 जून के दिन यह लेख प्रकाशित हो रहा है। जिसके माध्यम से भारत की समस्त विद्यार्थियों को यह संदेश है, कि प्रत्येक विद्यार्थी को अपने विद्यार्थी जीवन में 10 पौधारोपण करके 5 वर्षों तक संरक्षण भी करना चाहिए। यद्यपि भारत में विश्वविद्यालयों एवं विद्यालयों में पर्यावरण संरक्षण विषय अध्ययन के साथ ही वृक्षारोपण एवं संरक्षण के कार्य प्रारंभ हो रहे हैं। भविष्य में पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण के लिए जो मील का पत्थर साबित होगा। विद्यार्थियों की भूमिका वृक्षारोपण एवं संरक्षण में अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।
विद्यार्थी जीवन से ही विद्यार्थी के विचारों में पर्यावरण संरक्षण के व्यावहारिक भाव पैदा होने लगेंगे, जिसमें मानव कल्याण निहित है। दुनिया को सत्य अहिंसा योग वासुदेव कुटुंबकम एवं विद्यार्थियों को वृक्षारोपण संरक्षण कार्य से जोड़ने की मुहिम व्यावहारिक मानव जीवन में उतारने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनेगी। जिससे पर्यावरण दिवस न केवल 5 जून वरन पूरे वर्ष पर मनाया जा सके। जिससे संकटग्रस्त जैव विविधता का शिक्षण होने के साथ ही मानव कल्याण भी हो सके और विश्व में शांति और सुख समृद्धि कायम हो सके।












