प्रकाश कपरूवाण
ज्योतिर्मठ-हिमालय। इन दिनों देश के तीन पीठों के शंकराचार्य”ज्योतिर्मठ” बद्रिकाश्रम की धरती पर विराजमान है, तीनों शंकराचार्य भगवान बद्रीविशाल के दर्शनों के उपरांत ज्योतिर्मठ पहुंचे,यहाँ उनका भब्य स्वागत भी हुआ, बड़ी संख्या मे सनातन धर्मावलम्बी भक्तों ने उनकी आगवानी की।
यह सब तो ठीक है, धर्माचार्यों का धर्मनगरी में स्वागत होना भी चाहिए और देवभूमि उत्तराखंड की अथिति देवो भवःकी परंपरा भी है। पहली बार तीन शंकराचार्यो की उपस्थिति ने पूरे वातावरण को भक्तिमय भी बना दिया था ।
अब बात है जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने की,जोशीमठ का अस्तित्व यूँ तो भू धंसाव के कारण खतरे मे है ही, लेकिन हेलंग-मारवाड़ी बाईपास निर्माण के बाद तो आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य भगवान की तपोभूमि ही अलग थलग पड़ जाएगी।
यहाँ यह उल्लेख करना भी बेहद जरूरी है कि शास्त्रानुसार भगवान बद्रीनारायण के दर्शनों से पूर्व ज्योतिर्मठ मे भगवान नरसिंह के दर्शनों की मान्य धार्मिक परंपरा है,और यदि भारतवर्ष के तीनों पीठों के शंकराचार्य इस शास्त्रीय विधान का अनुसरण करते हुए भगवान बद्रीविशाल के दर्शनों से पूर्व भगवान नरसिंह के दर्शन करते तो न केवल स्कन्द पुराण मे वर्णित शास्त्रीय परंपरा का पालन होता बल्कि जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने के लिए हेलंग-मारवाड़ी बाईपास का विरोध कर रहे सम्पूर्ण जोशीमठ नगरवासियों को भी मजबूती मिलती।
हांलाकि ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती महाराज एवं ज्योतिषपीठ के नव अविषिक्त शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज पहले ही हेलंग-मारवाड़ी बाईपास का विरोध कर चुके हैं, और पूर्व में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज तो बाईपास के विरोध मे चल रहे आंदोलन व धरना कार्यक्रम मे भी प्रतिभाग कर चुके हैं।
लेकिन यदि देश के तीनों शंकराचार्य शास्त्रीय परंपरा के अनुसार भगवान नरसिंह के दर्शनों के उपरांत भगवान बद्रीविशाल के दर्शन करते तो केन्द्र सरकार तक भी एक उचित संदेश पहुंचता और केंद्र सरकार हेलंग-मारवाड़ी बाईपास निर्माण के फैसले पर पुनर्विचार करने को भी विवश होती।
श्री बद्रीनाथ धाम के धर्माधिकारी आचार्य भुवन चन्द्र उनियाल के अनुसार “स्कन्द पुराण”मे अणिमठ-हेलंग के बाद ज्योतिर्मठ-जोशीमठ मे भगवान नरसिंह के दर्शनों के उपरांत ही भगवान बद्रीनारायण के दर्शनों का स्पष्ट उल्लेख है। धर्माधिकारी आचार्य उनियाल द्वारा पूर्व मे स्कन्द पुराण की प्रति उचित माध्यम से केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय तक भी पहुंचाया गया।
लेकिन जब धर्माचार्यों द्वारा जाने-अनजाने शास्त्रीय परंपरा की अनदेखी होगी तो शास्त्रानुसार हेलंग-मारवाड़ी बाईपास को आखिर कैसे रोका जा सकता है? जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने के लिए यह प्रश्नचिन्ह बन गया है।
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