डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड की पारम्परिक संस्कृति को बचाने और शादियों में महंगे प्रचलन रोकने के लिए चकराता इलाके के दो दर्जन गांवों ने अब बड़ा फैसला लिया है. अब यहां शादी पारम्परिक तरीके और रिवाजों से होंगी,ताकि परिवारों पर दिखावें में बढ़ रहे आर्थिक बोझ को कम किया जा सके. इसके साथ ही अब शादियों में चाइनीज फूड्स और स्नैक्स पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिए हैं.जौनसार बावर इलाके के गांवों के प्रतिनिधियों ने एकराय होकर यह फैसला लिया है, उनके मुताबिक नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से परिचय भी कराना है. यही नहीं जो भी इन नियमों का उल्लंघन करेगा उस अपर एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगेगा. टाइम्स ऑफ़ इण्डिया की रिपोर्ट के मुताबिक शादियों में अमीरी के बढ़ते प्रचालन और दिखाव से आम लोगों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ रहा है. दोहा गांव के मुखिया के अनुसार ये रीति-रिवाज एक कॉम्पिटिशन बन रहे थे और बेवजह का दबाव बना रहे थे. इस नई पॉलिसी को लागू करने वालों में दाऊ, दोहा, चुटौ, बजाऊ, घिंगो और कैतरी जैसे गांव शामिल हैं. इस फैसले के बाद अब चाउमीन, मोमोज और दूसरे फास्टफूड स्नैक्स जैसी खाने की चीजों को शादी के मेन्यू से प्रतिबंधित कर दिया गया है. पारंपरिक भोजन जैसे मंडुआ और झिंगोरा बाजरा जैसी स्थानीय चीज़ों से बने गढ़वाली खाने को बढ़ावा दिया जा रहा है. यही नहीं शादियों में महंगे तोहफे और लेन-दें पर भी रोक लगा दी है. इस शुरुआत पर करमू पाल ने कहा कि इससे उत्तराखंड के लोकल खाने और कल्चर को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही नई पीढ़ी भी छूटते संस्कारों से परिचित होगी. इसके साथ ही उत्तरकाशी के नौगांव में भी इस पहल पर लोग राजी हैं. कोटी ठकराल और कोटी बनाल में शादियों में अब डीजे और शराब पर पूरी तरह बैन लग गया है. डीजे की जगह शादियों या अन्य समरोह में पारंपरिक लोकगीत इस्तेमाल होंगे अब भारत में शादी-ब्याह का सीजन आ गया है। ऐसे में सबसे बड़ी चिंता शादी में दिए जाने वाले तोहफों की होती है। आजकल तोहफों का चलन तेजी से बदल रहा है। पहले जहां शादी में बड़े-बड़े इलेक्ट्रॉनिक सामान और कई तरह के बेनाम गिफ्ट दिए जाते थे। अब यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो रही है। गांव के लोग इस फैसले से प्रसन्न हैं. उनका कहना है कि इससे अमीर और गरीब के बीच का फर्क कम होगा और पारंपरिक संस्कृति को आगे बढ़ाने का मौका मिलेगा. यह निर्णय आधुनिकता के नाम पर हो रहे फिजूलखर्च के खिलाफ एक मजबूत जवाब माना जा रहा है. समुदाय का विश्वास है कि आने वाली पीढ़ियां तभी संस्कृति को आगे बढ़ाएंगी, जब आज उससे जुड़ाव बनाए रखा जाए. जौनसार-बावर क्षेत्र के इन गांवों ने दुनिया को यह संदेश दिया है कि आधुनिकता के साथ परंपरा का संतुलन जरूरी है. शादियां खुशियों का पर्व हैं, दिखावे की प्रतियोगिता नहीं. यह फैसला इस बात का प्रमाण है कि सामूहिक इच्छा और समझदारी समाज में बड़ा बदलाव ला सकती है.इन पहाड़ी गांवों की यह पहल सादगी, समानता और संस्कृति के प्रति प्रेम की ऐसी मिसाल बन चुकी है, जिससे शायद अन्य क्षेत्र भी प्रेरणा ले सकें.। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं*











