डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला:
भारत में हिमालयी राज्यों के शिवालिक पर्वतों में खूब उगने के अलावा यह राजस्थान, गुजरात, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में भी पाया जाता है। यह समुद्र तल से लगभग 1800 मीटर तक की ऊॅचाई वाले स्थानों पर पाया जाता है। यह सामान्यतः करौंदा नाम से जाना जाता है इसके अलावा इसे डैंग (थाईलैण्ड), करांडा (फिलीपीन्स), कार्जा टेंगा (असम), कोरोम्चा (बंगाल), बंगाल करंट (अंग्रेजी) आदि नामों से भी जाना जाता है।
फल जुलाई से सितम्बर के बीच में उपलब्ध होता है तथा सामान्यतः अचार, जैम, जैली तथा चटनी आदि में उपयोग में लाया जाता है। आयरन तथा विटामिन सी का अच्छा प्राकृतिक स्रोत माने जाने के साथ-साथ विभिन्न शोध पत्रों में इससे अनेकों विशिष्ट औषधीय रासायनिक अवयव निकाले जाने की बात कही गयी है। इसमें टर्पिनोइड्स जो कि मुख्यतः सिस्क्यूटर्पीप्स होते है जैसे कि केरीसोन तथा करिन्डोन नये प्रकार के 31 टर्पिनोइड है। इसके अलावा इसमें केरीसोल, लीनालूल, बीटा-केरियोफाइलीन, केरिसिक एसिड, यूर्सोलिक एसिड, केरीनोल, एसकोर्बिक एसिड, लूपिओल तथा बीटा सिटोस्टेरोल आदि पाये जाते है।
इसमें अच्छे औषधीय रसायनों के मौजूद होने कारण इसका प्रयोग विभिन्न आयुर्वैदिक औषधियों में भी लिया जाता है जैसे कि मार्मा गुटिका, हरिदया महाकाशाया, काल्कांतका रसा, कशुद्राकर्वान्दा योगा तथा मर्चादि तरी आदि। इसका परम्परागत औषधीय उपयोग प्राचीन काल से ही लिया जाता है। छत्तीसगढ राज्य में वैद्यों द्वारा करौंदा से विभिन्न प्रकार के कैंसर का उपचार किया जाता है। विभिन्न औषधीय रूप में उपयोग होने के साथ-साथ राजस्थान में इसका हरी मिर्च के साथ मिलाकर बनाया जाता है और खाने में खूब पंसद किया जाता है। यह एक अच्छा एपिटाइसस भी है जो कि भूख बढाने हेतु प्रयोग किया जाता है।
करौंदा ठंडा तथा एसिडिक होने के कारण गले में खराश, मुंह के अल्सर तथा त्वचा रोग में भी प्रयुक्त किया जाता है। इसमें पाये जाने वाले विभिन्न औषधीय रसायनों की वजह से यह एंटीकैंसर, एंटी कन्वल्सेन्ट, एंटी ऑक्सीडेंट, एनाल्जेसिक, एंटी इन्फलामेट्री, एंटी अल्सर, एन्थेल्मिंटिक, कार्डियोवेस्कुलर, एंटी डायबेटिक, एंटी पायरेटिक, हिपेटोप्रेटिक्टिव तथा डाइयूरेटिक में प्रभावी होता है। वर्ष 2009 में ट्रोपिकल जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल रिसर्च में प्रकाशित एक शोध के अनुसार करौंदे की जड़ का एथेनोलिक एक्सट्रेक्ट को अच्छा एंटी कन्वल्सेंट बताया गया है।
इसके अलावा विभिन्न शोध पत्रों में इसे अच्छा एंटी माइक्रोबियल तथा एंटी बैक्टीरियल बताया गया है। विभिन्न औषधीय गुणों से भरपूर जंगली फल होने के कारण पौषक भी है, इसमें कैलोरी- 364 किलो, प्रोटीन- 02 मिग्रा, वसा- 10ग्राम, कार्बोहाइड्रेटस-67ग्राम, कैल्शियम- 160 मिग्रा, फॉस्फोरस- 60 मिग्रा तथा आयरन- 39 मिग्रा प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते है। इस विटामिन में विटामिन ए 1619 आईयू तथा एसकोर्बिक एसिड- 10 मिग्रा प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते है। करौंदा का अपना अलग स्वाद तथा औषधीय गुणों के कारण बाजार में अच्छी मांग है जो कि विभिन्न कम्पनियों द्वारा अलग-अलग उत्पादों के रूप में लोगों तक पहुंचाया जाता है।
इससे निर्मित अचार की बाजारों में अच्छी कीमत है जो कि लगभग 250 रुपये प्रतिकिलो तक है। इसके अलावा इसे विभिन्न उद्योगों में कच्चे माल के रूप में लिया जाता है। करौंदा कई गुणों से युक्त है, इसे एंटीबॉयटिक का अच्छा स्रोत मानते हैं, साथ ही इसमें आयोडीन की भरपूर मात्रा भी होती है. इसका जूस भी पीना फायदेमंद है. अगर जूस पीने में कड़वा लगे तो इसमें शुगर भी मिला सकते हैं. चटनी, अचार और मुरब्बे के रूप में प्रयोग होने वाला करौंदा स्वाद के साथ ही सेहत के लिए भी होता है अच्छा. विटामिन सी से भरपूर इस फल का सेवन कई रोगों से छुटकारा दिलाता है.करौंदा की हमेशा हरी-भरी रहने वाली झाड़ी होती है.
करौंदे का कच्चा फल कड़वा, खट्टा और स्वादिष्ट होता है. यह एक छोटा-सा फल है, पर इसमें काफ़ी औषधीय गुण पाए जाते हैं. इसके फल, पत्तियों एवं जड़ की छाल औषधीय प्रयोग में लाई जाती है. करौदें के फल पकने के बाद काले पड़ जाते हैं. इस कारण इसको कृष्णपाक फल भी कहते हैं. उपचार के आधार से इसमें साइट्रिक एसिड और विटामिन सी समुचित मात्रा में पाया जाता है. बढ़ती उम्र से संबंधित समस्याएं जैसे एकाग्रता की कमी होना आदि को दूर करने में मदद करता है. करौंदा में फाइटोन्यूट्रिएंट्स और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं.इससे याद्दाश्त अच्छी होती है. क्योंकि करौंदे के अंदर एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं यह न केवल मेमोरी को तेज करते हैं बल्कि समझ को बढ़ाते हैं.
इसमें कई सामान्य बीमारियों को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता होती है. करौंदा का जूस दिल की बीमारियों में भी बहुत फायदा देता है. करौंदे के जड़ की छाल प्रकृति से कड़वी और गर्म होती है. यह कफ और वात को कम करने वाली, खांसी कम करने में सहायक, ज्यादा मूत्र होने की समस्या तथा सामान्य दूर्बलता को दूर करने में मदद करती है.इसके नियमित सेवन से कोलेस्ट्रॉल का स्तर संतुलित रहता है और हार्ट अटैक की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है सिंचित क्षेत्र में इसे मार्च अप्रैल में भी लगाया जा सकता है। करौंदा का पौधा लगाने के तीन साल बाद फलने लगता है और लंबी अवधि तक यह आय का जरिया बना रह सकता है।
भारत के अलावा दक्षिण अफ्रीका और मलेशिया में भी इसकी बागवानी की जाती है।करौंदे की पत्तियां रेशम के कीड़े का आहार हैं। इसकी लकड़ी से कंघी और चम्मच बनाए जाते हैं। इसकी पत्तियों के रस का बुखार में उपयोग किया जाता है। इसके जड़ के रस का उपयोग पेट के कीड़ों के उपचार में भी होता है। करौंदा शुष्क क्षेत्र और ऊसर जमीन के लिए भी उपयोगी बागवानी फसल है।
कांटेदार और झाड़ीनुमा होने के कारण लघु एवं सीमांत किसान खेतों के किनारे इसकी झाड़ी लगाकर आवारा जानवरों से न केवल अपनी फसलों की सुरक्षा कर सकते हैं, बल्कि इसके फल से अतिरिक्तआय भी प्राप्त कर सकते हैं उत्तराखंड के इस बहुमूल्य जंगली उत्पाद का विस्तृत वैज्ञानिक विश्लेषण कर इसको आगे अत्याधुनिक चिकित्सा विज्ञान से जोड़ने की आवश्यकता है ताकि प्रदेश की यह बहुमूल्य संपदा केवल जैम, जैली एवं अचार तक ही सीमित ना रहे, बल्कि प्रदेश की आर्थिकी का एक बेहतर विकल्प भी बन सके।












