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माटी की सुगंध महकाते हैं गोपाल बाबू गोस्वामी के गीत

02/02/21
in अल्मोड़ा, उत्तराखंड, संस्कृति
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
गोपाल बाबू का जन्म दिन आज सुर सम्राट स्वण् गोपाल बाबू गोस्वामी उत्तराखंड के ऐसे लोक कलाकारों में शुमार हैं, जिन्होंने पहाड़ की लोक संस्कृति, लोक विधाओं व परंपराओं को अपने मधुर गीतों में पिरोकर उन्हें आगे बढ़ाया है। बेशक वे आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके सुरीले गीत प्रशंसकों में पहाड़ की माटी की सुगंध महका देते हैं। गोपाल बाबू गोस्वामी का जन्म अल्मोड़ा जनपद के रंगीली बैराठ नगरी के चांदीखेत गांव में दो फरवरी 1942 को हुआ था। बचपन गांव में बीता, जहां से प्रारंभिक शिक्षा भी हासिल की। गरीबी के चलते वह अपनी शिक्षा को जारी नहीं रख सके। सुरीली आवाज के धनी गोपाल बाबू ने जल्द ही गायकी के क्षेत्र में मुकाम हासिल कर लिया। बाद में गोपाल बाबू भारत सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्रालय के गीत एवं नाट्य विभाग में भर्ती हो गए।

अपनी आवाज का जादू बिखेरकर उन्होंने जल्द ही विभाग में खास पहचान बना ली। सभी उनके मधुर गीतों दीवाने हो गए। उनके अनेक कैसेटों ने धूम मचा दी। उनके प्रथम स्वरचित गीत.कैले बजै मुरूली ओ बैंणा के साथ ही आमै की डाई में घुघुति नि बांसा, हिमाला को ऊंचा डाना प्यारो मेरो गांव आदि सुनने वालों के दिलों में आज भी राज कर रहे हैं। इसके अलावा बरात विदाई के दौरान गाए जाने वाले उनके गीत.ओ मंगना आज आयो री तेरो सजना, जा चेली जा सौरासण्व बाट लागि बरात चेली बैठ डोलिमा जैसे विरह गीत लोगों के आंखों में आंसू छलका देते हैं। गोपाल बाबू ने कुमाऊंनी गीत माला, दर्पण व राष्ट्र ज्योति जैसे पुस्तकें भी लिखी हैं। लोकगायक गोपाल बाबू गोस्वामी भले ही आज हमारे बीच नही हैं लेकिन उनके गीत हमें आज भी उनकी उपस्थिति का अहसास कराते हैं। दुल्हन की विदाई पर लिखा उनका गीत न रो चेली न रो मेरी लालए जा चेली जा सरास तथा उठ मेरी लाड़ू लुकुड़ा पैरीलेए रेशमी घाघरी आंगड़ी लगै ले की आज भी लोगों की आंखों में आंसू ले आता है।गोपाल गिरी गोस्वामी का जन्म चौखुटिया बाजार से लगे ग्राम पंचायत चांदीखेत में दो फरवरी 1942 को मोहन गिरी गोस्वामी के घर हुआ था।

बचपन से ही गीतकार बनने के जुनून में उन्होंने पांचवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया। 12 साल की उम्र से ही वह गीत लिखने और गाने लगे थे। जीवन के 54 सालों में उन्होंने साढ़े पांच सौ गीत लिखे। उनका पहली गीत कैलै बजे मुरूली औ बैंणा ऊंची ऊंची डान्यूमा आकाशवाणी नजीबाबाद से प्रसारित हुआ था। 1972 में भारत सरकार के गीत और नाटक प्रभाग में नियुक्ति के बाद गोस्वामी को अपना हुनर दिखाने का अच्छा मंच मिल गया। यहीं से उनके गीतों की संख्या और लोकप्रियता बढ़ती चली गई। नरेंद्र नेगी भी गुनगुनाते हैं गोपाल बाबू के गीत उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी भी गोपाल बाबू के गीतों को काफी पसंद बड़े दीवाने हैं। उन्होंने एक साक्षातकार में बताया था कि वह गोपाल बाबू के गीत हिमालाको ऊंचा डाना प्यारो मेरो गांव, छविलो गढ़वाल मेरो रंगीलो कुमाऊं को अक्सर गुनगुनाते हैं। भले ही अब वह इस दुनिया में नहीं हैं, परंतु लोकसंस्कृति, प्रकृति, नारी सौंदर्य और रीति रिवाज ही नही बल्कि जीवन के हर क्षेत्र को छूने वाले उनके गीत हमें हमेशा उत्प्रेरित करते रहेंगे चांदीखेत चौखुटियां में उत्तराखंड के सुर सम्राट स्वण् गोपाल बाबू गोस्वामी का जन्म उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जायेगा। जिसमें उत्तराखंड के कई बड़े लोकगायक शिरकत करेंगे। ऐसे में गोस्वामी परिवार को भजन सम्राट अनूप जलोटा ने बधाई देते हुए एक वीडियो भेजा है। जिसमें उन्होंने उत्तराखंड के सुर सम्राट गोपाल बाबू गोस्वामी जी को याद करते हुए उन्हें परिवार को कार्यक्रम की शुभकामनाएं दी है।

गोस्वामी जी के सुपुत्र लोकगायक रमेश बाबू गोस्वामी ने बताया कि बॉलीवुड गायक व भजन सम्राट अनूप जलोटा ने उनके पिता स्वण् गोपाल बाबू गोस्वमी की 79वीं जयंती पर शुभकामना संदेश भेजा है। उन्होंने कहा कि गोपाल बाबू गोस्वामी को उत्तराखंड संगीत जगत के रत्न थे। उनकी शिष्या रही अन्जु पाण्डे ने भी गोस्वामी परिवार को अपना शुभकामना संदेश भेजा है। पूरे गोस्वामी परिवार में दोनों का आभार प्रकट किया।

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