डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
गोविंद वन्यजीव विहार राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य उत्तराखंड में एक राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे भारत ने शुरू में 1955 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में स्थापित किया था और बाद में इसे एक राष्ट्रीय उद्यान में बदल दिया गया। इसका नाम एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता गोविंद बल्लभ पंत के नाम पर रखा गया है, जो 1950 में गृह मंत्री बने और हिंदी को एक आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करने में उनकी उपलब्धि के लिए याद किया जाता है। गोविंद पशु विहार पार्क क्षेत्र के बेशकीमती जड़ी.बूटी के खजाने पर तस्करों की गिद्ध दृष्टि हमेशा रहती है। पार्क प्रशासन इन तस्करों पर काफी मेहरबान रहता है। इसके चलते पार्क क्षेत्र व वन विभाग के बैरियर से तस्कर आसानी से जड़ी बूटी की खेप निकाल ले जाते हैं।
वर्ष 2002 से गोविंद वन्य जीव विहार क्षेत्र से सैकड़ों कुंतल बहुमूल्य जड़ी.बूटियां अवैध तरीके से देहरादून, दिल्ली, चंडीगढ़, सहारनपुर की मंडियों में पंहुच रही है। हालांकि पुलिस ने कई कुंतल पुरोला, नौंगाव, डामटा व बर्निगाड आदि स्थानों पर पकड़ी। कहने को तो गोविंद वन्य जीव विहार का नैटवाड़ में बैरियर है, इसके अलावा मोरी व जरमोला में भी वन विभाग के बैरियर है। बावजूद इसके तस्कर सभी इंतजामों को धत्ता बता कर अपना काम निकाल रहे हैं। यह स्थिति पार्क प्रशासन की तस्करों के साथ मिलीभगत होने की ओर इशारा करती है। इन बैरियरों से निकासी, वाहन जांच के उपरांत ही वाहन आगे बढ़ाए जा सकते हैं। लेकिन तस्कर यहां से आसानी से आगे निकल जाते हैं। दनदसा नाम की कीमती जड़ी बूटी की निकासी लेकर आ रहे ट्रक को चेकिंग के दौरान सीज किया है। ट्रक में दनदसा नाम की कीमती जड़ी बूटी की 99 बोरों की निकासी का आदेश था। लेकिन विभाग की टीम को ट्रक में 184 बोरे मिले। मुंगरसन्ति रेंज की टीम ने 85 अवैध बोरों के मिलने पर कार्रवाई की है। जिसमें दनदसा नाम की जड़ी बूटी के 99 बोरों के निकासी के आदेश थे, लेकिन ट्रक से 85 अवैध बोरे भी पाए गए। अवैध जड़ी बूटी के बाद यह बड़ा सवाल उठता है कि ट्रक में अवैध निकासी पांच बैरियर और दो थानों से बचकर नौगांव तक कैसे पहुंची। इससे वन विभाग की कार्यप्रणाली पर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है।
अत्यधिक दोहन और संरक्षण न किए जाने के चलते ये जड़ी.बूटियां तेजी से विलुप्त हो रही हैं। लेकिन, इन जड़ी बूटियों के अत्यधिक दोहन के चलते ये न सिर्फ तेजी से कम हो रही हैं वरन कई प्रजातियों के विलुप्त होने का भी खतरा मंडरा रहा है। जड़ी बूटी तस्करी की अधिक मात्रा में पकड़े जाना कहीं न कहीं वन विभाग, पुलिस और तस्करों के बीच तार जुड़े होने की संभावना से इंकार नहीं करता। संरक्षण के कार्यों को प्राथमिकता देते हुए, इन्हें युद्ध स्तर पर करने की जरूरत है। इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आने वाली पीढ़ी को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में भी औषधीय पादपों की खेती होती है, अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी। उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग है।