डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
यहां के जड़ी.बूटी शोध संस्थान ने पथरीली जमीन एवं चट्टानों पर पनपने वाली जड़ी.बूटी को लेकर रॉक हर्बल गार्डन को तैयार किया गया है। जड़ी.बूटी शोध एवं विकास संस्थान ने ऐसी ही अनूठी पहल की है। संस्थान ने गोपेश्वर में इस भूमि पर पाषाणभेद, कपूर कचरी, पत्थरचट्टा, इंद्रायण, विरीहकंद, दारू हिरद्रा, हरड़ और बहेड़ा आदि को पनपाया जाएगा। पाषाणभेदा इसका वैज्ञानिक नाम बर्जीनिआ सीलिएटा है। इसमें कई औषधीय गुण पाये जाते हैं, जैसे टॉनिक जीवाणुनाशक, कैंसर प्रतिरोधक, मधुमेह प्रतिरोधी, सूजन को कम करने वाले आदि। लेकिन इसका प्रयोग मुख्यतः वृक्क रोगों जैसे किडनी स्टोन को नष्ट करने में किया जाता है। इसके रस को कान के दर्द में प्रयोग किया जाता है तथा इसके टॉनिक का प्रयोग बुखार में किया जाता है। इसका एक महत्त्वपूर्ण उपयोग त्वचा रोगों में कटने जलने, एलर्जी आदि में किया जाता है। इसमें कवकनाशी गुण भी पाये जाते हैं जिसके कारण यह त्वचा की कवक से सुरक्षा करता है।
पथरीली जमीन अब पहाड़ के लोगों के विकास में रोड़ा नहीं बनेंगी। दरअसल उत्तराखंड के देहरादून में पथरीली जमीन पर जड़ी.बूटी को उगाया जाएगा। यह किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के साथ ही लोगों को किफायती औषधियों को उपलब्ध कराने में काफी कारगार साबित होगी।
हिमालयी राज्य उत्तराखंड का कुल क्षेत्रफल 53 हजार वर्ग किमी है। सूबे में नौ जनपद पर्वतीय है। इन जिलों में अधिकांश पथरीली भूमि होती है या फिर चट्टानों से पटी होती है। इन सभी पर उन्नत किस्म की फसल नहीं उग पाती है। इसी वजह से स्थानीय किसान इस जमीन को ऐसे ही बंजर छोड़ देते है। इससे जमीन होने के बाद भी किसान पूरी तरह से खेती नहीं कर पाते हैं। इस कारण स्थानीय लोगों की आमदनी नहीं हो पाती है और वहां से पलायन के लिए मजबूर हो जाते है। राज्य के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में पथरीली जमीन चट्टानों की वजह से 1142.16 वर्ग किमी भूमि अनुपयोगी है। कुमाऊं में 611.44 और गढ़वाल मंडल में 530.72 वर्ग किमी भूमि में खेती को करना मुश्किल है।
जड़ी.बूटी शोध संस्थान ने यहां के पथरीली पहाड़ी पर पनपने वाली औषधीय गुण वाली वनस्पतियों की योजना को बनाया है। फिर इन वनस्पतियों से चमोली जिले के गोपेश्वर में एक रॉक हर्बल गार्डन को बनाया गया हैण् इस गार्डन में चट्टान पर औषधीय गुणों वाली वनस्पतियों को उगाया गया है। आज इन वनस्पतियों की मांग बाजार में बहुत ही ज्यादा मांग है। साथ ही पर्वतीय जिलों के स्थानीय लोगों और किसानों को भी जागरूक किया जाएगाण् इससे आने वाले दिनों में किसान आर्थिक रूप से सुदृढ़ होने लग जाएंगेण् उत्तराखण्ड में सदियों से निभाए जा रही रस्मों तथा रीति.रिवाजों का दायरा सिमटता जा रहा है रीति.रिवाज केवल नाम के लिये अपनाए जा रहे हैं।
इस घरेलू पौधे के पौधे का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्साि में उपयोग किया जाता है।पथरचटा में जीवाणुरोधीए एंटीवायरलए एंटीमिक्राबियल, एंटीफंगल, एंटीहिस्टािमाइन और एनाफिलेक्टिक गुण होते हैं जो कि लगभग सभी प्रकार की बीमारियों को कम करने में मदद करते हैं। इसमें प्रयुक्त किये जाने वाले पौधों के बारे में जानकारी न होने के कारण इनका प्रयोग कम हो रहा है। उपरोक्त वर्णित सभी जातियाँ संकटग्रस्त जातियाँ हैं। ये सभी पौधे कुछ क्षेत्रों में सिमट कर रह गए हैं। गाजर घास, काली बांसिगए लैन्टाना आदि विदेशी घासों के द्वारा इनके आवास पर अतिक्रमण किया जा रहा है। परम्परागत ज्ञान नई पीढ़ी तक नहीं पहुँच पा रहा है जिसे इन बहुमूल्य जातियों का संरक्षण नहीं हो पा रहा है। जैसे भी संभव हो जल, जंगल, जमीन को बचाना जरूरी है। जड़ी.बूटी शोध एवं विकास संस्थान ने ऐसी ही अनूठी पहल की है। संस्थान ने गोपेश्वर में एक गड्ढे में पानी भरकर एक्विटिक हर्बल गार्डन जलीय औषधीय उद्यान बनाया है। इस गार्डन में विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी जलीय जड़ी बूटी, औषधीय वनस्पतियों को रोपा गया है।
ये वनस्पतियां कई गंभीर बीमारियों में रामबाण औषधि भी हैं। इससे जड़ी.बूटी की खेती को और जलीय स्रोतए जल संरक्षण दोनों को बढ़ावा मिलेगा। इस मॉडल के जरिये संस्थान किसानों को जड़ी बूटी के खेती को प्रेरित करता हैण् शोध संस्थान के मुताबिक इस गार्डन की लागत महज 10.20 हजार रुपये है। संस्थान पांच नाली भूमि तक यह गार्डन बनाने पर मुफ्त में औषधीय वनस्पतियों के बीज मुहैया कराता है। जड़ी.बूटी शोध एवं विकास संस्थान के निदेशक डा0 चन्द्र शेखर सनवाल भारतीय वन सेवा के कर्मठ अधिकारी द्वारा 2018 में ऐसी ही अनूठी पहल की थी। जिसके परिणम धरातर पर दिखाऐ देने लये हैैए किसान की कमाई आसानी से कर सकता है।
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के अन्तर्गत वैज्ञानिक बी0 के पद पर कार्य का अनुभव किया है।