डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
हरिद्वार से गंगाजल लेकर लौटे साढ़े चार करोड़ कांवड़ यात्री करीब दस हजार मीट्रिक टन गंदगी छोड़ गए। इस गंदगी को साफ कर पहले जैसा बनाने में नगर निगम को कम से कम दो से तीन दिन का वक्त लगेगा। इसके लिए नगर निगम प्रशासन ने व्यापक स्तर पर अभियान भी शुरू कर दिया है।गंगा घाटों की सफाई को विशेष सफाई महाअभियान भी शुरू किया गया है। इसके लिए नगर निगम प्रशासन की ओर से चार नोडल अधिकारी नामित किए गए हैं। बुधवार शाम संध्याकालीन गंगा आरती से पहले सुभाष घाट, नाई सोता, बिरला घाट, कांगड़ा पुल आदि की कमोबेश सफाई भी करा ली गई है। गुरुवार सुबह तक सभी गंगा घाटों को चकाचक करने का दावा भी किया जा रहा है। करीब एक पखवाड़े तक हरिद्वार में चली दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक कांवड़ यात्रा बुधवार को बिना किसी बाधा के संपन्न हो गई लेकिन गंगा जल भरने आये शिवभक्तों द्वारा छोड़े गए हजारों टन कूड़े का निस्तारण कर शहर को फिर साफ-सुथरा बनाना प्रशासन के लिए एक नयी चुनौती बन गया है।एक अनुमान के अनुसार, हरिद्वार क्षेत्र में ही 10 हजार मीट्रिक टन कूड़ा जमा हो गया है और अगर सही तरीके से सफाई अभियान चलाया जाए तो इसके निस्तारण में दो हफ्ते से अधिक का समय लग जाएगा।शिवरात्रि पर सकुशल संपन्न हुआ. इस दौरान करीब करीब 4.5 करोड़ शिवभक्त गंगा जल लेने हरिद्वार पहुंचे. इस आंकड़े से सरकार के साथ ही हरिद्वार जिला प्रशासन भी काफी खुश है. लेकिन दूसरी तरफ जिला प्रशासन और नगर निगम के लिए चुनौती भी खड़ी हो गई है. कांवड़ मेला खत्म होने के बाद हरिद्वार में गंगा घाटों से लेकर हाईवे तक गंदगी का अंबार लग चुका है. करोड़ों की संख्या में पहुंचे कांवड़िए शहर में कई हजार मीट्रिक टन कूड़ा छोड़ गए हैं.हरिद्वार में कांवड़ मेला सकुशल संपन्न होने के बाद शिव भक्त कांवड़िए हरिद्वार में कूड़ा छोड़ गए हैं. आलम ये है कि अब गंगा घाटों से लेकर कांवड़ पटरी मार्ग पर कूड़े का ढेर लग गया है. प्रशासन का कहना है कि कांवड़ मेले में साढ़े चार करोड़ से ज्यादा शिव भक्त हरिद्वार पहुंचे. हरकी पैड़ी समेत अन्य घाट और हाईवे पर गंदगी ही गंदगी नजर आ रही है. जिसे हटाना नगर निगम के लिए चुनौती है. हरिद्वार नगर निगम आयुक्त नंदन कुमार ने बताया इस बार नगर निगम की ओर से कांवड़ मेला स्वच्छ वातावरण में समाप्त हो, उसी के मद्देनजर नगर निगम के कर्मचारियों के साथ ही एक हजार से अधिक अन्य कर्मचारियों को लगाया गया था, जो कांवड़ मेले के दौरान भी और मेला समाप्त होने के बाद भी दिन रात कूड़ा उठाने का काम कर रहे हैं. अब मेला खत्म होते हुए सभी घाटों की सफाई की जा रही है. कांवड़ मेले में आए करीब साढ़े चार करोड़ कांवड़िए हरिद्वार गंगा जल लेने आए थे, जो हरिद्वार शहर में करीब 7 हजार मीट्रिक टन कूड़ा छोड़ गए हैं. नगर निगम द्वारा ड्रोन से कूड़े को मॉनिटर किया जा रहा था, जिससे निगम को काफी मदद मिली. क्योंकि कई बार देखा जाता है कि धरातल पर इतना कूड़ा नहीं दिखता, बल्कि टॉप व्यू से कहां-कहां कूड़ा है, यह अधिक दिख जाता है. इसलिए हमने ड्रोन का सहारा लिया जो कि हमारे लिए काफी लाभदायक साबित हुआ. शिव भक्त कांवड़िए कपड़े और जूते तक छोड़ गए हैं. जिसको लेकर नगर द्वारा एक विशेष अभियान चलाया जाएगा. जिसमें हरिद्वार आने वाले श्रद्धालुओं को जागरूक भी किया जाएगा. साथ ही जो लोग इन पॉलिथीन को बेच रहे हैं, उनके बड़े ठेकेदारों पर भी कार्रवाई की जाएगी. कांवड़ मेला 2025 उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण था. क्योंकि बीते सालों के मुकाबले इस बार डाक कांवड़ियों की संख्या काफी ज्यादा थी. हर की पैड़ी का प्रबंध देखने वाली संस्था श्री गंगा सभा के अध्यक्ष ने बताया कि हर की पैड़ी में सबसे बड़ी समस्या प्लास्टिक का कचरा है जिसे कांवड़िए छोड़ कर जाते है।उन्होंने कहा कि इनमें बैग, पॉलीथिन, प्लास्टिक के गिलास, कप और बिछाने के काम आने वाली प्लास्टिक की चादरें शामिल हैं।गौतम ने बताया कि प्रशासन के साथ ही गंगा सभा भी सफाई व्यवस्था में लगी हुई है जहां उसके कर्मचारी भी घाटों की धुलाई कर रहे हैं।कांवड़ मेला क्षेत्र में गंदगी की एक बड़ी वजह स्वयंसेवी संस्थाओं और कुछ निजी लोगों द्वारा कांवड़ियों के लिए लगाए जाने वाले शिविर भी है।स्थानीय नागरिक ने बताया कि जगह—जगह लगने वाले भंडारे, शरबत आदि के स्टॉल में इस्तेमाल होने वाले समान को कांवड़िए सड़कों पर ही छोड़ कर चले जाते है जिससे सड़को पर गंदगी फैलती रहती है। लेकिन जैसे-जैसे यात्रा ने रफ्तार पकड़ी, श्रद्धालुओं ने पवित्र शहर में गंदगी फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. खाद्य सामग्री, पालीथिन, प्लास्टिक बोतलें, कपड़े, जूते-चप्पल घाटों और सड़कों पर फेंके गए. हरकी पैड़ी क्षेत्र, मालवीय घाट, सुभाष घाट, महिला घाट, रोड़ी बेलवाला और बैरागी कैंप जैसे इलाकों में जगह-जगह दुर्गंध और शौच के कारण स्थिति बिगड़ी.नगर आयुक्त ने बताया, “श्रावण कांवड़ मेले में इस बार 10 हजार मीट्रिक टन से अधिक कूड़ा निकला है. मेले के पहले सात दिन प्रतिदिन औसतन 600-700 मीट्रिक टन कूड़ा उत्पन्न हुआ. वहीं 19 जुलाई से डाक कांवड़ शुरू होने के बाद यह मात्रा बढ़कर 1000-1200 मीट्रिक टन प्रतिदिन हो गई.” हरिद्वार नगर निगम की ओर से सफाई कार्य के लिए 1000 अतिरिक्त सफाईकर्मी, 15 ट्रैक्टर ट्रॉली, 3 लोडर, 3 टिपर और 8 सीएनजी वाहन तैनात किए गए हैं. सुभाष घाट, नाई सोता, बिरला घाट, कांगड़ा पुल जैसे मुख्य घाटों पर प्राथमिकता के आधार पर सफाई की जा रही है.हरिद्वार के बाहरी घाटों की ही नहीं, बल्कि अंदरूनी हिस्सों की सफाई व्यवस्था भी लचर रही. ज्वालापुर रेलवे रोड और पीपलान मोहल्ला स्थित ट्रांसफर स्टेशन जैसे क्षेत्रों में दोपहर तक गंदगी पड़ी रही. स्थानीय निवासियों और व्यापारियों ने सफाई को लेकर प्रशासन से नाराजगी भी जताई. इस बीच, एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के आदेशों की खुलेआम अवहेलना भी सामने आई. हरिद्वार में प्लास्टिक पर प्रतिबंध के बावजूद घाटों पर प्लास्टिक कैन, पन्नी, पालीथिन की चटाई जैसी चीजें खुलेआम बिकीं. रोड़ीबेलवाला और पंतद्वीप क्षेत्र में अस्थायी दुकानों पर प्लास्टिक उत्पाद धड़ल्ले से बिकते रहे, लेकिन पुलिस प्रशासन की कार्रवाई बेहद सीमित रही. हरकी पैड़ी से लेकर कनखल, भूपतवाला, पंतद्वीप और ऋषिकुल मैदान तक गंदगी और बदबू फैली रही. जगह-जगह खुले में शौच की वजह से हालात और भी बिगड़ गए. हरिद्वार का कांवड़ मेला करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा महापर्व है। लेकिन इस आस्था के साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी जुड़ी हुई है। यदि हम अपने तीर्थस्थलों को स्वच्छ और सुंदर रखना चाहते हैं, तो केवल सरकार या नगर निगम पर निर्भर रहना उचित नहीं होगा।श्रद्धालुओं, स्थानीय जनता, और शासन-प्रशासन को मिलकर काम करना होगा। तभी गंगा की पवित्रता, हरिद्वार की गरिमा और कांवड़ यात्रा की प्रतिष्ठा बनी रहेगी।हरिद्वार का कांवड़ मेला करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा महापर्व है। लेकिन इस आस्था के साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी जुड़ी हुई है। यदि हम अपने तीर्थस्थलों को स्वच्छ और सुंदर रखना चाहते हैं, तो केवल सरकार या नगर निगम पर निर्भर रहना उचित नहीं होगा।श्रद्धालुओं, स्थानीय जनता, और शासन-प्रशासन को मिलकर काम करना होगा। तभी गंगा की पवित्रता, हरिद्वार की गरिमा और कांवड़ यात्रा की प्रतिष्ठा बनी रहेगी।हरिद्वार का कांवड़ मेला करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा महापर्व है। लेकिन इस आस्था के साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी जुड़ी हुई है। यदि हम अपने तीर्थस्थलों को स्वच्छ और सुंदर रखना चाहते हैं, तो केवल सरकार या नगर निगम पर निर्भर रहना उचित नहीं होगा।श्रद्धालुओं, स्थानीय जनता, और शासन-प्रशासन को मिलकर काम करना होगा। तभी गंगा की पवित्रता, हरिद्वार की गरिमा और कांवड़ यात्रा की प्रतिष्ठा बनी रहेगी। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*