उर्गम घाटी, जोशीमठ। उत्तराखंड देवभूमि वैशाखी के अवसर पर कई दर्जनों मेले एवं कौथिक का आयोजन होता है इन आयोजनों में कुछ गांव में विशिष्ट पहचान रखने वाले कार्यक्रम संपन्न होते हैं। पैनखंडा क्षेत्र में जहां लाता में विखोती का मेला काफी प्रसिद्ध है, इसी तरह बड़ा गांव में हर 1 वर्ष के अंतराल में हस्तोला और 1 वर्ष के अंतराल में गरूड छाड के मेले आयोजित होतं हैं। इन दोनों मेलों के आयोजन की प्रथा भी अलग.अलग है।
मेले के आयोजन के दिन मुखौटा नृत्य का मंचन गांव के पंचायती चौक में किया जाता है गरूड छाड़ का अर्थ है भगवान विष्णु का नाग लोक से पप्यां पात्ती का लाना गुरु महाराज का भगवान कृष्ण को दिया हुआ वर का संकल्प पूरा करना यह मान्यता इस मेले से मिलती है जिसमें गणेश वर्मा क्षेत्रपाल सूर्य पत्र नरसिंह पत्र राम लक्ष्मण सीता आदि के मुकुट के माध्यम से नृत्य किया जाता है।
ढोल दमो की खबर यह नृत्य कराए जाते हैं इसके अलावा जब हंस्ती मेला होता है उस वर्ष यह माना जाता है कि भगवती देवी स्वरूप में मधु कैटव दैत्य का विनाश करती है उसका दृश्य दिखाया जाता है इसका अर्थ है कि सच्चाई की अन्याय पर विजय प्राप्त की गलत करने वाला का सदैव विनाश होता है जो प्रेरणा इस मेले से मिलती है सैकड़ों वर्षो से यह परंपरा चली आ रही है लोग बड़े भव्य ढंग से इस मेले की तैयारी करते हैं और अपने इष्ट देवी से प्रार्थना करते हैं कि पूरा गांव समृद्ध रहे ऐसी परंपरा है जिस वर्ष गरुड छाड का आयोजन होता है। उस वर्ष मंदिर के ऊपर एक हिस्से से रस्सी में भगवान गरुड़ की मूर्ति को डाला जाता है।
पहले गरुड़ जी और फिर भगवान विष्णु स्वयं इस राशि के सारे मंदिर प्रांगण में पहुंचते हैं। इसी को इस मेले का प्रतीक स्वरूप माना जाता है। लोग दाकुडी झूमेले आदि का आयोजन भव्य रूप से किया जाता है। इसमें कई गांव के लोग मेले में शामिल होते हैं। भगवती का अवतरण किसी अवतारी पुरुष पर होता है और वे आशीर्वाद देते हैं इस तरह इस मेले को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है बड़ागांव उत्तराखंड चमोली का कृषि उत्पादन के लिए भी माना जाता है गांव में 250 से अधिक परिवार निवास करते हैं और गांव के ऊपरी हिस्से में भगवती दुर्गा का मंदिर और यहां के लोगों की इष्ट देवी दुर्गा है यहां कत्यूरी शासनकाल की प्यारी रानीमती का जल धारा भी यहां स्थित है जो ऐतिहासिक प्रमाणों से भरा है यहां एक शिवालय भी स्थित है प्रतिवर्ष वैशाखी संक्रांति से 10 दिन के अंतराल में यह मेला संपन्न होता है।
लक्ष्मण सिंह नेगी की रिपोर्ट