डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करना हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है। प्रदेश के सीमांत जिलों में
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना और चिकित्सकों को पहुंचाने में प्रदेश में आई सभी सरकारों के माथे पर
बल पड़े रहेउत्तराखंड 9 नंवबर को 25वां स्थापना दिवस मना रहा है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि राज्य ने
बीते 24 वर्षों में क्या कुछ हासिल किया हैउत्तराखंड की बदहाल स्वास्थ्य सुविधा किसी से छिपी नहीं है.
क्योंकि, प्रदेश में आए दिन स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में होने वाले मौत के मामले सामने आते रहे हैं. भले
ही राज्य गठन के बाद स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति आई हो,उत्तराखंड 25वें साल में प्रवेश करे. लेकिन
आज भी राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पटरी पर नहीं चढ़ सकी है. यहां आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं से जूझते
लोगों की कहानी सामने आती रहती है.ऐसा ही हाल उत्तराखंड की स्थापना के बाद बने दूसरे मेडिकल
कॉलेज का भी है.श्रीनगर गढ़वाल मेडिकल कॉलेज की. इसकी स्थापना के बाद से यहां पर डॉक्टरों का टोटा
बना हुआ है. यहां न्यूरोसर्जरी, कार्डियोलॉजी, बर्न यूनिट जैसे महत्वपूर्ण विभाग बंद पड़े हैं. इनमें कई वर्षों
से डॉक्टरों की तैनाती नहीं हो सकी है. इसके अलावा यहां जितने विभाग चल रहे हैं, वहाँ भी विभिन्न
विभागों में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर 25 डॉक्टरों का टोटा अभी भी बना
हुआ है. इसके चलते मरीजों को हायर सेंटर रेफर करना पड़ रहा है. ऐसा तब है, जब खुद स्वास्थ्य मंत्री
श्रीनगर विधानसभा के विधायक भी हैं. स्थानीय निवासी द्वारा को बताया गया कि मेडिकल कॉलेज
श्रीनगर, पौड़ी, टिहरी, चमोली और रुद्रप्रयाग जनपदों का हायर सेंटर है. लेकिन जब मरीज को मेडिकल
कॉलेज श्रीनगर लाया जाता है, तो कई बार उन्हें यहां से भी रेफर कर ऋषिकेश, देहरादून भेज दिया जाता
है. यहां पहुचते-पहुंचते ही उनकी हालत और भी खराब हो जाती है. उन्होंने बताया कि डॉक्टरों की कमी
मरीजों पर भारी पड़ रही है. उत्तराखंड की स्थापना के बाद बने लगभग सभी मेडिकल कॉलेजों का भी है।
श्रीनगर गढ़वाल मेडिकल कॉलेज की स्थापना के बाद से आजतक यहां पर डॉक्टरों का टोटा बना हुआ है।
यहां न्यूरोसर्जरी, कार्डियोलॉजी, बर्न यूनिट जैसे महत्वपूर्ण विभाग बंद पड़े हैं। इनमें कई वर्षों से डॉक्टरों की
तैनाती नहीं हो सकी है। डॉक्टरों की कमी मरीजों पर इस कदर भारी पड़ रही है कि श्रीनगर मेडिकल
कॉलेज में जब एक्ससिडेंटल केस आते हैं और उनमें हेड इंजरी होती है, तो न्यूरोसर्जन न होने के कारण
मरीजों को बड़ी संख्या में रेफर किया जाता है। मेडिकल कॉलेज श्रीनगर, पौड़ी, टिहरी, चमोली और
रुद्रप्रयाग जनपदों का हायर सेंटर है। लेकिन जब मरीज को मेडिकल कॉलेज श्रीनगर लाया जाता है, तो कई
बार उन्हें यहां से भी रेफर कर ऋषिकेश, देहरादून भेज दिया जाता है। यहां पहुचते-पहुंचते ही उनकी
हालत और भी खराब हो जाती है। नाम बड़े और दर्शन छोटे’ ये कहावत सटीक बैठती है श्रीनगर गढ़वाल
स्थित राजकीय मेडिकल कॉलेज के बेस अस्पताल पर.दरअसल गढ़वाल क्षेत्र की जनता को स्वास्थ्य
सुविधाएं उपलब्ध कराने के उदेश्य से 27 वर्ष पूर्व स्थापित किए गए राजकीय बेस अस्पताल आज बुरी
स्थितियों में है.स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि छोटे-छोटे स्वास्थ्य केन्द्रों के लिए
रेफरल सेंटर के तौर पर इस्तेमाल होने वाला बेस अस्पताल आज खुद रेफरल सेंटर बन गया है.आवश्यक
चिकित्सकों, पैरामेडिकल स्टाफ और तकनीशियनों की कमी से जूझते अस्पताल में ठप्प आवश्यक जांचों से
कैसे मरीजों का इलाज होगा ये एक बड़ा सवाल है. 1 जनवरी 1989 में शुरू हुआ राजकीय बेस अस्पताल
श्रीनगर की तुलना वर्तमान में आईसीयू में भर्ती किसी मरीज से की जा सकती ह.हालत यह है कि गढ़वाल
मंडल के पर्वतीय क्षेत्रों के लिये स्थापित ये अस्पताल आज बुरे दौर में है. न्यूरोलाजिस्ट, कार्डियोलाजिस्ट,
नेफ्रोलाजिस्ट के साथ अन्य आवश्यक चिकित्सकों की लम्बे समय से गैरमौजूदगी के साथ आवश्यक व छोटी
जांचों के भी न होने से मरीजों को रैफर कर दिया जा रहा है.जनवरी से अब तक मरीजों के विभिन्न कारणों
से रैफर होने के आंकड़ों के प्रतिशत में ही यदि बात करें तो रोज 3 या 4 मरीज बेस अस्पताल से हायर सेंटर
के लिए रैफर किये जा रहे हैं. ऐसे में लम्बे समय से अस्पताल की सेहत सुधारने की मांग कर रही जनता का
आक्रोश शासन पर भी है तो विभाग पर भी.स्थानीय नागरिक का कहना है कि जब छोटे से मामले पर भी
मरीजों को मैदानी क्षेत्रों के अस्पतालों में रैफर किया जा रहा हो तो फिर बेस अस्पताल के नाम पर इतना
बड़ा ढांचा खड़ा करने की आवश्यकता क्या है. उनका कहना है कि जब सरकार अस्पताल की स्थितियों को
सुधार नहीं सकती तो फिर बेस अस्पताल को बंद कर दिया जाना चाहिए.मेडिकल कालेज व बेस अस्पताल
प्रशासन की लापरवाही की हद यह है कि अस्पताल में मौजूद कार्डियेक मार्कर व एबीजी जैसी मशीनें
पिछले कई माह खराब हैं तो आये दिन खराब होती सी.टी. मशीन के लिए मात्र एक तकनीशियन होने के
कारण बाद सीटी जांच भी नहीं हो पाती है. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के पूर्व महानिदेशक ने बताया
कि प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं में अभी और सुधार किए जाने की जरूरत है। उत्तराखंड में ऊपर चढ़ते और
उत्तराखंड से नीचे उतरते हुए इसलिए दिखाई देती है क्योंकि केंद्र सरकार और राज्य सरकार विकास के
जिस मॉडल पर काम कर रही है, वह अत्यंत केंद्रीकृत है। वह मॉडल राज्य के लोगों की जरूरत के हिसाब से
नहीं, बल्कि कुछ खास लोगों की जरूरत के हिसाब से बनाया गया मॉडल है। लेखक के निजी विचार व्यक्त
किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।