प्रकाश कपरूवाण
जोशीमठ। हेलंग-मारवाडी वाईपास का बनना अब लगभग तय। वन विभाग द्वारा पत्रावली संशोधित कर भारत सरकार को प्रेषित की। वाईपास पर आने वाले पेडो की गिनती पूरी हुई।
आद्य जगदगुरू शंकराचार्य की तपस्थली ज्यार्तिमठ-जोशीमठ को बदरीनाथ यात्रा मार्ग से अलग-थलग कर प्रस्तावित हेलंग-मारवाडी वाईपास का निर्माण अब लगभग तय लग रहा है। पहले इस वाईपास का निर्माण सडक परिवहन मंत्रालय के आॅल वैदर रोड के तहत ही किया जाना था , लेकिन अब इस वाईपास का निर्माण रक्षा मंत्रालय के अधीन बीआरओ द्वारा किया जाना है। इसके लिए वन भूमि हस्तातरण के प्रस्ताव मे संशोधन भी कर लिया गया है।
दरसअल पूर्व मे वन भूमि हस्तातरंण प्रस्ताव की पत्रावली सडक परिवहन एंव राजमार्ग मंत्रालय के नाम से तैयार कर ली गई थी लेकिन जब उक्त वाईपास निर्माण की जिम्मेदार सीमा सडक संगठन को दी गई तो तब प्रस्ताव मे संशोधन की आवश्यकता हुई और बीआरओ द्वारा नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क से पूर्व मे दिए गए प्रस्ताव को संशोधित कर रक्षा मंत्रालय के नाम कराने का आग्रह किया था। जिसमे विना देरी किए उप वन संरक्षक नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क द्वारा प्रस्ताव संशोधित कर भारत सरकार को प्रेषित कर दिया गया है। अब बीआरओ द्वारा इस वाईपास का निर्माण किया जाऐगा।
नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के उप प्रभागीय वनाधिकारी टी0सी0साही के अनुसार बीआरओ द्वारा वाईपास निर्माण का संशोधित प्रस्ताव प्राप्त हुआ था जिस पर सभी पहलुओ की जाॅच कर प्रस्ताव संशोधित कर एप्रूवल हेतु भारत सरकार को प्रेषित कर दिया गया है। श्री साही ने बताया कि हेलंग-मारवाडी वाईपास निर्माण मे आने वाले सभी प्रकार के पेडो की गिनती भी की जा चुकी है। सैद्धातिंक स्वीकृति प्राप्त होते ही पेडो के छपान का कार्य पूरा कर लिया जाऐगा।
हेलंग-मारवाडी वाईपास को लेकर संशोधित प्रस्ताव तैयार कर स्वीकृति हेतु भेजने तथा वाईपास निर्माण की जिम्मेदारी बीआरओ को दिए जाने के बाद एक बार फिर हेलंग-मारवाडी वाईपास का जिन्न बाहर निकल आया है। धार्मिक एवं पर्यटन नगरी जोशीमठ के लिए वाईपास एक बेहद संवेदनशी मामला हैं। इससे पूर्व भी वर्ष 1988-89 मे बीआरओ द्वारा इस वाईपास का निर्माण लगभग पूरा कर ही लिया था कि जोशीमठ के कुछ जागरूक नागरिको द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया था। तब से इस वाईपास का निर्माण बंद था। लेकिन आॅल वैदर रोड निर्माण के बाद यह एक बार फिर सुर्खियों मे आया।
आद्य जगदगुरू शंकराचार्य की तपस्थली ज्यार्तिमठ का अस्तित्व बचाने के लिए तब सूबे के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के साथ एक प्रतिनिधिमंडल ने केन्द्रीय सडक पिरवहन मंत्री नितिन गिडगिरी से भेंट कर जोशीमठ को जोडते हुए वाईपास निर्माण की वकालत की थी। और उक्त वाईपास निर्माण के लिए भूमिधरो व भवन स्वामियों द्वारा वाईपास निर्माण के लिए दी गई अनापत्तियों सहित धार्मिक एवं पौराणिक दस्तावेज भी प्रस्तुत किए थे। लेकिन अब सडक परिवहन मंत्रालय ने उक्त वाईपास निर्माण की जिम्मेदारी रक्षा मंत्रालय को दे दी है।
आद्य जगदगुरू शंकराचार्य की तपस्थली ज्योर्तिमठ-जोशीमठ अनादिकाल से ही श्री बदरीनाथ यात्रा से जुडा है। जिसका धािर्मक पक्ष भी है। मान्यतानुसार भगवान बदरीनारायण के दर्शनो से पूर्व जोशीमठ स्थित भगवान नृंिसंह के दर्शनो की धार्मिक पंरपरा है जिसका शास्त्रों मे भी उल्लेख है। बदरीनाथ तक सडक निर्माण से पूर्व भी जब पैदल यात्रा का युग था तब भी पैदल यात्री हेलंग से ंिसहधार-नृंिसहं मंदिर मठांगण होते हुए प्रथम प्रयाग विष्णुप्रयाग से बदरीनाथ पंहुचते थे। सडक निर्माण के बाद भी वर्तमान तक इसी धार्मिक पंरपरा का निर्वहन बदरीनाथ आने वाले तीर्थयात्री कर रहे है। लेकिन यदि वाईपास का निर्माण हो जाता है तो करोडो सनातन धर्मावलबिंयो की धार्मिक भावना के साथ कुठाराघात तो होगा ही यात्रा मार्ग पर निर्भर सैकडो ब्यवासायियों का रोजगार चैपट होगा और लोग पलायन के लिए विवश होगे।
अब देखना होगा कि पौराणिक एंव धार्मिक नगर जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने के लिए किस स्तर से पहल होती हैं इस पर सीमांत वासियों की निगाहे टिकी रहेगी।